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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 12
    ऋषिः - प्रत्यङ्गिरसः देवता - कृत्यादूषणम् छन्दः - पङ्क्तिः सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त
    118

    दे॑वैन॒सात्पित्र्या॑न्नामग्रा॒हात्सं॑दे॒श्यादभि॒निष्कृ॑तात्। मु॒ञ्चन्तु॑ त्वा वी॒रुधो॑ वीर्येण॒ ब्रह्म॑णा ऋ॒ग्भिः पय॑स॒ ऋषी॑णाम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒व॒ऽए॒न॒सात् । प‍ित्र्या॑त् । ना॒म॒ऽग्रा॒हात् । स॒म्ऽदे॒श्या᳡त् । अ॒भि॒ऽनिष्कृ॑तात् । मु॒ञ्चन्तु॑ । त्वा॒ । वी॒रुध॑: । वी॒र्ये᳡ण । ब्रह्म॑णा । ऋ॒क्ऽभि: । पय॑सा । ऋषी॑णाम् ॥१.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवैनसात्पित्र्यान्नामग्राहात्संदेश्यादभिनिष्कृतात्। मुञ्चन्तु त्वा वीरुधो वीर्येण ब्रह्मणा ऋग्भिः पयस ऋषीणाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवऽएनसात् । प‍ित्र्यात् । नामऽग्राहात् । सम्ऽदेश्यात् । अभिऽनिष्कृतात् । मुञ्चन्तु । त्वा । वीरुध: । वीर्येण । ब्रह्मणा । ऋक्ऽभि: । पयसा । ऋषीणाम् ॥१.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 12
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।

    पदार्थ

    (देवैनसात्) विजयी पुरुषों के लिये पाप से, (पित्र्यात्) पितरों [माता पिता गुरु आदि] के लिये पाप से, (संदेश्यात्) अभीष्ट और (अभिनिष्कृतात्) प्रतिकूल सिद्ध किये हुए (नामग्राहात्) नामग्रहण से (वीरुधः) ओषधें [ओषधिसमान उपकारी लोग] (त्वा) तुझको (वीर्येण) अपने सामर्थ्य द्वारा, (ब्रह्मणा) तप द्वारा, (ऋग्भिः) वेदवाणियों द्वारा और (ऋषीणाम्) ऋषियों के (पयसा) ज्ञान द्वारा (मुञ्चन्तु) मुक्त करें ॥१२॥

    भावार्थ

    विद्वान् लोग दुष्कर्मियों को धर्मानुसार दण्ड देकर और यथावत् वेदादि शास्त्रों के उपदेश से उनको उनके दुष्ट स्वभावों से छोड़ावें ॥१२॥

    टिप्पणी

    १२−(देवैनसात्) विजिगीषून् प्रति पापात् (पित्र्यात्) अ० ६।१२०।२। पितॄन् प्रति पापात् (नामग्राहात्) मिथ्यापवादात् (संदेश्यात्) म० ११। अभीष्टात् (अभिनिष्कृतात्) प्रतिकूलं साधितात् (मुञ्चन्तु) (त्वा) (वीरुधः) ओषधिवदुपकारिणः (वीर्येण) स्वसामर्थ्येन (ब्रह्मणा) तपसा (ऋग्भिः) वेदवाग्भिः (पयसा) पय गतौ-असुन्। ज्ञानेन (ऋषीणाम्) कृतसाक्षात्धर्मणाम् ॥

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    विषय

    वीरुधः वीर्येण, ब्रह्मणः ऋग्भिः, ऋषीणां पयसः

    पदार्थ

    १. (देवैनसात्) = देवों के विषय में किये गये पाप से, अर्थात् देवयज्ञ आदि न करने से, (पित्र्यात) = पितरों के विषय में किये गये पाप से-उनका उचित आदर न करने से (नामग्राहात्) = नाम लेते रहने से, अर्थात् दूसरों पर झूठा दोष लगाने से, (सन्देश्यात्) = दान के विषय में होनेवाले पाप से तथा (अभिनिष्कृतात्) = [Injuring. speaking ill or] हिंसन व बुराई करने से (त्वा) = तुझे सब देव (मुञ्चन्तु) = मुक्त करें। सब देव (वीरुधः वीर्येण) = लताओं के वीर्य से लताओं के भोजन से उत्पन्न शक्ति के द्वारा, (ब्रह्मणः ऋग्भिः) = वेदज्ञान की ऋचाओं से-विज्ञान प्रतिपादक मन्त्रों से तथा (ऋषीणां पयसा) = मन्त्रगष्टा ऋषियों द्वारा दिये गये ज्ञानदुग्ध से तुझे दोषों से मुक्त करें।

    भावार्थ

    हम ओषधि व वनस्पतियों का भोजन करते हुए शरीर में शक्ति का सम्पादन करें। वेद की ऋचाओं से विज्ञान को प्राप्त करें। ऋषियों के प्रवचनों से ज्ञानदुग्ध को प्राप्त करें। इसप्रकार हमारे सब पाप व पापवृत्तियाँ दूर हो जाएँगी।

