ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 73/ मन्त्र 5
यद॒द्य कर्हि॒ कर्हि॑ चिच्छुश्रू॒यात॑मि॒मं हव॑म् । अन्ति॒ षद्भू॑तु वा॒मव॑: ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । अ॒द्य । कर्हि॑ । कर्हि॑ । चि॒त् । शु॒श्रू॒यात॑म् । इ॒मम् । हव॑म् । अन्ति॑ । सत् । भू॒तु॒ । वा॒म् । अवः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यदद्य कर्हि कर्हि चिच्छुश्रूयातमिमं हवम् । अन्ति षद्भूतु वामव: ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । अद्य । कर्हि । कर्हि । चित् । शुश्रूयातम् । इमम् । हवम् । अन्ति । सत् । भूतु । वाम् । अवः ॥ ८.७३.५
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 73; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 18; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 18; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
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मराठी (1)
भावार्थ
राजा व त्याच्या अमात्याचे प्रथम व अंतिम कर्तव्य प्रजापालनच आहे. ॥५॥
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमर्थमाह ।
पदार्थः
हे अश्विनौ ! यद्=यस्मात् स्थितिरस्माभिरिदानीं न ज्ञायते । अतः । अद्य+कर्हि=कस्मिंश्चित् स्थाने । कर्हि=कस्मिंश्चित् स्थाने । द्विरुक्तिर्दृढार्था । भवतम् । तस्मादागत्या । अस्माकम् इमं+हवं=प्रार्थनाम् । शुश्रूयातम्=पुनः पुनः शृणुतम् । शिष्टमुक्तम् ॥५ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी अर्थ को कहते हैं ।
पदार्थ
हे महाराज तथा अमात्य ! (यद्) जिस कारण इस समय आपकी स्थिति का ज्ञान हम लोगों को नहीं है, अतः (अद्य) आज आप दोनों (कर्हि+कर्हि+चित्) कहीं-कहीं होवें, वहाँ से आकर (इमम्) हमारी इस (हवम्) प्रार्थना को (शुश्रूयातम्) पुनः-पुनः सुनें ॥५ ॥
विषय
स्त्रीपुरुषों को उत्तम उपदेश।
भावार्थ
( यत् अद्य ) आज के समान (कर्हि कर्हि चित्) कभी कभी आप दोनों ( इमं हवं शुश्रूयातम् ) इस आह्वान या उत्तम वचन को भी श्रवण कर लिया करो। (वाम् अन्ति सत् अवः भूतु ) आपके पास सदा सत्य ज्ञान, सद् व्यवहार रहे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा ऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१, २, ४, ५, ७, ९–११, १६—१८ गायत्री। ३, ८, १२—१५ निचृद गायत्री। ६ विराड गायत्री॥ अष्टादशर्चं सूक्तम्॥
विषय
प्रभुप्रेरणा का श्रावण
पदार्थ
[१] हे प्राणापानो! (यद्) = जब (अद्य) = आज (कर्हि चित्) = किसी समय (इमं हवम्) = इस हृदयस्थ प्रभु की पुकार को (शुश्रूयातम्) = सुनते हो, तो (वाम्) = आपका यह (सत् अवः) = उत्तम रक्षण (अन्ति भूतु) = हमारे सदा समीप हो। [२] प्राणसाधना से हृदय की निर्मलता प्राप्त होती है और उस निर्मल हृदय में प्रभु की प्रेरणा सुनाई पड़ती है। यह प्रभुप्रेरणा हमारा मार्गदर्शन करती हुई हमारा रक्षण करती है।
भावार्थ
भावार्थ - प्राणसाधना से हृदय की निर्मलता सिद्ध होती है। उस निर्मल हृदय में प्रभु की प्रेरणा सुनाई पड़ती है।
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