ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 93/ मन्त्र 28
भ॒द्रम्भ॑द्रं न॒ आ भ॒रेष॒मूर्जं॑ शतक्रतो । यदि॑न्द्र मृ॒ळया॑सि नः ॥
स्वर सहित पद पाठभ॒द्रम्ऽभ॑द्रम् । नः॒ । आ । भ॒र॒ । इष॑म् । ऊर्ज॑म् । श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो । यत् । इ॒न्द्र॒ । मृ॒ळया॑सि । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
भद्रम्भद्रं न आ भरेषमूर्जं शतक्रतो । यदिन्द्र मृळयासि नः ॥
स्वर रहित पद पाठभद्रम्ऽभद्रम् । नः । आ । भर । इषम् । ऊर्जम् । शतक्रतो इति शतऽक्रतो । यत् । इन्द्र । मृळयासि । नः ॥ ८.९३.२८
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 93; मन्त्र » 28
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 26; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 26; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, lord of infinite actions of grace, when you are kind to us and bless us with joy and well being, you give us food, energy, knowledge and enlightenment so that we may rise towards perfection as good human beings.
मराठी (1)
भावार्थ
माणूस जेव्हा प्रभूच्या प्रेरणेने त्याच्याकडून सृष्टीतील पदार्थांचे ज्ञान उपलब्ध करून त्यांना यथोचित रीतीने उपयोगात आणतो तेव्हा हळूहळू इतर ऐश्वर्यही प्राप्त होऊ लागते. ॥२८॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे (शतक्रतो) कर्मशक्तियुक्त (इन्द्र) प्रभो; (यत्) जब आप (नः) हमें (मृडयासि) सुख देते हैं तो (नः) हमें (भद्रं भद्रम्) कल्याणकारी ही कल्याणकारी (इषम्) ज्ञान से प्रेरणा तथा (ऊर्जम्) पदार्थों के सारभूत ज्ञानबल से (आभर) पूर्ण कर दें॥२८॥
भावार्थ
मानव जब प्रभु प्रेरणा से उसके द्वारा सृष्ट पदार्थों का ज्ञान प्राप्त कर उन्हें यथोचित रीति से उपयुक्त करने लग जाता है, तो उसे शनै-शनैः अन्य ऐश्वर्य भी मिलने लगते हैं॥२८॥
विषय
पक्षान्तर में परमेश्वर के गुण वर्णन।
भावार्थ
हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! ( यत् ) जो तू ( नः मृडयासि ) हमें सुखी करता है, वह तू हे ( शत-क्रतो ) अपरिमित बलशालिन् ! (नः भद्रं-भद्रम् ) हमें अतिसुखकारक, ( इषम् ऊर्जम् ) अन्न और रस, बल, आदि ( आ भर ) प्राप्त करा।
टिप्पणी
missing
विषय
इष् व ऊर्ज्
पदार्थ
[१] हे (शतक्रतो) = अनन्त शक्ति व प्रज्ञानवाले प्रभो! आप (नः) = हमारे लिये (भद्रं भद्रम्) = कल्याणकारक व सुखजनक (इषम्) = प्रेरणा को व (ऊर्जम्) = बल व प्राणशक्ति को (आभर) = प्राप्त कराइये। हमें अपनी कल्याणी प्रेरणा को प्राप्त कराइये तथा उस प्रेरणा को जीवन में अनूदित करने की शक्ति भी दीजिये । [२] हे (इन्द्र) = सर्वशक्तिमन् प्रभो ! (यत्) = क्योंकि आप इस इष और ऊर्ज के द्वारा (नः) = हमें (मृडयासि) = सुखी करते हैं। प्रभु की उत्तम प्रेरणा व प्रेरणा को कार्यान्वित करने के लिये दी गई शक्ति हमें सुखी करती है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु से हम कल्याणी प्रेरणा व शक्ति को प्राप्त करें।
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