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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 8
    ऋषिः - प्रत्यङ्गिरसः देवता - कृत्यादूषणम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त
    145

    यस्ते॒ परूं॑षि संद॒धौ रथ॑स्येव॒र्भुर्धि॒या। तं ग॑च्छ॒ तत्र॒ तेऽय॑न॒मज्ञा॑तस्ते॒ऽयं जनः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । ते॒ । परूं॑षि । स॒म्ऽद॒धौ । रथ॑स्यऽइव । ऋ॒भु: । धि॒या । तम् । ग॒च्छ॒ । तत्र॑ । ते॒ । अय॑नम् । अज्ञा॑त: । ते॒ । अ॒यम् । जन॑: ॥१.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्ते परूंषि संदधौ रथस्येवर्भुर्धिया। तं गच्छ तत्र तेऽयनमज्ञातस्तेऽयं जनः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । ते । परूंषि । सम्ऽदधौ । रथस्यऽइव । ऋभु: । धिया । तम् । गच्छ । तत्र । ते । अयनम् । अज्ञात: । ते । अयम् । जन: ॥१.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे हिंसा क्रिया !] (यः) जिस [शत्रु] ने (ते) तेरे (परूंषि) जोड़ों को (सन्दधौ) जोड़ा था, (इव) जैसे (ऋभुः) बुद्धिमान् [शिल्पी] (रथस्य) रथ के [जोड़ों को] (धिया) अपनी बुद्धि से (तम्) उसको (गच्छ) पहुँच, (तत्र) वहाँ पर (ते) तेरा (अयनम्) घर है, (अयम्) यह (जनः) पुरुष (ते) तेरा (अज्ञातः) अनजान [होवे] ॥८॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य प्रपञ्च रचकर प्रजा जनों को गुप्त रीति से सतावें, उन्हें दण्ड दिया जावे ॥८॥

    टिप्पणी

    ८−(यः) शत्रुः (ते) तव (परूंषि) अवयवान् (संदधौ) संयोजितवान् (रथस्य) (इव) (ऋभुः) अ० १।२।३। मेधावी-निघ० ३।१५। शिल्पी (धिया) बुद्ध्या (तम्) शत्रुम् (गच्छ) प्राप्नुहि (तत्र) (ते) तव (अयनम्) गृहम् (अज्ञातः) अपरिचितः (अयम्) (जनः) ॥

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    विषय

    ऋभुः धिया रथस्य इव

    पदार्थ

    १. (इव) = जैसे (ऋभुः) = शिल्पी (रथस्य) = रथ के जोड़ों को (धिया) = बुद्धि के द्वारा मिला देता है, उसी प्रकार (यः) = जिसने बड़ी चतुरता से हे कृत्ये! (ते परषि संदधौ) = तेरे पों को जोड़ा है, तु (तं गच्छ) = उसी को प्राप्त हो, (तत्र ते अयनम्) = वहाँ ही तेरा निवास-स्थान है, (अयं जन:) = यह जन, अर्थात् हम लोग (ते अज्ञात:) = तेरे अज्ञात ही हों।

     

    भावार्थ

    कृत्या का चतुर निर्माता ही कृत्या का शिकार बने। हिंसा का प्रयोग करनेवाला ही उस प्रयोग से हिंसित हो।

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    भाषार्थ

    (यः) जिस ने [हे परकीय सेना] (ते) तेरे (परुंषि) जोड़ों को (संदधौ) जोड़ा है, (इव) जैसे कि (ऋभुः) तरवीन (धिया) बुद्धिपूर्वक (रथस्य) रथ के जोड़ों को जोड़ता है, (तम्) उस के प्रति (गच्छ) तू चली जा, (तत्र) वहां (ते) तेरा (अयनम्) आश्रय है, घर है, (अयम्) यह (जनः) जनसमुदाय अर्थात् जनपद (ते) तेरे लिये (अज्ञातः) अज्ञात सा हो जाय।

    टिप्पणी

    [सेना की कई टुकड़ियां होती हैं, उन को इकट्ठा कर के सेना तय्यार होती है; तथा सेना चतुरंगिणी होती है। प्रत्येक अङ्ग, सेना का एक जोड़ है। इन्हें परस्पर संग्रह कर के मुख्य सेना बनती है। सर्वोपरि सेनापति निज बुद्धनुसार इन्हें परस्पर जोड़ता है]।

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    विषय

    घातक प्रयोगों का दमन।

    भावार्थ

    (ऋभुः) विद्वान् शिल्पी (रथस्य इव) जिस प्रकार रथ के जोड़ जोड़ मिला कर (धिया) अपनी बुद्धि और शिल्प कारीगरी से जोड़ देता है उसी प्रकार (यः) जो (ते परूंषि) तेरे पोरू पोरू को (सं-दधौ) जोड़ता है तू (तं गच्छ) उसी को प्राप्त हो (तत्र ते अयनम्) वहां ही तेरा निवासस्थान है। (अयं जनः) यह जन अर्थात् हम लोग (ते अज्ञातः) तेरा जाने हुए भी नहीं हैं।

    टिप्पणी

    ‘रथस्येव ऋभुर्विया’ इत्यपि क्वचित् पाठः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रत्यंगिरसो ऋषिः। कृत्यादूषणं देवता। १ महाबृहती, २ विराण्नामगायत्री, ९ पथ्यापंक्तिः, १२ पंक्तिः, १३ उरोबृहती, १५ विराड् जगती, १७ प्रस्तारपंक्तिः, २० विराट् प्रस्तारपंक्तिः, १६, १८ त्रिष्टुभौ, १९ चतुष्पदा जगती, २२ एकावसाना द्विपदाआर्ची उष्णिक्, २३ त्रिपदा भुरिग् विषमगायत्री, २४ प्रस्तारपंक्तिः, २८ त्रिपदा गायत्री, २९ ज्योतिष्मती जगती, ३२ द्व्यनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदा जगती, ३-११, १४, २२, २१, २५-२७, ३०, ३१ अनुष्टुभः। द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Countering Evil Designs

    Meaning

    O force of attack, go back to the expert maker who designed you and intelligently put your parts together to structure you. That is your real place. This target people is unknown to you and you are unknown to them. (This mantra may be interpreted as the preliminary response of a peace loving people to an impending danger of attack. If a nation is accepted as a nation of peace, an attack would be an act of desecration.)

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    Translation

    Whoever has put your joints together with thought, as a skilled carpenter those of a chariot, to him may you go. "Thereto lies your way. Let this person be quite unknown (ajnatah) to you.

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    Translation

    Let this device treat us as unknown ones and return back to that skilled man who by his skill made the parts of it like a dexter artist who makes the parts of the Chariot as there is the home of it.

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    Translation

    O violent deed, he who composed thy limbs, as a deft artisan builds a car with skill, go to him: thither lies thy way! This man is quite unknown to thee.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(यः) शत्रुः (ते) तव (परूंषि) अवयवान् (संदधौ) संयोजितवान् (रथस्य) (इव) (ऋभुः) अ० १।२।३। मेधावी-निघ० ३।१५। शिल्पी (धिया) बुद्ध्या (तम्) शत्रुम् (गच्छ) प्राप्नुहि (तत्र) (ते) तव (अयनम्) गृहम् (अज्ञातः) अपरिचितः (अयम्) (जनः) ॥

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