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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 3
    ऋषिः - प्रत्यङ्गिरसः देवता - कृत्यादूषणम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त
    378

    शू॒द्रकृ॑ता॒ राज॑कृता॒ स्त्रीकृ॑ता ब्र॒ह्मभिः॑ कृ॒ता। जा॒या पत्या॑ नु॒त्तेव॑ क॒र्तारं॒ बन्ध्वृ॑च्छतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शूद्रऽकृ॑ता । राज॑ऽकृता । स्त्रीऽकृ॑ता । ब्र॒ह्मऽभि॑: । कृ॒ता । जा॒या । पत्या॑ । नु॒त्ताऽइ॑व । क॒र्तार॑म् । बन्धु॑ । ऋ॒च्छ॒तु॒ ॥१.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शूद्रकृता राजकृता स्त्रीकृता ब्रह्मभिः कृता। जाया पत्या नुत्तेव कर्तारं बन्ध्वृच्छतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शूद्रऽकृता । राजऽकृता । स्त्रीऽकृता । ब्रह्मऽभि: । कृता । जाया । पत्या । नुत्ताऽइव । कर्तारम् । बन्धु । ऋच्छतु ॥१.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।

    पदार्थ

    (शूद्रकृता) शूद्रों के लिये की हुई, (राजकृता) राजाओं के लिये की हुई, (स्त्रीकृता) स्त्रियों के लिये की हुई, (ब्रह्मभिः=ब्रह्मभ्यः) ब्राह्मणों के लिये (कृता) की हुई [हिंसा क्रिया] (कर्तारम्) हिंसक पुरुष को (बन्धु) बन्धनसमान (ऋच्छतु) चली जावे, (इव) जैसे (पत्या) पति करके (नुत्ता) दूर की गई (जाया) पत्नी ॥३॥

    भावार्थ

    जो दुष्कर्मी शूद्र, क्षत्रिय, स्त्री और विद्वानों पर अत्याचार करें, राजा उनको इस प्रकार बन्धन में करे, जैसे पति से निकाली गयी व्यभिचारिणी स्त्री बन्धन में की जाती है ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(शूद्रकृता) शूद्राय कृता (राजकृता) राजभ्यो निष्पादिता (स्त्रीकृता) स्त्रीभ्यः साधिता (ब्रह्मभिः) सुपां सुपो भवन्ति। वा० पा० ७।१।३९। चतुर्थ्यर्थे तृतीया। ब्रह्मभ्यः वेदज्ञानिभ्यः (कृता) (जाया) दुष्टा भार्या (पत्या) स्वामिना (नुत्ता) दूरीकृता (इव) यथा (कर्तारम्) कृञ् हिंसायाम्−तृच्। हिंसकम् (बन्धु) बन्धनं यथा (ऋच्छतु) गच्छतु ॥

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    विषय

    जाया पत्या नुत्ता इव

    पदार्थ

    १. (शूद्रकृता) = श्रमिकों से की गई, (राजकृता) = राजाओं से की गई, (स्वीकता) = स्त्रियों से की गई तथा (ब्रह्मभिः कृता) = ब्राह्मणों से की गई कृत्या (कर्तारम्) = कृत्या के करनेवाले को इसप्रकार (ऋच्छत) = प्राप्त हो, (इव) = जैसे (पत्या नुत्ता) = पति से परे धकेली हुई (जाया) = पत्नी (बन्धु) = अपने मातृ बन्धुओं को पुनः प्राप्त होती है।

    भावार्थ

    शूद्रों, राजाओं, स्त्रियों व ब्राह्मणों से की गई कृत्या कर्ता को पुन: इसप्रकार प्राप्त हो, जैसेकि पति से परे धकेली हुई पत्नी अपने मातबन्धुओं को पुन: प्राप्त होती है।

