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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 26
    ऋषिः - प्रत्यङ्गिरसः देवता - कृत्यादूषणम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त
    97

    परे॑हि कृत्ये॒ मा ति॑ष्ठो वि॒द्धस्ये॑व प॒दं न॑य। मृ॒गः स मृ॑ग॒युस्त्वं न त्वा॒ निक॑र्तुमर्हति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परा॑ । इ॒हि॒ । कृ॒त्ये॒ । मा । ति॒ष्ठ॒: । वि॒ध्दस्य॑ऽइव । प॒दम् । न॒य॒ । मृ॒ग: । स: । मृ॒ग॒ऽयु: । त्वम् । न । त्वा॒ । निऽक॑र्तृम् । अ॒र्ह॒ति॒ ॥१.२६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परेहि कृत्ये मा तिष्ठो विद्धस्येव पदं नय। मृगः स मृगयुस्त्वं न त्वा निकर्तुमर्हति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परा । इहि । कृत्ये । मा । तिष्ठ: । विध्दस्यऽइव । पदम् । नय । मृग: । स: । मृगऽयु: । त्वम् । न । त्वा । निऽकर्तृम् । अर्हति ॥१.२६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 26
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।

    पदार्थ

    (कृत्ये) हे हिंसा ! (परा इहि) चली जा, (मा तिष्ठः) मत खड़ी हो, (विद्धस्य) घायल के [पद से] (इव) जैसे (पदम्) ठिकाने को (नय) पाले। [हे शूर !] (सः) वह [शत्रु] (मृगः) मृग [समान है], और (त्वम्) तू (मृगयुः) व्याध [समान है], वह (त्वा) तुझको (न) नहीं (निकर्तुम् अर्हति) गिरा सकता है ॥२६॥

    भावार्थ

    राजा प्रयत्नपूर्वक अन्वेषण करके दुराचारियों का खोज लगावे, जैसे व्याध घायल आखेट के रुधिर चिह्न से उसे ढूढ़ लेता है ॥२६॥ मनु महाराज कहते हैं−अध्याय ८ श्लोक ४४ ॥ यथा नयत्यसृक्पातैर्मृगस्य मृगयुः पदम्। नयेत्तथानुमानेन धर्मस्य नृपतिः पदम् ॥१॥ जैसे व्याध रुधिर के गिरने से मृग का ठिकाना पा लेता है, वैसे ही राजा अनुमान से धर्म का ठिकाना पावे ॥१॥

    टिप्पणी

    २६−(परेहि) निर्गच्छ (कृत्ये) हे हिंसे (मा तिष्ठः) (विद्धस्य) व्यध ताडने-क्त। प्रहृतस्य (इव) (पदम्) स्थानम् (नय) प्राप्नुहि (मृगः) (सः) शत्रुः (मृगयुः) मृगय्वादयश्च। उ० १।३७। मृग+या प्रापणे-कु। व्याधः (त्वम्) (न) निषेधे (त्वा) (निकर्तुम्) अभिभवितुम् (अर्हति) युज्यते ॥

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    विषय

    मृगः सः, मृगयुः त्वं

    पदार्थ

    १. हे (कृत्ये) = हिंसाक्रिये! तू (परा इहि) = यहाँ से दूर जा, (मा तिष्ठः) = हमारे समीप स्थित मत हो। (विद्धस्य एव) = बाण से घायल शिकार के पैरों के निशान देखकर जिस प्रकार शिकार खोज लिया जाता है, उसी प्रकार तू (पदं नय) = शत्रु के पैर खोज-खोजकर उस तक पहुँच जा। २. हे कृत्ये! (सः मृग:) =  वह शत्रु मृग है, (त्वं मृगयुः) = तू उस मृग का शिकार करनेवाली है। वह (त्वा) = तुझे (निकर्तुं न अर्हति) = काटने योग्य नहीं है। तू उसी के पास लौटकर उसका छेदन करनेवाली हो।

