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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 7
    ऋषिः - प्रत्यङ्गिरसः देवता - कृत्यादूषणम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त
    136

    यस्त्वो॒वाच॒ परे॒हीति॑ प्रति॒कूल॑मुदा॒य्यम्। तं कृ॑त्येऽभि॒निव॑र्तस्व॒ मास्मानि॑च्छो अना॒गसः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । त्वा॒ । उ॒वाच॑ । परा॑ । इ॒हि॒ । इति॑ । प्र॒ति॒ऽकूल॑म् । उ॒त्ऽआ॒य्य᳡म् । तम् । कृ॒त्ये॒ । अ॒भि॒ऽनिव॑र्तस्व । मा । अ॒स्मान् । इ॒च्छ॒: । अ॒ना॒गस॑: ॥१.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्त्वोवाच परेहीति प्रतिकूलमुदाय्यम्। तं कृत्येऽभिनिवर्तस्व मास्मानिच्छो अनागसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । त्वा । उवाच । परा । इहि । इति । प्रतिऽकूलम् । उत्ऽआय्यम् । तम् । कृत्ये । अभिऽनिवर्तस्व । मा । अस्मान् । इच्छ: । अनागस: ॥१.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।

    पदार्थ

    (यः) जिस [दुष्ट] ने (त्वा) तुझ से (उवाच) कहा−“(उदाय्यम्) उदय को प्राप्त हुए (प्रतिकूलम्) विरुद्ध पक्षवाले शत्रु को (परा इहि इति) जाकर प्राप्त हो”। (कृत्ये) हे हिंसा क्रिया ! (तम्) उसकी ओर (अभिनिवर्तस्व) लौटकर जा, (अस्मान्) हम (अनागसः) निर्दोषियों को (मा इच्छः) मत चाह ॥७॥

    भावार्थ

    जो दुष्ट जन धर्मात्माओं को शत्रु जान कर सतावें, उन्हें पूरा-पूरा दण्ड मिले ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(यः) शत्रुः (त्वा) त्वाम् (उवाच) कथितवान् (परा) दूरे (इहि) प्राप्नुहि (इति) वाक्यसमाप्तौ (प्रतिकूलम्) विरुद्धपक्षवन्तं शत्रुम् (उदाय्यम्) उत्+आय-यत्। उदयं गच्छन्तम् (तम्) शत्रुम् (कृत्ये) म० ४। हे हिंसाक्रिये (अभिनिवर्तस्व) अभितो निवर्त्य प्राप्नुहि (मा इच्छः) मा वाञ्छ (अनागसः) निर्दोषान् ॥

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    विषय

    मा अस्मान् इच्छ: अनागस:

    पदार्थ

    १. हे (कृत्ये) = हिंसा के प्रयोग! (य:) = जिसने (त्वा उवाच) = तुझे यह कहा कि (परा इह एति) = परे जा और अमुक को मार, तू (तम्) = उस (प्रतिकूलम्) = हमारे विरोध में (उदाय्यम्) = [उत् अय्। य] उठनेवाले शत्रु के पास ही (अभिनिवर्तस्य) = वापस लौट जा, (अनागसः अस्मान् मा इच्छ:) = निरपराध हम लोगों को मारने की इच्छा मत कर।

    भावार्थ

    कृत्या-प्रयोग हम निरपराधियों को मारनेवाला न हो। यह प्रयोक्ता का ही विनाश करे।

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    भाषार्थ

    (प्रतिकूलम्) शत्रुसेना के प्रतिकूल (उदाय्यम्) उत्थित हुए (त्वा) तुझ को हे हमारे सेनाध्यक्ष ! (यः) जो परकीय सेनाध्यक्ष (उवाच) कहता है कि (परेहि इति) परे हट जा, हे (कृत्ये) हमारी सेना ! (तम् अभि) उस के संमुख (निवर्तस्व) तू नितरां प्रवृत्त हो, और शत्रु के सेनाध्यक्ष को कह कि (अनागसः अस्मान्) हम निरपराधियों के [हनन की] (मा इच्छ) इच्छा न कर।

    टिप्पणी

    [उदाय्यम् = उद् + अय (गतौ), उद्गगत हुए, उत्थित हुए। निरपराधियों के राष्ट्र पर आक्रमण करने का निषेध मन्त्र ने किया है]

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    विषय

    घातक प्रयोगों का दमन।

    भावार्थ

    हे (कृत्ये) घातक प्रयोग ! (यः) जिस पुरुष ने (त्वा) तुझको (उवाच) कहा है कि (परा इहि) ‘परे जा अमुक को मार’ तू (तं) उस (प्रतिकूलम्) हमारे प्रतिकूल, हमारे विरोध में (उदाय्यं) उठने वाले उस शत्रु के पास ही (अभि-निवर्त्तस्व) लौट जा। (अस्मान् अनागसः) हम निरपराधों को (मा इच्छः) मत चाह।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘उदाप्यम्’, ‘उदाज्यम्’, ‘उदाह्यम्’ ‘उदार्य्यम्’ इत्यपि पाठाः क्वचित् क्वचित्। ‘उदाप्यमिति’ ह्विटनिकामितः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रत्यंगिरसो ऋषिः। कृत्यादूषणं देवता। १ महाबृहती, २ विराण्नामगायत्री, ९ पथ्यापंक्तिः, १२ पंक्तिः, १३ उरोबृहती, १५ विराड् जगती, १७ प्रस्तारपंक्तिः, २० विराट् प्रस्तारपंक्तिः, १६, १८ त्रिष्टुभौ, १९ चतुष्पदा जगती, २२ एकावसाना द्विपदाआर्ची उष्णिक्, २३ त्रिपदा भुरिग् विषमगायत्री, २४ प्रस्तारपंक्तिः, २८ त्रिपदा गायत्री, २९ ज्योतिष्मती जगती, ३२ द्व्यनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदा जगती, ३-११, १४, २२, २१, २५-२७, ३०, ३१ अनुष्टुभः। द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Countering Evil Designs

    Meaning

    O force of attack, whoever stood up against us, fired you and ordered: “Go forward and attack”, go back to the same. Try not to hurt us, we are innocent peace loving people. (This is not a magic mantra of avoiding or facing the enemy attack with mere chant of words. It is the formula of interception of the missile and sending it back upon the enemy just as a grenade-target soldier smartly picks up the unexploded grenade and throws it back upon the enemy.)

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    Translation

    Whoso has said to you "Go forward, against all odds and against the stream", O harmful design, may you go back to him, seek not us, the innocents.

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    Translation

    Let this device return back to that foeman who launched this device against us telling it to go away and kill and let it not desire us who are innocent.

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    Translation

    Whoever said to thee, "Go forth against the advancing foeman." To him Violent deed, go thou back. Pursue not us, the sinless ones.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(यः) शत्रुः (त्वा) त्वाम् (उवाच) कथितवान् (परा) दूरे (इहि) प्राप्नुहि (इति) वाक्यसमाप्तौ (प्रतिकूलम्) विरुद्धपक्षवन्तं शत्रुम् (उदाय्यम्) उत्+आय-यत्। उदयं गच्छन्तम् (तम्) शत्रुम् (कृत्ये) म० ४। हे हिंसाक्रिये (अभिनिवर्तस्व) अभितो निवर्त्य प्राप्नुहि (मा इच्छः) मा वाञ्छ (अनागसः) निर्दोषान् ॥

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