अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 22
ऋषिः - प्रत्यङ्गिरसः
देवता - कृत्यादूषणम्
छन्दः - एकावसाना द्विपदार्च्युष्णिक्
सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त
71
सोमो॒ राजा॑धि॒पा मृ॑डि॒ता च॑ भू॒तस्य॑ नः॒ पत॑यो मृडयन्तु ॥
स्वर सहित पद पाठसोम॑: । राजा॑ । अ॒धि॒ऽपा: । मृ॒डि॒ता: । च॒ । भू॒तस्य॑ । न॒: । पत॑य: । मृ॒ड॒य॒न्तु॒ ॥१.२२॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमो राजाधिपा मृडिता च भूतस्य नः पतयो मृडयन्तु ॥
स्वर रहित पद पाठसोम: । राजा । अधिऽपा: । मृडिता: । च । भूतस्य । न: । पतय: । मृडयन्तु ॥१.२२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पदार्थ
(सोमः) ऐश्वर्यवान् (राजा) राजा (अधिपाः) अधिक पालन करनेवाला (च) और (मृडिता) सुख देनेवाला है, (भूतस्य) संसार के (पतयः) पालन करनेवाले [राजपुरुष] (नः) हमें (मृडयन्तु) सुख देते रहें ॥२२॥
भावार्थ
राजा और राजपुरुष प्रजा को सुख पहुँचाने में सदा तत्पर रहें ॥२२॥
टिप्पणी
२२−(सोमः) ऐश्वर्यवान् (राजा) शासकः (अधिपाः) अधिकपालकः (मृडिता) सुखयिता (च) (भूतस्य पतयः) संसारस्य पालका राजपुरुषाः (नः) अस्मान् (मृडयन्तु) सुखयन्तु ॥
विषय
"सोमः' राजा अधिपाः मडिता च
पदार्थ
१. (सोम:) = शरीरस्थ सोमशक्ति (राजा) = हमारे जीवन को दीस बनानेवाली है, (अधिपा:) = हमारा खब ही रक्षण करनेवाली है (च मृडिता) = और हमारे जीवन को सुखी बनानेवाली है। २. (भूतस्य पतयः) = प्राणियों के रक्षक सब तत्त्व (नः मृडयन्तु) = हमें सुखी करें।
भावार्थ
शरीर में सोम का रक्षण करते हुए हम दीस, रक्षित व सुखी जीवनवाले हों।
भाषार्थ
(सोमः) चन्द्रमा की तरह शीतल अर्थात् सौम्य स्वभाव वाला (नः राजा) हमारा राजा है, जोकि (अधिपाः) हमारा रक्षक है, (च मृडिता) और सुख प्रदाता है, तथा (भूतस्य) पंचभूतों [पृथिवी, अप्, तेज, वायु, आकाश] के (पतयः) पति, अर्थात् जिन्होंने वैज्ञानिक ढंग द्वारा इन्हें अपने वश में कर लिया है वे (नः) हमें (मृडयन्तु) सुखी करें।
टिप्पणी
[अभिप्राय यह है कि हमारा राजा शन्ति प्रिय है, और हम उस के राज्य में सुखी हैं। यदि कोई परकीय शक्ति हम पर आक्रमण करेगी तो हमारे वैज्ञानिक, हमारी रक्षा कर के हमें सुखी करेंगे। न हम युद्धप्रिय हैं, न किसी राष्ट्र पर आक्रमण करने के अभिलाषी है]
विषय
घातक प्रयोगों का दमन।
भावार्थ
(सोमः) सोम सब को शुभ कामों में प्रेरणा करने वाला, एवं शान्त सौम्य गुणों से युक्त (राजा) राजा, प्रजा के हृदय को प्रसन्न रखने वाला ही (अधिपाः) प्रजा का पालक और (मृडिता च) सुखी करने हारा होता है। (नः) हमें (भूतस्य) समस्त संसार के या प्राणियों के (पतयः) पालक लोग (मृडयन्तु) सुखी करें।
टिप्पणी
(द्वि०) ‘ऋतम्य नः पतयो’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रत्यंगिरसो ऋषिः। कृत्यादूषणं देवता। १ महाबृहती, २ विराण्नामगायत्री, ९ पथ्यापंक्तिः, १२ पंक्तिः, १३ उरोबृहती, १५ विराड् जगती, १७ प्रस्तारपंक्तिः, २० विराट् प्रस्तारपंक्तिः, १६, १८ त्रिष्टुभौ, १९ चतुष्पदा जगती, २२ एकावसाना द्विपदाआर्ची उष्णिक्, २३ त्रिपदा भुरिग् विषमगायत्री, २४ प्रस्तारपंक्तिः, २८ त्रिपदा गायत्री, २९ ज्योतिष्मती जगती, ३२ द्व्यनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदा जगती, ३-११, १४, २२, २१, २५-२७, ३०, ३१ अनुष्टुभः। द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Countering Evil Designs
Meaning
May the ruler, blissful as moon and inspiring as soma, give us peace and security. Let the masters of the physical elements, science and technology of power and energy afford us peace and protection.
Translation
May the blissful Lord, the overruling sovereign, favour us; and may the lords of existence (bhūtasya patayah) favour us too.
Translation
May Soma the gracious Divinity and majestic governing forces give us favor.
Translation
A Tranquil king is the guardian of his subjects, and the giver of joy. May the world’s masters look on us with favor.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२२−(सोमः) ऐश्वर्यवान् (राजा) शासकः (अधिपाः) अधिकपालकः (मृडिता) सुखयिता (च) (भूतस्य पतयः) संसारस्य पालका राजपुरुषाः (नः) अस्मान् (मृडयन्तु) सुखयन्तु ॥
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