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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 93 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 93/ मन्त्र 24
    ऋषिः - सुकक्षः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    इ॒ह त्या स॑ध॒माद्या॒ हरी॒ हिर॑ण्यकेश्या । वो॒ळ्हाम॒भि प्रयो॑ हि॒तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒ह । त्या । स॒ध॒ऽमाद्या॑ । हरी॒ इति॑ । हिर॑ण्यऽकेश्या । वो॒ळ्हाम् । अ॒भि । प्रयः॑ । हि॒तम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इह त्या सधमाद्या हरी हिरण्यकेश्या । वोळ्हामभि प्रयो हितम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इह । त्या । सधऽमाद्या । हरी इति । हिरण्यऽकेश्या । वोळ्हाम् । अभि । प्रयः । हितम् ॥ ८.९३.२४

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 93; मन्त्र » 24
    अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 25; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    And may those brilliant and jubilant perceptive, creative and communicative dynamics of yajna working in unison conduct Indra, the soul, onward in the business of living and lead the yajamana to the desired wealth and nourishment of life.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    मानव जीवनात ईश्वर निर्मित द्रव्याचे यथावत ज्ञान व व्यवहाराद्वारे आध्यात्मिक सुखाच्या वाहिका आमची ज्ञानेन्द्रिये व कर्मेन्द्रिये आहेत. प्रभूला प्रार्थना आहे, की या इंद्रियांनी सदैव पथ्यकारक किंवा हितकारक भोग्याचे सेवन करावे. येथे हाही संकेत आहे, की वृष्टिसुखाचे वाहक विद्युत व वायूने जगात हितकारक वृष्टि-जलाचा वर्षाव करावा व राजा व प्रजा यांनी राष्ट्रात हितकारक भोग्य एकत्र करावे. ॥२४॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (त्या) वे (सधमाद्या) साथ-साथ हर्षित होने वाली, (हिरण्यकेश्या) ज्योतिर्मय सूर्य आदि की किरणों के तुल्य तेजस्विनी, (हरी) [हरणशील] जीवन का भली-भाँति निर्वाह करने में समर्थ दोनों--ज्ञान तथा कर्मेन्द्रियाँ (हितम्) हितकारी, पथ्य, (प्रयः) पदार्थज्ञान इत्यादि इष्ट भोग्य तथा उससे प्राप्त सुख सम्पन्नता (अभि) की ओर जाकर (इह) इस जीवन में (वोळ्हा) लाएं॥२४॥

    भावार्थ

    मानव-जीवन में ईश्वर द्वारा रचित द्रव्यों के यथावत् ज्ञान तथा व्यवहार द्वारा आध्यात्मिक सुख की वाहिका हमारी ज्ञान तथा कर्मेन्द्रियाँ हैं। प्रभु से प्रार्थना है कि ये सदा पथ्य या हितकारक भोग्य का ही सेवन करें। यहाँ यह संकेत भी है कि वृष्टिसुख-वाहक विद्युत् तथा वायु विश्व में हितकारी वृष्टिजल की वर्षा करें तथा राजा एवं प्रजाजन राष्ट्र में हितकारक भोग्य जुटाएं॥२४॥

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    विषय

    पक्षान्तर में परमेश्वर के गुण वर्णन।

    भावार्थ

    ( इह ) इस राष्ट्र में ( त्या ) वे दोनों (सध-माद्या ) एक साथ आनन्द लाभ करने वाले, उस के हर्ष में हर्षित, ( हिरण्य-केश्या ) सुवर्ण के समान प्रदीप्त तेज को केशोंवत् धारण करने वाले, तेजस्वी (हरी) अश्वों के तुल्य अग्रगामी स्त्री पुरुष वा दो नेता जन ( हितम् प्रयः ) हितकारक गन्तव्य मार्ग की ओर ( अभि बोढाम् ) ले जावें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सुकक्ष ऋषिः॥ १—३३ इन्द्रः। ३४ इन्द्र ऋभवश्च देवताः॥ छन्दः—१, २४, ३३ विराड़ गायत्री। २—४, १०, ११, १३, १५, १६, १८, २१, २३, २७—३१ निचृद् गायत्री। ५—९, १२, १४, १७, २०, २२, २५, २६, ३२, ३४ गायत्री। १९ पादनिचृद् गायत्री॥

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    विषय

    हितं प्रयः अभि

    पदार्थ

    [१] (इह) = इस जीवन में (त्या) = वे (सधमाद्या) = [सह माधन्तौ] मिलकर आनन्दित होते हुए (हिरण्यकेश्या) = हितरमणीय ज्ञान- रश्मियोंवाले (हरी) = ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रियरूप अश्व (हितम्) = हितकर (प्रयः अभि) = [प्रयस् - sacrifice ] यज्ञों की ओर (वोढाम्) = हमें ले चलें। [२] हमारे जीवन में ज्ञानेन्द्रियों के ज्ञान के अनुसार कर्मेन्द्रियाँ कर्म करनेवाली हैं। ये मिलकर चलती हुई हमें आनन्दित करनेवाली हों। सदा हित रमणीय ज्ञानवाली ये हों और यज्ञों में प्रवृत्त रहें।

    भावार्थ

    भावार्थ- हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ हितरमणीय ज्ञानरश्मियोंवाली हों और कर्मेन्द्रियाँ सदा हितकर यज्ञों में प्रवृत्त रहें। इस प्रकार मिलकर ये हमें आनन्दित करनेवाली हों।

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