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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 6
    ऋषिः - प्रत्यङ्गिरसः देवता - कृत्यादूषणम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त
    152

    प्र॑ती॒चीन॑ आङ्गिर॒सोऽध्य॑क्षो नः पु॒रोहि॑तः। प्र॒तीचीः॑ कृ॒त्या आ॒कृत्या॒मून्कृ॑त्या॒कृतो॑ जहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒ती॒चीन॑: । अ॒ङ्गि॒र॒स: । अधि॑ऽअक्ष: । न॒: । पु॒र:ऽहि॑त: । प्र॒तीची॑: । कृ॒त्या: । आ॒ऽकृत्य॑ । अ॒मून् । कृ॒त्या॒ऽकृत॑: । ज॒हि॒ ॥१.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रतीचीन आङ्गिरसोऽध्यक्षो नः पुरोहितः। प्रतीचीः कृत्या आकृत्यामून्कृत्याकृतो जहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रतीचीन: । अङ्गिरस: । अधिऽअक्ष: । न: । पुर:ऽहित: । प्रतीची: । कृत्या: । आऽकृत्य । अमून् । कृत्याऽकृत: । जहि ॥१.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।

    पदार्थ

    (प्रतीचीनः) प्रत्यक्ष चलनेवाला, (आङ्गिरसः) वेदों का जाननेवाला (नः) हमारा (अध्यक्षः) अध्यक्ष और (पुरोहितः) पुरोहित [अग्रगामी] तू (कृत्याः) हिंसाओं को (प्रतीचीः) प्रतिकूलगति (आकृत्य) सर्वथा करके (अमून्) उन (कृत्याकृतः) हिंसाकारियों को (जहि) मार डाल ॥६॥

    भावार्थ

    वेदज्ञाता नीतिनिपुण पुरुष दुराचारियों को यथावत् अनुसन्धान करके दण्ड देवे ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(प्रतीचीनः) अ० ४।३२।६। प्रत्यक्षं गच्छन् (आङ्गिरसः) अ० २।१२।४। तदधीते तद्वेद। पा० ४।२।५९। इत्यण्। अङ्गिरसां वेदानां ज्ञाता (अध्यक्षः) अधिपतिः (नः) अस्माकम् (पुरोहितः) अ० ३।१९।१। अग्रेसरः (प्रतीचीः) प्रतिकूलगतीः (कृत्याः) म० ४। हिंसाः (आकृत्य) निष्पाद्य (अमून्) (कृत्याकृतः) म० २। हिंसाकर्तॄन् (जहि) मारय ॥

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    विषय

    प्रतीचीन: आङ्गिरसः

    पदार्थ

    १. (प्रतीचीन:) = [प्रति अञ्च] प्रत्याहार की वृत्तिवाला-इन्द्रियों को विषयों से व्यावृत्त करनेवाला, अतएव (आङ्गिरस:) = अङ्ग-प्रत्यङ्ग में रसवाला, (अध्यक्ष:) = इन्द्रियों का अधिष्ठाता यह व्यक्ति (न:) = हमारा (पुरोहित:) = पुरोहित है। यह (कृत्या:) = शत्रुकृत् सब हिंसाप्रयोगों को (प्रतीची:) = फिर लौट जानेवाला (आकृत्य) = करके (अमून्) = उन (कत्याकृतः) = हिंसा करनेवालों को ही (जहि) = विनष्ट करे।

    भावार्थ

    हम अन्तर्मुखी वृत्तिवाले अतएव अङ्ग-प्रत्यङ्ग में रसवाले, इन्द्रियों के अधिष्ठाता बनकर औरों के लिए  आदर्शरूप हों और उनसे की गई कृत्याओं को वापस भेजकर उन्हीं का विनाश करें।

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    भाषार्थ

    (नः) हमारा (अध्यक्षः) सेनाध्यक्ष (पुरोहितः) सेना के अग्रभाग में निहित है, स्थापित किया हुआ है, (प्रतीचीनः) वह शत्रुसेना को पराङ्मुख कर देता है, (आङ्गिरसः) सेनाङ्गों का ज्ञाता है। (कृत्याः) शत्रु की हिंस्र सेनाओं को (प्रतीचीः) पराङ्मुख (आकृत्य) करके (अमून् सेनाकृतः) उन सेनाध्यक्षों१ और नायकों को (जहि) हे हमारे सेनाध्यक्ष! तू मार डाल।

