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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 27
    ऋषिः - प्रत्यङ्गिरसः देवता - कृत्यादूषणम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त
    102

    उ॒त ह॑न्ति पूर्वा॒सिनं॑ प्रत्या॒दायाप॑र॒ इष्वा॑। उ॒त पूर्व॑स्य निघ्न॒तो नि ह॒न्त्यप॑रः॒ प्रति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त । ह॒न्ति॒ । पू॒र्व॒ऽआ॒सिन॑म् । प्र॒ति॒ऽआ॒दाय॑ । अप॑र: । इष्वा॑ । उ॒त । पूर्व॑स्य । नि॒ऽघ्न॒त: । नि । ह॒न्ति॒ । अप॑र: । प्रति॑ ॥१.२७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत हन्ति पूर्वासिनं प्रत्यादायापर इष्वा। उत पूर्वस्य निघ्नतो नि हन्त्यपरः प्रति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत । हन्ति । पूर्वऽआसिनम् । प्रतिऽआदाय । अपर: । इष्वा । उत । पूर्वस्य । निऽघ्नत: । नि । हन्ति । अपर: । प्रति ॥१.२७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 27
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।

    पदार्थ

    (अपरः) अति श्रेष्ठ [बड़ा सावधान पुरुष] (उत) ही (पूर्वासिनम्) पहिले [चोट] चलानेवाले को (प्रत्यादाय) उलटा पकड़कर (इष्वा) तीर से (हन्ति) मारता है। (अपरः) अति श्रेष्ठ (उत) ही (पूर्वस्य निघ्नतः) पहिले चोट मारनेवाले का (प्रति) बदले में (नि निरन्तर (हन्ति) हनन करता है ॥२७॥

    भावार्थ

    सावधान दूरदर्शी पुरुष शत्रु की चोट लगने से पहिले ही उसे मारता है, और वीर मनुष्य ही वैरी की चोट से बचकर उसका ही हनन करता है ॥२७॥

    टिप्पणी

    २७−(उत) एव। (हन्ति) (पूर्वासिनम्) पूर्व+असु क्षेपणे−णिनि। पूर्वशस्त्रक्षेप्तारम् (प्रत्यादाय) प्रतिकूलं गृहीत्वा (अपरः) नास्ति परः श्रेष्ठो यस्मात् सः। अनुत्तमः। अतिसावधानः (इष्वा) बाणेन (उत) (पूर्वस्य) अग्रवर्तिनः (निघ्नतः) नितरां हननं कुर्वतः (नि) निरन्तरम् (हन्ति) (अपरः) अतिसावधानः (प्रति) प्रतिकूलत्वेन ॥

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    विषय

    रक्षणात्मक, न कि आक्रमणात्मक [युद्ध]

    पदार्थ

    १. (अपर:) = [अ-परः] शत्रुत्व की भावना से रहित पुरुष (उत) = भी (पूर्वासिनम्) = [असु क्षेपणे] पहले शस्त्र फेंकनेवाले को (प्रत्यादाय) = उलटा पकड़कर-सैन्य द्वारा उसका स्वागत करके-(इष्वा हन्ति) = बाण से मारता है। श्रेष्ठ पुरुष पहले आक्रमण नहीं करता, परन्तु आक्रान्ता का सेना द्वारा स्वागत करके उसे बाणों से प्रहत करता है। २. (अ-पर:) = यह पर [शत्रु] न होता हुआ-व्यर्थ में वैर न करता हुआ (उत) = निश्चय से (पूर्वस्य निघत:) = पहले हनन [चोट] करते हुए के (प्रतिहन्ति) = प्रतिरोध के लिए चोट करता ही है।

    भावार्थ

    आक्रमणात्मक युद्ध वाञ्छनीय नहीं है, परन्तु रक्षणात्मक युद्ध तो करना ही है।

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    भाषार्थ

    (उत) तथा (पूर्वासिनम्) प्रथम-प्रहार करने वाले को (प्रति आदाय) प्रतीकाररूप में पकड़ कर (अपरः) दूसरा [स्वराष्ट्र रक्षक सेनापति] (इष्वा) इषु द्वारा (हन्ति) मार डालता है। (उत) तथा (पूर्वस्य निघ्नतः) अर्थात् पहिले हत्या करने वाले को, (प्रति) प्रतीकार रूप में, (अपरः) स्वराष्ट्र रक्षक सेनापति (नि हन्ति) नितरां मार डालता हैं।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में शत्रु के हनन में दो स्थितियों का वर्णन किया है। (१) यदि वह पूर्व प्रहार करे; (२) तथा यदि वह पूर्व हनन करे। प्रथम स्थिति में शत्रु द्वारा प्रथम प्रहार करना ही उस का अपराध है, दूसरी स्थिति में उस द्वारा किया जाने वाला वास्तविक हनन, महा-अपराध है। दोनों स्थितियों में वह मृत्यु-दण्ड के योग्य है। पूर्व प्रहार में यद्यपि कोई व्यक्ति मारा नहीं गया, तो भी प्रहारकर्ता की भावना में तो किये जाने वाला प्रहार, मारने के लिये ही तो है। पूर्वासिनम् = पूर्व + असु (प्रक्षेपे), प्रथम अस्त्र फेंकने वाले को]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Countering Evil Designs

    Meaning

    One who first aims to shoot, the other, pre-empts and shoots down with the arrow. One who has first shot to kill, the other pre-empts and, in response, shoots and kills.

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    Translation

    Also him, who shoots first, the other one smites back with an arrow catching hold of him. Also while the, first one is smiting, the other one smites him back.

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    Translation

    The man waiting for attacking the enemy with his shaft smites the enemy who first would shoot him or when the enemy deals below before him he following strikes him down.

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    Translation

    There are two ways of fighting. Either a man aiming with his shaft smites him who is sitting unawares,, or when the foeman deals a blow on him, he smites him down in self-defense.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २७−(उत) एव। (हन्ति) (पूर्वासिनम्) पूर्व+असु क्षेपणे−णिनि। पूर्वशस्त्रक्षेप्तारम् (प्रत्यादाय) प्रतिकूलं गृहीत्वा (अपरः) नास्ति परः श्रेष्ठो यस्मात् सः। अनुत्तमः। अतिसावधानः (इष्वा) बाणेन (उत) (पूर्वस्य) अग्रवर्तिनः (निघ्नतः) नितरां हननं कुर्वतः (नि) निरन्तरम् (हन्ति) (अपरः) अतिसावधानः (प्रति) प्रतिकूलत्वेन ॥

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