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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 67 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 67/ मन्त्र 14
    ऋषिः - मत्स्यः साम्मदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनध्दाः देवता - आदित्याः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    ते न॑ आ॒स्नो वृका॑णा॒मादि॑त्यासो मु॒मोच॑त । स्ते॒नं ब॒द्धमि॑वादिते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते । नः॒ । आ॒स्नः । वृका॑णाम् । आदि॑त्यासः । मु॒मोच॑त । स्ते॒नम् । ब॒द्धम्ऽइ॑व । अ॒दि॒ते॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ते न आस्नो वृकाणामादित्यासो मुमोचत । स्तेनं बद्धमिवादिते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ते । नः । आस्नः । वृकाणाम् । आदित्यासः । मुमोचत । स्तेनम् । बद्धम्ऽइव । अदिते ॥ ८.६७.१४

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 67; मन्त्र » 14
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 53; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Mother Aditi, caught up like thieves, we are in the jaws of wolves. May the Adityas save us from the mouth of wolfish exploiters.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    प्रजेची लूट कशी होते याचे दृश्य पाहावयाचे असेल तर डोळे उघडे ठेवून गावागावात पाहा. माणसे, लांडगे व वाघापेक्षा जास्त स्वजातीचे हिंसक बनत आहेत. सभेने या उपद्रवापासून प्रजेचे रक्षण करावे ॥१४॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    हे आदित्यासः=आदित्याः सभ्याः ! वृकाणां=हिंसकानां वृकवद्भयङ्कराणाम् । आस्नः=आस्यात् । नः=अस्मान् । मुमोचत=मोचत । हे अदिते=सभे ! बद्धं स्तेनमिव दुर्भिक्षादिपापैः पीडितान् जनान् मोचय ॥१४ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    (आदित्यासः) हे सभासदों ! (वृकाणाम्) हिंसक, चोर, डाकू और द्रोही असत्यवादी और वृक पशु के समान भयङ्कर जनों के (आस्नः) मुख से (नः) हम प्रजाओं को (मुमोचत) बचाओ (अदिते) हे सभे ! (बद्धम्+स्तेनम्) बद्ध चोर को जैसे छोड़ते हैं, वैसे दुर्भिक्षादि पापों से पीड़ित और बद्ध हम लोगों को बचाइये ॥१४ ॥

    भावार्थ

    प्रजा कितने प्रकारों से लूटी जाती है, इसका दृश्य यदि देखना हो, तो आँख फैलाकर ग्राम-ग्राम में देखो । मनुष्य वृकों और व्याघ्रों से भी बढ़कर स्वजातियों के हिंसक बन रहे हैं । सभा को उचित है कि इन उपद्रवों से प्रजा की रक्षा करे ॥१४ ॥

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    विषय

    तेजस्वी विद्वान् पुरुषों के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    ( आदित्यासः ) हे तेजस्वी पुरुषो ! हे ( अदिते ) अखण्ड शासनकारिणि ! मातृवत् पालिके! प्रभुशक्ते ! तू ( बद्धम् इव स्तेनं ) बंधे चोर के समान बन्धन में बद्ध ( नः ) हमें ( वृकाणां आस्नः) भेड़ियों के तुल्य मुंह फाड़ कर खाने को आने वाले दुष्ट हिंसकों के मुखों से ( मुमोचत ) छुड़ाओ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मत्स्यः सांमदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनद्धा ऋषयः॥ आदित्या देवताः। छन्दः—१—३, ५, ७, ९, १३—१५, २१ निचृद् गायत्री। ४, १० विराड् गायत्री। ६, ८, ११, १२, १६—२० गायत्री॥

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    विषय

    अदिति + आदित्य

    पदार्थ

    [१] (आदित्यासः) = हे आदित्य पुरुषो! सब अच्छाइयों को अपने अन्दर धारण करनेवाले पुरुषों! (ते) = वे आप (नः) = हमें भी (वृकाणाम्) = भेड़िए की तरह हमारा हिंसन करनेवाली अशुभवृत्तियों के (आस्नः) = मुख से-उनका शिकार हो जाने से मुमोचत छुड़ाओ। [२] हे (अदिते) = स्वास्थ्य की देवते ! तू (बद्धं स्तेनम् इव) = बंधे चोर के समान-वासनाओं से जकड़े हुए मुझको इनके बन्धन से छुड़ाने का अनुग्रह कर ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम स्वास्थ्य व सत्पुरुषों के संग से वासनाओं का शिकार होने से बचें।

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