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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 21
    ऋषिः - प्रत्यङ्गिरसः देवता - कृत्यादूषणम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त
    78

    ग्री॒वास्ते॑ कृत्ये॒ पादौ॒ चापि॑ कर्त्स्यामि॒ निर्द्र॑व। इ॑न्द्रा॒ग्नी अ॒स्मान्र॑क्षतां॒ यौ प्र॒जानां॑ प्र॒जाव॑ती ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ग्री॒वा: । ते॒ । कृ॒त्ये॒ । पादौ॑ । च॒ । अपि॑ । क॒र्त्स्या॒मि॒ । नि: । द्र॒व॒ । इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑ । अ॒स्मान् । र॒क्ष॒ता॒म् । यौ । प्र॒ऽजाना॑म् । प्र॒जाव॑ती॒ इति॑ प्र॒जाऽव॑ती ॥१.२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ग्रीवास्ते कृत्ये पादौ चापि कर्त्स्यामि निर्द्रव। इन्द्राग्नी अस्मान्रक्षतां यौ प्रजानां प्रजावती ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ग्रीवा: । ते । कृत्ये । पादौ । च । अपि । कर्त्स्यामि । नि: । द्रव । इन्द्राग्नी इति । अस्मान् । रक्षताम् । यौ । प्रऽजानाम् । प्रजावती इति प्रजाऽवती ॥१.२१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 21
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।

    पदार्थ

    (कृत्ये) हे हिंसा क्रिया ! (ते) तेरी (ग्रीवाः) ग्रीवा की नाड़ियों (च) और (पादौ) दोनों पैरों को (अपि) भी (कर्त्स्यामि) मैं काटूँगा, (निः द्रव) निकल जा। (इन्द्राग्नी) वायु और अग्नि [के समान राजा और मन्त्री] (अस्मान्) हमारी (रक्षताम्) रक्षा करें, (यौ) जो दोनों (प्रजानाम्) प्रजाओं के बीच (प्रजावती) श्रेष्ठ प्रजावाली [माता के तुल्य हैं] ॥२१॥

    भावार्थ

    राजा और मन्त्री दुराचारियों के गले और पदादि अङ्ग कटवा कर प्रजा की सदा रक्षा करें ॥२१॥

    टिप्पणी

    २१−(ग्रीवाः) कण्ठनाडीः (ते) तव (कृत्ये) हे हिंसाक्रिये (पादौ, च, अपि) (कर्त्स्यामि) छेत्स्यामि (निर्द्रव) निर्गच्छ (इन्द्राग्नी) वाय्वग्नितुल्यौ राजमन्त्रिणौ (अस्मान्) प्रजागणान् (रक्षताम्) (यौ) (प्रजानाम्) प्रजानां मध्ये (प्रजावता) श्रेष्ठप्रजायुक्ता माता यथा ॥

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    विषय

    इन्द्राग्नी

    पदार्थ

    १.हे (कृत्ये) = शत्रुकृत् छेदन-भेदन क्रिया के लिए मनुष्यरूप में बनाई गई वस्तु! (ते ग्रीवा:) = तेरी गर्दन की नाड़ियों को (च पादौ अपि) = और पाँवों को भी (कर्त्स्यामि) = मैं छिन्न कर डालूँगा, अतः (निर्द्रव) = तू यहाँ से दूर भाग जा। २. (इन्द्राग्नी) = राष्ट्र में हमारे सेनापति व राजा अथवा व्यक्ति में बल व प्रकाश के तत्व (अस्मान् रक्षताम्) = हमारा रक्षण करें। (यौ) = बल व प्रकाश के तत्त्व अथवा सेनापति व राजा (प्रजानाम् प्रजावती) = प्रजाओं में प्रशस्त प्रजाओवाले हैं-अथवा माता के समान प्रजाओं का रक्षण करनेवाले हैं।

    भावार्थ

    हम शत्रुकृत् घातक प्रयोगों को दूर करनेवाले हों। बल व प्रकाश के तत्त्व हमारा रक्षण करें। ये दोनों तत्व प्रजाओं में प्रशस्त प्रजावाले हैं, अथवा सेनापति व राजा हमारा रक्षण करें।