    भावार्थ

    हे कृत्ये! तू अपने करनेवाले के समीप ही पहुँच। तू उसी को नष्ट कर। तुझ मृगयु का वह मृग है। तुझे उसको मारना है, वह तुझे नहीं मार सकता।

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    भाषार्थ

    (कृत्ये) हे हिंस्रसेना ! (परा इहि) परे चली जा, (मा तिष्ठः) यहां न ठहर, (विद्धस्य) विद्ध हुए [मृग] के (इव) सदृश (पदम्) मार्ग को (नय) पकड़। (सः) वह परकीय सेनापति (मृगः) मृग है, (त्वम्) और तू हमारा सेनापति (मुगयुः) मृग का शिकारी है। वह परकीय सेनापति (त्वा) तुझे (निकर्तुम्) नीचा करने की (न अर्हति) योग्यता नहीं रखता।

    टिप्पणी

    [निकर्तुम्; निकारः=Killing, Humitiation (आप्टे), अर्थात् हनन करना, अपमान करना]।

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    विषय

    घातक प्रयोगों का दमन।

    भावार्थ

    हे (कृत्ये) कृत्ये सेने ! (परा इहि) परे चली जा। (मा तिष्ठ) कहीं मत ठहर। (विद्धस्य पद इव) बाण से घायल शिकार के पैरों के निशान देखकर जिस प्रकार शिकार खोज लिया जाता है उसी प्रकार तू शत्रु के (पदं नय) पैर खोज खोज कर उस तक पहुंच जा। (मृगः सः) वह शत्रु मृग है। (त्वं मृगयुः) तू शिकारी है। वह शत्रु (त्वा) तुझे (निकर्तुम् न अर्हसि) दबा नहीं सकता।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रत्यंगिरसो ऋषिः। कृत्यादूषणं देवता। १ महाबृहती, २ विराण्नामगायत्री, ९ पथ्यापंक्तिः, १२ पंक्तिः, १३ उरोबृहती, १५ विराड् जगती, १७ प्रस्तारपंक्तिः, २० विराट् प्रस्तारपंक्तिः, १६, १८ त्रिष्टुभौ, १९ चतुष्पदा जगती, २२ एकावसाना द्विपदाआर्ची उष्णिक्, २३ त्रिपदा भुरिग् विषमगायत्री, २४ प्रस्तारपंक्तिः, २८ त्रिपदा गायत्री, २९ ज्योतिष्मती जगती, ३२ द्व्यनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदा जगती, ३-११, १४, २२, २१, २५-२७, ३०, ३१ अनुष्टुभः। द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Countering Evil Designs

    Meaning

    O force and mishief of violence and evil, shoot off, tarry not a moment, follow your own footsteps you came by as a hunter follows the foot-marks of the hunted deer and reach your place of origin. Now you are the hunter and he, your creator, is the target deer. Now you destroy him, he cannot destroy you.

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    Translation

    O harmful design, go away; stay not here. Follow in his tracks as if those of a wounded quarry (object of hunt). He is the hunted animal (mrgah) and you are the hunter (mrgayuh). He is unable to counter you.

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    Translation

    Let this device go, let it not stay, let it pursue the makers foot as the hunter pursues the track of wounded animal-prey. The enemy is the prey and this device is hunter, the prey cannot humble the hunter.

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    Translation

    O violent army! begone, stay not. Just as a wounded animal is traced by his feet, so tracing the feet, reach thy foe. He is the chase, the hunter thou: he may not slight or humble thee.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २६−(परेहि) निर्गच्छ (कृत्ये) हे हिंसे (मा तिष्ठः) (विद्धस्य) व्यध ताडने-क्त। प्रहृतस्य (इव) (पदम्) स्थानम् (नय) प्राप्नुहि (मृगः) (सः) शत्रुः (मृगयुः) मृगय्वादयश्च। उ० १।३७। मृग+या प्रापणे-कु। व्याधः (त्वम्) (न) निषेधे (त्वा) (निकर्तुम्) अभिभवितुम् (अर्हति) युज्यते ॥

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