Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 1/ मन्त्र 2
    सूक्त - प्रत्यङ्गिरसः देवता - कृत्यादूषणम् छन्दः - विराड्गायत्री सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त

    शी॑र्ष॒ण्वती॑ न॒स्वती॑ क॒र्णिनी॑ कृत्या॒कृता॒ संभृ॑ता वि॒श्वरू॑पा। सारादे॒त्वप॑ नुदाम एनाम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शी॒र्ष॒ण्ऽवती॑ । न॒स्वती॑ । क॒र्णिनी॑ । कृ॒त्या॒ऽकृता॑ । सम्ऽभृ॑ता । वि॒श्वऽरू॑पा । सा । आ॒रात् । ए॒तु॒ । अप॑ । नु॒दा॒म॒: । ए॒ना॒म् ॥१.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शीर्षण्वती नस्वती कर्णिनी कृत्याकृता संभृता विश्वरूपा। सारादेत्वप नुदाम एनाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शीर्षण्ऽवती । नस्वती । कर्णिनी । कृत्याऽकृता । सम्ऽभृता । विश्वऽरूपा । सा । आरात् । एतु । अप । नुदाम: । एनाम् ॥१.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 2

    भाषार्थ -
    (शीर्षण्वती) समझदार, (नस्वती, कर्णिनी) नाक, कान आदि अङ्गों बाली, (कृत्याकृता) हिंसा तथा मारने-काटने में कुशल, (संभृता) सैनिक-संभारों अर्थात् शस्त्रास्त्रों द्वारा सम्पुष्ट, (विश्वरूपा) पदाति, अश्वारोही रथी, हस्ती आदि सैनिकाङ्गों के सब रूपों द्वारा सुसज्जित (आ) वह शत्रुसेना (आरात्) यदि हमारे समीप (एतु) आए तो (एनाम्) इसे (अप नुदामः) हम परे धकेल देते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top