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    भाषार्थ

    (देवैनसात्) देवों अर्थात् इन्द्रियों द्वारा किये पाप से, (पित्र्यात्) माता-पिता द्वारा प्राप्त शारीरिक रोग से, (नामग्राहात्) निरपराधी का नाम लेकर उस पर दोषारोपणजन्य पाप से, (संदेश्यात्) देशहित की दृष्टि से किये गये सामूहिक पाप से, (अभिनिष्कृतात्) निष्कृति अर्थात् वैरनिर्यातन के रूप में किये गए पाप से (त्वा) तुझे (वोरुधः) ओषधियां (वीर्येण) निज शक्ति द्वारा (मुञ्चन्तु) मुक्त करें। तथा (ब्रह्मण) ब्रह्मोपासना द्वारा (ऋग्भिः) ऋचाओं के स्वाध्याय द्वारा, (ऋषीणाम्) ऋषियों के (पयस) दुग्ध सदृश सदुपदेशों द्वारा [विद्वज्जन] तुझे पापों से मुक्त करें।

    टिप्पणी

    [ब्रह्मण= ब्रह्मणा [पदपाठे], पयस=पयसा [पदपाठे]। देव= इन्द्रियां]।

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    विषय

    घातक प्रयोगों का दमन।

    भावार्थ

    (वीरुधः) नाना प्रकार से पाप से रोकने वाली प्रायश्चित्त क्रियाएं या ज्ञान-वल्लियां, या ओषधियों के समान कष्टनिवारण करने हारी होकर (त्वा) तुझको (देव-एनसात्) विद्वानों के प्रति किये पापाचरण से, (पित्र्यात्) अपने पालक माता पिता गुरुओं के प्रति किये अपराध से और (नाम-ग्राहात्) किसी के प्रति भी बुरे नाम करने या बुरी तरह से पुकारने के अपराध से और (संदेशयात्) संदेश किसी के प्रति किये गये तानों से उत्पन्न अपराध से और (अभि-निः कृतात्) किसी के प्रति अत्याचार या अपमान या दुत्कार देने से उत्पन्न पाप से (त्वा) तुझे (ब्रह्मणः वीर्येण) ब्रह्मज्ञान रूप बल से (ऋग्भिः) वेदमन्त्रों द्वारा प्राप्त (ऋषीणां पयसा) ऋषियों के तृप्तिकारक उपदेशों से (मुञ्चन्तु) तुझे छुड़ावें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रत्यंगिरसो ऋषिः। कृत्यादूषणं देवता। १ महाबृहती, २ विराण्नामगायत्री, ९ पथ्यापंक्तिः, १२ पंक्तिः, १३ उरोबृहती, १५ विराड् जगती, १७ प्रस्तारपंक्तिः, २० विराट् प्रस्तारपंक्तिः, १६, १८ त्रिष्टुभौ, १९ चतुष्पदा जगती, २२ एकावसाना द्विपदाआर्ची उष्णिक्, २३ त्रिपदा भुरिग् विषमगायत्री, २४ प्रस्तारपंक्तिः, २८ त्रिपदा गायत्री, २९ ज्योतिष्मती जगती, ३२ द्व्यनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदा जगती, ३-११, १४, २२, २१, २५-२७, ३०, ३१ अनुष्टुभः। द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Countering Evil Designs

    Meaning

    May these herbs with their essential properties, and men of love and light with divine wisdom, Vedic hymns, and the life giving nectar of the Rshis’ words absolve you of the want and sin for and against the divinities of nature and humanity, parents, exceptional acts and accusations.

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    Translation

    From sin against the enlightened ones, against the elders, and from being named, from the evil proposed and arranged, may these medicinal plants relieve you by power of knowledge, - by Rk verses, and by the vital spirit of the seers.

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    Translation

    Let the precautionary measures of right thought dawned through the vigor of Knowledge, by the prayers and by the teachings of seers free you from the evils intended to play against learned men, against the learned old parents and reproachment, taunts and the intention of humiliating anyone.

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    Translation

    O man, from sin against the learned and the parents from the sin of slander abusive oratory, and the disgrace of others, these self-sacrificing people shall release thee by their spiritual power, Vedic teachings and the knowledge of the sages.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १२−(देवैनसात्) विजिगीषून् प्रति पापात् (पित्र्यात्) अ० ६।१२०।२। पितॄन् प्रति पापात् (नामग्राहात्) मिथ्यापवादात् (संदेश्यात्) म० ११। अभीष्टात् (अभिनिष्कृतात्) प्रतिकूलं साधितात् (मुञ्चन्तु) (त्वा) (वीरुधः) ओषधिवदुपकारिणः (वीर्येण) स्वसामर्थ्येन (ब्रह्मणा) तपसा (ऋग्भिः) वेदवाग्भिः (पयसा) पय गतौ-असुन्। ज्ञानेन (ऋषीणाम्) कृतसाक्षात्धर्मणाम् ॥

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