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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 73 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 73/ मन्त्र 12
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    स॒मा॒नं वां॑ सजा॒त्यं॑ समा॒नो बन्धु॑रश्विना । अन्ति॒ षद्भू॑तु वा॒मव॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒मा॒नम् । वा॒म् । स॒ऽजा॒त्य॑म् । स॒मा॒नः । बन्धुः॑ । अ॒श्वि॒ना॒ । अन्ति॑ । सत् । भू॒तु॒ । वा॒म् । अवः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समानं वां सजात्यं समानो बन्धुरश्विना । अन्ति षद्भूतु वामव: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    समानम् । वाम् । सऽजात्यम् । समानः । बन्धुः । अश्विना । अन्ति । सत् । भूतु । वाम् । अवः ॥ ८.७३.१२

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 73; मन्त्र » 12
    अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    You are the same class and character as we, equal, the same brotherhood with us. Ashvins, let your protections and promotions be with us at the closest at the same level of class, character and species.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजाने सर्व प्रजेची समान उन्नती करावी. समान बंधुत्व दर्शवावे. स्वत: राजाही प्रजेप्रमाणेच आहे. असे मानता कामा नये की राजा एखादा अविज्ञात ईश्वरप्रेरित देव आहे व इतर लोक मर्त्य आहेत. राजा व इतर लोक समानच असतात. सर्वजण अल्पज्ञ, दोषी, काम इत्यादीच्या वशीभूत असतात हेच यात दर्शविलेले आहे. ॥१२॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    सर्वासु प्रजासु राजा समानं बुद्धिं कुर्यात् । समानबन्धुत्वं दर्शयेत् । स्वयं राजाऽपि प्रजाभिः समानोऽस्ति । स कश्चिदविज्ञात ईश्वरप्रेरितो देवोऽस्ति । इतरे जना मर्त्याः सन्तीति न विज्ञातव्यम् । किन्तु सर्वे अल्पज्ञा विविधदोषदूषिता कामादिवशीभूता राजानः प्रजाश्च समानाः तव सन्ति । इदमेव दर्शयति−अश्विनौ ! वां=युवयो राजामात्ययोः । प्रजाभिः सार्धम् । समानं=तुल्यमेव । सजात्यं=समानजातित्वं वर्त्तते । अतो युवां गर्वं मा कार्षिष्टम् । प्रजारक्षणे युवां नियुक्तौ स्थः । पुनः । सर्वोऽपि जनः युवयोः समानो बन्धुभ्राताऽस्ति । अतः प्रजानां हितं सदा चरतम् ॥१२ ॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    राजा को उचित है कि सर्व प्रजाओं में समान बुद्धि करे । समान बन्धुत्व दिखलावे । स्वयं राजा भी प्रजाओं के समान ही है । वह राजा कोई अविज्ञात ईश्वरप्रेरित देव है और इतर जन मर्त्य हैं, यह नहीं जानना चाहिये । किन्तु सब ही अल्पज्ञ विविध दोष दूषित, कामादिकों के वशीभूत राजा और इतर जन समान ही हैं, यही इससे दिखलाया गया है । यथा (वाम्) आप दोनों राजा और अमात्य का प्रजाओं के साथ (समानम्) समान ही (सजात्यम्) सजातित्व है, अतः आप गर्व मत करें । आप प्रजाओं के रक्षण में दासवत् नियुक्त हैं । पुनः सब ही जन आपके (समानः+बन्धुः) समान ही बन्धु हैं । अतः प्रजाओं का हित सदा करो ॥१२ ॥

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    विषय

    स्त्रीपुरुषों को उत्तम उपदेश।

    भावार्थ

    हे ( अश्विना ) दिन रात्रिवत् परस्पर संयुक्त स्त्री पुरुषो ! ( वां सजात्यं समानः ) आप दोनों का उत्पत्ति एक समान और ( बन्धुः समान ) आप दोनों का परस्पर बन्धुत्व भी एक समान हो। ( वाम् अवः अन्ति सद् भूतु ) तुम दोनों का परस्पर समीपतम, घनिष्ठ प्रीति, तृप्ति, परस्पर वाचन-श्रवण क्रिया, इच्छा, आलिङ्गन, दान-आदानादि सब सद् व्यवहार हों।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा ऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१, २, ४, ५, ७, ९–११, १६—१८ गायत्री। ३, ८, १२—१५ निचृद गायत्री। ६ विराड गायत्री॥ अष्टादशर्चं सूक्तम्॥

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