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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 20
    ऋषिः - प्रत्यङ्गिरसः देवता - कृत्यादूषणम् छन्दः - विराट्प्रस्तारपङ्क्तिः सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त
    80

    स्वा॑य॒सा अ॒सयः॑ सन्ति नो गृ॒हे वि॒द्मा ते॑ कृत्ये यति॒धा परूं॑षि। उत्ति॑ष्ठै॒व परे॑ही॒तोऽज्ञा॑ते॒ किमि॒हेच्छ॑सि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒ऽआ॒य॒सा: । अ॒सय॑: । स॒न्ति॒ । न॒: । गृ॒हे । वि॒द्म । ते॒ । कृ॒त्ये॒ । य॒ति॒ऽधा । परूं॑षि । उत् । ति॒ष्ठ॒ । ए॒व । परा॑ । इ॒हि॒ । इ॒त: । अज्ञा॑ते । किम् । इ॒ह । इ॒च्छ॒सि॒ ॥१.२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वायसा असयः सन्ति नो गृहे विद्मा ते कृत्ये यतिधा परूंषि। उत्तिष्ठैव परेहीतोऽज्ञाते किमिहेच्छसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुऽआयसा: । असय: । सन्ति । न: । गृहे । विद्म । ते । कृत्ये । यतिऽधा । परूंषि । उत् । तिष्ठ । एव । परा । इहि । इत: । अज्ञाते । किम् । इह । इच्छसि ॥१.२०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 20
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    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।

    पदार्थ

    (स्वायसाः) सुन्दर रीति से लोहे की बनी (असयः) तलवारें (नः गृहे) हमारे घर में (सन्ति) हैं, (कृत्ये) हे हिंसा क्रिया ! (ते) तेरे (परूंषि) जोड़ों को, (यतिधा) जितने प्रकार के हैं, (विद्म) हम जानते हैं। (एव) बस (उत् तिष्ठ) खड़ी हो जा, (इतः) यहाँ से (परा इहि) चली जा, (अज्ञाते) हे अपरिचित ! तू (इह) यहाँ (किम्) क्या (इच्छसि) चाहती है ॥२०॥

    भावार्थ

    सेनापति अच्छे-अच्छे अस्त्र-शस्त्रों से शत्रुओं के अस्त्र-शस्त्र और सेना का नाश करे, और अनजान पुरुष को न आने दे ॥२०॥

    टिप्पणी

    २०−(स्वायसाः) अयस्-अण्। सु सुष्ठु अयसा लौहेन निर्मिताः (असयः) तरवारयः (सन्ति) (नः) अस्माकम् (गृहे) (विद्म) जानीमः (ते) तव (कृत्ये) हे हिंसाक्रिये (यतिधा) यत्प्रकाराणि (परूंषि) ग्रन्थीन् (उत्तिष्ठ) (एव) अवश्यम्, (परेहि) (इतः) (अज्ञाते) हे अपरिचिते हिंसे (किम्) (इह) (इच्छसि) आकाङ्क्षसि ॥

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    विषय

    स्वायसा: असयः

    पदार्थ

    १. (नः गृहे) = हमारे घर में (स्वायसा:) = उत्तम लोहे की बनी हुई (असयः सन्ति) = तलवारें हैं और हे (कृत्ये) = शत्रुकृत् हिंसा-प्रयोग! (यतिधा ते परूंषि) = जितने प्रकार के तेरे पर्व हैं उन्हें भी (विद्य) = हम जानते हैं। हम अपने यहाँ शत्रुविनाश के लिए अस्त्र-शस्त्रों को तैयार रक्खें तथा शत्रुकृत् हिंसा-प्रयोगों के प्रति सावधान रहें। २. शत्रुकृत् हिंसा-प्रयोग को सम्बोधित करते हुए हम कह सकें कि (उत्तिष्ठ एव) = तू यहाँ से उठ ही खड़ा हो, (इतः परा इहि) = यहाँ से सुदूर स्थान में चला जा। (अज्ञाते) = हे अज्ञातरूप में रहनेवाली हिंसाक्रिये! (इह किम् इच्छसि) = यहाँ तू क्या चाहती है, अर्थात् यहाँ तेरा क्या काम है? तुझे हम समझ गये हैं-अब तू यहाँ से दूर ही रह।

    भावार्थ

    हम अपने शस्त्रों को उत्तम स्थिति में रक्खें। शत्रुकृत् हिंसा-प्रयोगों को ठीक से जानकर उन्हें अपने से दूर करें।