    टिप्पणी

    [सैनिक तो आज्ञा से बन्धे हुए युद्धस्थली पर आते हैं। असल में युद्ध के लिये सेनापति आदि अधिकारी ही अपराधी होते हैं, इस लिये उन्हीं को मारने का कथन हुआ है। जैसे कि अथर्ववेद में अन्यत्र भी आदेश मिलता है। यथा-जय अमित्रान् प्रपद्यस्व जह्येषां वरं वरं मामीषां मोचिकश्चन" ॥ (३।१९।८) "अमित्रों पर विजय पा, और अमित्र सेना में प्रवेश पा, इनमें से प्रत्येक श्रेष्ठ अधिकारी को मार डाल, इन में से कोई भी श्रेष्ठ अधिकारी बच न पाए"। इस प्रकार वेदाज्ञानुसार, विजयानन्तर, सैनिकों का यथा सम्भव हनन न करते हुए, सेना के मुख्यमुख्य अधिकारियों का हनन करना चाहिये।

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    विषय

    घातक प्रयोगों का दमन।

    भावार्थ

    (आङ्गिरसः) आङ्गिरस वेद का जानने वाला विद्वान् (प्रतीचीनः) हिंसाकारी के विपरीत कार्य करने और उसके किये दुष्ट घातक प्रयोगों के प्रतीकार करने में समर्थ होता है। वही (नः) हमारा (अध्यक्षः) अध्यक्ष और (पुरोहितः) सब कार्यों का साक्षी, यज्ञ के पुरोहित के समान कार्य कराने हारा हो। वह (कृत्याः) सब दुष्ट प्रयोगों को (प्रतीचीः) विपरीत रूप से (आकृत्य) पीछा फेरकर (अमून्) उन उन (कृत्या-कृतः) घातक प्रयोगों के करने वालों को (जहि) विनाश करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रत्यंगिरसो ऋषिः। कृत्यादूषणं देवता। १ महाबृहती, २ विराण्नामगायत्री, ९ पथ्यापंक्तिः, १२ पंक्तिः, १३ उरोबृहती, १५ विराड् जगती, १७ प्रस्तारपंक्तिः, २० विराट् प्रस्तारपंक्तिः, १६, १८ त्रिष्टुभौ, १९ चतुष्पदा जगती, २२ एकावसाना द्विपदाआर्ची उष्णिक्, २३ त्रिपदा भुरिग् विषमगायत्री, २४ प्रस्तारपंक्तिः, २८ त्रिपदा गायत्री, २९ ज्योतिष्मती जगती, ३२ द्व्यनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदा जगती, ३-११, १४, २२, २१, २५-२७, ३०, ३१ अनुष्टुभः। द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Countering Evil Designs

    Meaning

    Our leader and commander, expert in the art and tactics of counter-action, counters the evil attacks of the evil doers. May he destroy those evil doers who have mounted the attack upon us.

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    Translation

    The Angirasa priest, skilled in reversing, is our Chief. May you (O priest), turning the harmful designs back, slay those who have fashioned the harmful designs (krtyakrtah).

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    Translation

    The man of scientific knowledge who is our priest and guarding authority is against this device. May he turning back these devices slay the users of such devices.

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    Translation

    A Vedic scholar opposes the wrong action of a violent person. He is our guardian and leader. Let him turning back all evil deeds slay those who practice them.

    Footnote

    अङ्गिरसः— अङ्गिरसावेदानांज्ञातः i.e., He who knows the Vedas. Griffith and western scholars wrongly translate the word as a Rishi named Angirasa. There is no history inthe Vedas, hence this interpretation is illogical.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(प्रतीचीनः) अ० ४।३२।६। प्रत्यक्षं गच्छन् (आङ्गिरसः) अ० २।१२।४। तदधीते तद्वेद। पा० ४।२।५९। इत्यण्। अङ्गिरसां वेदानां ज्ञाता (अध्यक्षः) अधिपतिः (नः) अस्माकम् (पुरोहितः) अ० ३।१९।१। अग्रेसरः (प्रतीचीः) प्रतिकूलगतीः (कृत्याः) म० ४। हिंसाः (आकृत्य) निष्पाद्य (अमून्) (कृत्याकृतः) म० २। हिंसाकर्तॄन् (जहि) मारय ॥

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