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    भाषार्थ

    (शूद्रकृता) शूद्रों द्वारा रची गई, (राजकृता) राजाओं द्वारा रची गई, (स्त्रीकृता) स्त्रियों द्वारा रची गई, (ब्रह्मभिः कृता) ब्राह्मणों द्वारा रची गई कृत्या अर्थात् शत्रुसेना (कर्तारम्) रचने वाले राष्ट्र को (ऋच्छतु) वापिस पहुंचे, (इव) जैसे कि (पत्या) पति द्वारा (नुत्ता) धकेली गई (जाया) पत्नी (कर्तारम्, बन्धु) उत्पादक बन्धु के प्रति लौट आती है।

    टिप्पणी

    [सेना में शूद्र भी होते हैं जो कि सड़कें बनाते, भार ढोते हैं। स्त्रियां खानपान को तय्यार करती, विजय के लिये ब्राह्मण पूजा पाठ करते, राजा लोग सैनिक व्यय करते और सैनिकों की भर्ती कराते हैं]

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    विषय

    घातक प्रयोगों का दमन।

    भावार्थ

    (पत्या) पति से (नुत्ता) दुत्कारी हुई (जाया इव) स्त्री जिस प्रकार अपने उत्पन्न करने वाले मां बाप के पास आ जाती है उसी प्रकार (शूद्र-कृता) शूदों से की, (स्त्रीकृता) स्त्रियों से की गई, (राजकृता) राजा से की गई या (ब्रह्मभिः कृता) ब्राह्मणों से की गई ‘कृत्या’ हिंसाजनक दुष्ट क्रिया (बन्धु) बन्धन के रूप में या अपने बन्धु रूप (कर्तारं) कर्त्ता को (ऋच्छतु) प्राप्त हो। अर्थात् चाहे ब्राह्मण, क्षत्रिय शूद्र या स्त्री कोई भी प्रजापीड़न का कोई काम करे उसको ही उसके फलबन्धन आदि दण्ड हों।

    टिप्पणी

    (च०) ‘बन्धुम् ऋच्छतु’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रत्यंगिरसो ऋषिः। कृत्यादूषणं देवता। १ महाबृहती, २ विराण्नामगायत्री, ९ पथ्यापंक्तिः, १२ पंक्तिः, १३ उरोबृहती, १५ विराड् जगती, १७ प्रस्तारपंक्तिः, २० विराट् प्रस्तारपंक्तिः, १६, १८ त्रिष्टुभौ, १९ चतुष्पदा जगती, २२ एकावसाना द्विपदाआर्ची उष्णिक्, २३ त्रिपदा भुरिग् विषमगायत्री, २४ प्रस्तारपंक्तिः, २८ त्रिपदा गायत्री, २९ ज्योतिष्मती जगती, ३२ द्व्यनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदा जगती, ३-११, १४, २२, २१, २५-२७, ३०, ३१ अनुष्टुभः। द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Countering Evil Designs

    Meaning

    Whether she is created and adorned by the meanest of artists or a ruling lord or the cleverest woman or the most ingenious intellectual, she must go back to her creator supporter like a woman rejected by her husband going back to her father or brother.

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    Translation

    Prepared by a Sidra (an unskilled labourer), or by a king, prepared by a woman or by wise intellectual persons, may she, the harmful design go back to her maker, just as a wife banished by the husband goes back to her father or her brother.

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    Translation

    Let this device whether it is made by Shudra, or made by King or prepared by woman, or wrought by the Brahmanas, return to its make as its kin-like a woman banished by her husband.

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    Translation

    Just as a profligate woman banished by her husband goes to her father or a relative so does a violent deed committed by a Sudra or a Prince, by priests or women, go back to the doer as a kinsman.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(शूद्रकृता) शूद्राय कृता (राजकृता) राजभ्यो निष्पादिता (स्त्रीकृता) स्त्रीभ्यः साधिता (ब्रह्मभिः) सुपां सुपो भवन्ति। वा० पा० ७।१।३९। चतुर्थ्यर्थे तृतीया। ब्रह्मभ्यः वेदज्ञानिभ्यः (कृता) (जाया) दुष्टा भार्या (पत्या) स्वामिना (नुत्ता) दूरीकृता (इव) यथा (कर्तारम्) कृञ् हिंसायाम्−तृच्। हिंसकम् (बन्धु) बन्धनं यथा (ऋच्छतु) गच्छतु ॥

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