     

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    भाषार्थ

    (स्वायसाः) उत्तम लोहे से बनी (असयः) तलवारें (नः) हम में से प्रत्येक के (गृहे) घर में (सन्ति) है, (कृत्ये) हे हिंस्र सेना ! (विद्मा) हम जानते हैं (यतिधा) जितने कि (ते) तेरे (परुंषि) जोड़ हैं। (उतिष्ठ एव इत) तू यहां से उत्थान ही कर, (परा इहि) परे चली जा, (अज्ञाते) तेरी शक्ति को हम तृण समान भी नहीं जानते, ऐसी हे परकीय सेना ! (इइ) यहां (किम्) क्या (इच्छसि) तू चाहती है।

    टिप्पणी

    [परुंषि= जोड़। सेना के चार जोड़ होते हैं, जिनके मेल से चतुरङ्गिणी सेना बनती है, हाथी, घोड़े, रथ और पदाति। मन्त्र में कहा है कि तेरे जोड़ों को हम जानते हैं कि ये जितने हैं, उन के लिये तो हमारी तलवारें ही पर्याप्त हैं। तू यहां छावनी डाले हुए है, यहां से उठ जा, यही तेरे लिये उचित है। तेरी शक्ति इतनी अल्प है कि उसे हम तृण समान भी नहीं जानते। तेरी इच्छा पूरी नहीं हो सकती, तू यहां से चली ही जा]।

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    विषय

    घातक प्रयोगों का दमन।

    भावार्थ

    (स्वायसः) उत्तम लोहे कि बनी (असयः) तलवारें (नः गृहे सन्ति) हमारे घर में हैं। हे (कृत्ये) अज्ञात घातक सेने ! (ते) तेरे (परुंषि) पोरू पोरू को (विद्म) हम जानते हैं कि (यतिधा) वे कितने हैं। (उत्तिष्ठ एव) उठ, (इतः) यहां से (परा इहि) परे जा। हे (अज्ञाते) बिना जानी हुई कृत्ये ! सेने ! (इह किम् इच्छसि) यहां तू क्या चाहती है ?

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रत्यंगिरसो ऋषिः। कृत्यादूषणं देवता। १ महाबृहती, २ विराण्नामगायत्री, ९ पथ्यापंक्तिः, १२ पंक्तिः, १३ उरोबृहती, १५ विराड् जगती, १७ प्रस्तारपंक्तिः, २० विराट् प्रस्तारपंक्तिः, १६, १८ त्रिष्टुभौ, १९ चतुष्पदा जगती, २२ एकावसाना द्विपदाआर्ची उष्णिक्, २३ त्रिपदा भुरिग् विषमगायत्री, २४ प्रस्तारपंक्तिः, २८ त्रिपदा गायत्री, २९ ज्योतिष्मती जगती, ३२ द्व्यनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदा जगती, ३-११, १४, २२, २१, २५-२७, ३०, ३१ अनुष्टुभः। द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Countering Evil Designs

    Meaning

    O mischief, evil doer, there are swords of steel in our house. We also know how far the various stages of your infrastructure can go and achieve. Better get up and go back before your design is discovered. What do you wish to achieve here?

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    Translation

    There are swords made of good steel (suāyasā) in our house. O harmful design, we know where are your joints. Do get up; go away hence, O stranger, what do you seek here?

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    Translation

    We have in our house the swords of the steel of good quality, we also know the parts and joints of this tool in whatever number they exist, let; arise instantaneously and go from here. What this poor stranger is seeking here.

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    Translation

    Within our house are swords of goodly iron. O destructive army we know all thy component parts! Arise this instant and begone! What, stranger! art thou seeking here.

    Footnote

    Stranger: Unfamiliar foreign army.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २०−(स्वायसाः) अयस्-अण्। सु सुष्ठु अयसा लौहेन निर्मिताः (असयः) तरवारयः (सन्ति) (नः) अस्माकम् (गृहे) (विद्म) जानीमः (ते) तव (कृत्ये) हे हिंसाक्रिये (यतिधा) यत्प्रकाराणि (परूंषि) ग्रन्थीन् (उत्तिष्ठ) (एव) अवश्यम्, (परेहि) (इतः) (अज्ञाते) हे अपरिचिते हिंसे (किम्) (इह) (इच्छसि) आकाङ्क्षसि ॥

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