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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 29
    ऋषिः - प्रत्यङ्गिरसः देवता - कृत्यादूषणम् छन्दः - मध्ये ज्योतिष्मती जगती सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त
    457

    अ॑नागोह॒त्या वै भी॒मा कृ॑त्ये॒ मा नो॒ गामश्वं॒ पुरु॑षं वधीः। यत्र॑य॒त्रासि॒ निहि॑ता॒ तत॒स्त्वोत्था॑पयामसि प॒र्णाल्लघी॑यसी भव ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ना॒ग॒:ऽह॒त्या । वै । भी॒मा । कृ॒त्ये॒ । मा । न॒: । गाम् । अश्व॑म् । पुरु॑षम् । व॒धी॒: । यत्र॑ऽयत्र । असि॑ । निऽहि॑ता । तत॑: । त्वा॒ । उत् । स्था॒प॒या॒म॒सि॒ । प॒र्णात् । लघी॑यसी । भ॒व॒ ॥१.२९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनागोहत्या वै भीमा कृत्ये मा नो गामश्वं पुरुषं वधीः। यत्रयत्रासि निहिता ततस्त्वोत्थापयामसि पर्णाल्लघीयसी भव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अनाग:ऽहत्या । वै । भीमा । कृत्ये । मा । न: । गाम् । अश्वम् । पुरुषम् । वधी: । यत्रऽयत्र । असि । निऽहिता । तत: । त्वा । उत् । स्थापयामसि । पर्णात् । लघीयसी । भव ॥१.२९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 29
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।

    पदार्थ

    (कृत्ये) हे हिंसा क्रिया ! (अनागोहत्या) निर्दोषी की हत्या (वै) अवश्य (भीमा) भयानक है, (नः) हमारी (गाम्) गौ, (अश्वम्) घोड़े और (पुरुषम्) पुरुष को (मा वधीः) मत मार। (यत्रयत्र) जहाँ-जहाँ पर तू (निहिता) गुप्त रक्खी गयी (असि) है, (ततः) वहाँ से (त्वा) तुझको (उत् स्थापयामसि) हम उठाये देते हैं, तू (पर्णात्) पत्ते से (लघीयसी) अधिक हलकी (भव) हो जा ॥२९॥

    भावार्थ

    राजा विचारपूर्वक अनपराधियों के गुप्त रीति से सतानेवाले दुराचारियों को उचित दण्ड देकर अपने वश में रक्खे ॥२९॥

    टिप्पणी

    २९−(अनागोहत्या) अनपराधिनो घातः (वै) अवश्यम् (भीमा) भयावहा (कृत्ये) हे हिंसाक्रिये (नः) अस्माकम् (गाम्, अश्वम्, पुरुषम्) (मा वधीः) मा हिंसीः (यत्रयत्र) यस्मिंश्चित् स्थाने (असि) (निहिता) गुप्तं स्थापिता (ततः) (त्वा) (उत् स्थापयामसि) उत्थापयामः (पर्णात्) तरुपत्रात् (लघीयसी) लघुतरा (भव) ॥

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    विषय

    निरपराध का हिंसन भयंकर पाप है

    पदार्थ

    १.हे (कृत्ये) = हिंसनक्रिये! (अनागः हत्या) = निष्पाप का मारना (वै) = निश्चय से (भीमा) = भयंकर है-भयप्रद परिणामों को पैदा करनेवाला है। तू (न:) = हमारे (गां अश्वं पुरुषम्) = गौ, घोड़े व पुरुषों को (मा वधी:) = मत मार । २. हे कृत्ये! तू (यत्र यत्र निहिता असि) = जहाँ-जहाँ भी रक्खी गई है घासों में, खेतों में, श्मशानों में-जहाँ कहीं भी शत्रु ने तुझे रखने का प्रयल किया है, (ततः त्वा उत्थापयामसि) = वहाँ से तुझे उखाड़ फेंकते हैं-उठाकर दूर कर देते हैं। तू (पर्णात् लघीयसी भव) = पत्ते से भी हल्की हो जा, अर्थात् तेरा उखाड़ फेंकना हमारे लिए कठिन न हो।

