अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 1/ मन्त्र 22
सूक्त - प्रत्यङ्गिरसः
देवता - कृत्यादूषणम्
छन्दः - एकावसाना द्विपदार्च्युष्णिक्
सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त
सोमो॒ राजा॑धि॒पा मृ॑डि॒ता च॑ भू॒तस्य॑ नः॒ पत॑यो मृडयन्तु ॥
स्वर सहित पद पाठसोम॑: । राजा॑ । अ॒धि॒ऽपा: । मृ॒डि॒ता: । च॒ । भू॒तस्य॑ । न॒: । पत॑य: । मृ॒ड॒य॒न्तु॒ ॥१.२२॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमो राजाधिपा मृडिता च भूतस्य नः पतयो मृडयन्तु ॥
स्वर रहित पद पाठसोम: । राजा । अधिऽपा: । मृडिता: । च । भूतस्य । न: । पतय: । मृडयन्तु ॥१.२२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 22
भाषार्थ -
(सोमः) चन्द्रमा की तरह शीतल अर्थात् सौम्य स्वभाव वाला (नः राजा) हमारा राजा है, जोकि (अधिपाः) हमारा रक्षक है, (च मृडिता) और सुख प्रदाता है, तथा (भूतस्य) पंचभूतों [पृथिवी, अप्, तेज, वायु, आकाश] के (पतयः) पति, अर्थात् जिन्होंने वैज्ञानिक ढंग द्वारा इन्हें अपने वश में कर लिया है वे (नः) हमें (मृडयन्तु) सुखी करें।
टिप्पणी -
[अभिप्राय यह है कि हमारा राजा शन्ति प्रिय है, और हम उस के राज्य में सुखी हैं। यदि कोई परकीय शक्ति हम पर आक्रमण करेगी तो हमारे वैज्ञानिक, हमारी रक्षा कर के हमें सुखी करेंगे। न हम युद्धप्रिय हैं, न किसी राष्ट्र पर आक्रमण करने के अभिलाषी है]