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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 20
    ऋषिः - पुनर्वत्सः काण्वः देवता - मरूतः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    क्व॑ नू॒नं सु॑दानवो॒ मद॑था वृक्तबर्हिषः । ब्र॒ह्मा को व॑: सपर्यति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क्व॑ । नू॒नम् । सु॒ऽदा॒न॒वः॒ । मद॑थ । वृ॒क्त॒ऽब॒र्हि॒षः॒ । ब्र॒ह्मा । कः । वः॒ । स॒प॒र्यति॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क्व नूनं सुदानवो मदथा वृक्तबर्हिषः । ब्रह्मा को व: सपर्यति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क्व । नूनम् । सुऽदानवः । मदथ । वृक्तऽबर्हिषः । ब्रह्मा । कः । वः । सपर्यति ॥ ८.७.२०

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 20
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 21; मन्त्र » 5
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    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (सुदानवः) हे शोभनदानाः ! (वृक्तबर्हिषः) पृथग्दत्तासनाः यूयम् (नूनम्) निश्चयम् (क्व, मदथाः) क्व जनान् हर्षयथ (कः, ब्रह्मा) को विद्वान् वा (वः, सपर्यति) युष्मान् पूजयति ॥२०॥

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    विषयः

    इन्द्रियचञ्चलत्वं प्रदर्शयन्ति ।

    पदार्थः

    हे सुदानवः । शोभनदानाः=हे वृक्तबर्हिषः यज्ञप्रवर्तिता मरुतः । यूयम् । क्व=कुत्र प्रदेशे । नूनम् इदानीम् । मदथ=माद्यथ । कश्च ब्रह्मा । वः=युष्मान् । सपर्यति=पूजयति ॥२० ॥

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    हिन्दी (2)

    पदार्थ

    (सुदानवः) हे शोभन दानवाले ! (वृक्तबर्हिषः) पृथक् दिया गया है आसन जिन्हों को, ऐसे आप (क्व, नूनम्, मदथाः) कहाँ स्थित होकर मनुष्यों को हर्षित कर रहे हैं (कः, ब्रह्मा) कौन विद्वान् (वः) आपकी (सपर्यति) पूजा करता है ॥२०॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र का आशय यह है कि जिन लोगों को यज्ञ में विशेष=असाधारण आसन दिया जाता है, वे “वृक्तबर्हिष” कहे जाते हैं और ऐसे असाधारण विद्वानों के गुणगौरव को चतुर्वेद का वक्ता ब्रह्मा ही जान सकता है, अन्य नहीं और वह विशेषतया पूजा के योग्य होते हैं ॥२०॥

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    विषय

    इन्द्रियों की चञ्चलता दिखलाते हैं ।

    पदार्थ

    (सुदानवः) हे शोभनदानदाता (वृक्तबर्हिषः) यज्ञप्रवर्तित= प्राणायामरूप यज्ञ में प्रयुक्त प्राणो ! आप (क्व) कहाँ (नूनम्) इस समय (मदथ) आनन्द कर रहे हैं (कः+ब्रह्मा) कौन ब्रह्मा (वः) आपकी (सपर्यति) सेवा कर रहा है ॥२० ॥

    भावार्थ

    भाव इसका यह है कि इन्द्रियगण अति चञ्चल हैं, यद्यपि शुभ कर्म में इनको विद्वान् लगाते हैं, तथापि वे इधर-उधर भाग जाते हैं, उस समय उपासक की समस्त क्रिया नष्ट हो जाती है, अतः प्राणों को विवश करने के लिये सम्बोधनपूर्वक यहाँ वर्णन है ॥२० ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Generous Maruts, where are you now rejoicing, seated on the holy grass? And who is the high priest conducting the yajnic celebration for you?

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्राचा आशय असा की, ज्या लोकांना यज्ञात विशेष असाधारण आसन दिले जाते ते ‘वृक्तबर्हिष’ म्हणविले जातात व अशा असाधारण विद्वानांच्या गुणगौरवाला चतुर्वेदाचा वक्ता ब्रह्माच जाणू शकतो, इतर नव्हे व विशेषत: ते पूजा करण्यायोग असतात. ॥२०॥

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