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    भाषार्थ

    (कृत्ये) हे हिंस्र सेना ! (ते) तेरी (ग्रीवाः) गर्दनों को, (च) और (पादौ अपि) प्रत्येक सैनिक के दो-दो पैरों को भी (कर्त्स्यामि) मैं सेनाध्यक्ष काट दूंगा, (निर्द्रव) तु निकल भाग। (इन्द्राग्नी) हमारा सम्राट् और प्रधानमन्त्री हमारी (रक्षताम्) रक्षा करते हैं, (यौ) जो दो कि (प्रजानाम्) हमारी विविध प्रजाओं के (प्रजापती = प्रजापति) प्रजापति हैं।

    टिप्पणी

    [इन्द्राग्नी; इन्द्र= सम्राट्। "इन्द्रश्च सम्राट्” (यजु० ८।३७); इन्द्र के सहयोग से अग्नि है "ज्ञान प्रकाश" से प्रकाशित अग्रणी, अर्थात् प्रधानमन्त्री । “इन्द्राग्नी" पद द्वारा वैद्युतास्त्रों (मन्त्र २३) तथा आग्नेयास्त्रों की सत्ता को भी सूचित किया है। प्रजावती= प्रजापति (पैपलाद् शाखा)]।

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    विषय

    घातक प्रयोगों का दमन।

    भावार्थ

    हे (कृत्य) कृत्ये ! (ते) तेरे (ग्रीवाः) गर्दनें, गर्दन के मोहरों को और (पादौ) पावों को (अपि) भी (कर्त्स्यामि) काट डालूंगा। (निर्द्रव) नहीं तो यहां से निकल भाग। वे (इन्द्राग्नी) इन्द्र और अग्नि, राजा और सेनापति (अस्मान्) हमारी (रक्षताम्) रक्षा करें (यौ) जो दोनों (प्रजानां) प्रजाओं के लिये (प्रजावती) प्रजादाली माता के समान हैं।

    टिप्पणी

    (च०) ‘प्रजानां प्रजापती’ इति ह्विटनिकामितः पाठः। ‘इन्द्राग्नी एनां व्रश्चतां यौ प्रजानां प्रजापती’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रत्यंगिरसो ऋषिः। कृत्यादूषणं देवता। १ महाबृहती, २ विराण्नामगायत्री, ९ पथ्यापंक्तिः, १२ पंक्तिः, १३ उरोबृहती, १५ विराड् जगती, १७ प्रस्तारपंक्तिः, २० विराट् प्रस्तारपंक्तिः, १६, १८ त्रिष्टुभौ, १९ चतुष्पदा जगती, २२ एकावसाना द्विपदाआर्ची उष्णिक्, २३ त्रिपदा भुरिग् विषमगायत्री, २४ प्रस्तारपंक्तिः, २८ त्रिपदा गायत्री, २९ ज्योतिष्मती जगती, ३२ द्व्यनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदा जगती, ३-११, १४, २२, २१, २५-२७, ३०, ३१ अनुष्टुभः। द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Countering Evil Designs

    Meaning

    O mischief, evil and sabotage, better be off at once. I will cut off your head and your feet too. Indragni, commander and ruler with fire power and electric forces, are our protectors and defenders of the people, they protect us.

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    Translation

    O harmful design, I will slash your neck-bones, and also your feet. Flee away. May the resplendent Lord (Indra) and the adorable Lord (Agni), protect us; they who protect like a mother her children.

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    Translation

    Let this device run away, I will cut its throat and also the feet, let the electricity and fire which are like the mother having children amongst the subject, guard us.

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    Translation

    O destructive army, I will cut thy throat and hew thy feet off, run, begone! May the king and Commander shield us. These two protect the subjects like a prolific mother.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २१−(ग्रीवाः) कण्ठनाडीः (ते) तव (कृत्ये) हे हिंसाक्रिये (पादौ, च, अपि) (कर्त्स्यामि) छेत्स्यामि (निर्द्रव) निर्गच्छ (इन्द्राग्नी) वाय्वग्नितुल्यौ राजमन्त्रिणौ (अस्मान्) प्रजागणान् (रक्षताम्) (यौ) (प्रजानाम्) प्रजानां मध्ये (प्रजावता) श्रेष्ठप्रजायुक्ता माता यथा ॥

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