    भावार्थ

    दुष्ट शत्रुभूत लोग निरपराध लोगों को भी आहत करने के लिए बम्बादि भारी भारी हिंसक प्रयोगों को इधर-उधर छिपाकर रखने का प्रयत्न करते हैं। हम इन प्रयोगों को ढूँढकर विनष्ट कर दें।

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    भाषार्थ

    (अनागोहत्या) निरपराधों की हत्या (वै) निश्चय से (भीमा) भयप्रय है, (कृत्ये) हे हिंस्र सेना! (नः) हमारी (गाम्, अश्वम्, पुरुषम्) गौओं, अश्वों और पुरुषों का (वधीः मा) वध न कर। (यत्र यत्र) हमारे राष्ट्र में जहां-जहां (निहिता असि) तू स्थित है (ततः) वहां-वहाँ से (त्वा) तुझे (उत्त्थापयामसि) हम उठा देते हैं, (पर्णात्) पत्ते से भी (लघीयसी) लघु (भव) तू हो जा।

    टिप्पणी

    [अनागोहत्या = अन् (नञ् नुट्) + आगः (अपराध, पाप, इत्या)। अभिप्राय यह कि हम ने, हे परकीय सेना ! तेरे राष्ट्र के प्रति कोई अपराध नहीं किया, तो भी तू निरपराधियों की हिंसा के लिये हमारे राष्ट्र में आ बैठी है, तू यहां से उठ जा, नहीं तो हम बल प्रयोग द्वारा यहां से तुझे उठा देंगे। हमारी शक्ति के मुकाबले में तू पत्ते से भी हल्की है, तुच्छ है। इस लिये तू शनैः शनैः वापिस होती जा और तेरी छावनियां हमारे राष्ट्र में हल्की होती जाय। “पर्णाल्लघीयसी भव" का अभिप्राय "न त्वाऽहं तृणं मन्ये" की उक्ति के सदृश भी है]।

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    विषय

    घातक प्रयोगों का दमन।

    भावार्थ

    हे (कृत्ये) सेने ! (अनागो हत्या) निरपराध पुरुषों का घात करना (भीमा) बड़ा उग्र और भयानक परिणाम लाने वाला है। अतः (नः) हमारे (गाम् अश्वं पुरुषं मा वधीः) गौ, घोड़े और पुरुषों को मत मार। (यत्र यत्र) जहां जहां तू (निहिता असि) रखी गई है। अर्थात् तैने जहां जहां अपने डेरे डाले हैं (ततः) वहां वहां से (त्वा उत्थापयामसि) तुझे उठा दें। तू (पर्णात्) पत्ते से भी अधिक (लघीयसी) हलकी (भव) हो जा।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रत्यंगिरसो ऋषिः। कृत्यादूषणं देवता। १ महाबृहती, २ विराण्नामगायत्री, ९ पथ्यापंक्तिः, १२ पंक्तिः, १३ उरोबृहती, १५ विराड् जगती, १७ प्रस्तारपंक्तिः, २० विराट् प्रस्तारपंक्तिः, १६, १८ त्रिष्टुभौ, १९ चतुष्पदा जगती, २२ एकावसाना द्विपदाआर्ची उष्णिक्, २३ त्रिपदा भुरिग् विषमगायत्री, २४ प्रस्तारपंक्तिः, २८ त्रिपदा गायत्री, २९ ज्योतिष्मती जगती, ३२ द्व्यनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदा जगती, ३-११, १४, २२, २१, २५-२७, ३०, ३१ अनुष्टुभः। द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Countering Evil Designs

    Meaning

    Murder of the innocents is heinous, O force of sin, evil and mischief. Do not hit, do not kill our cow, horse or person. Wherever you be, covert in our midst, we discover and dislodge you from there. Be lighter than a dead leaf and fly away.

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    Translation

    The killing of an innocent person (anāgo-hatyā) is, indeed, horrible. O harmful design, may you not kill our cow, horse or men. For each and every spot, where you have been placed, we raise you up. May you become lighter (laghiyasi) than a leaf.

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    Translation

    The slaughter of an innocent is a dreadful act. Let not this device slay the cows, horses and men of ours. We rouse and raise it from whatsoever place it has been stealthily fixed up. Let it be lighter than a leaf.

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    Translation

    O violent army! the slaughter of an innocent is an awful deed. Slay not cow, horse, or man of ours. In whatsoever place thou art concealed we rouse thee up therefrom become thou lighter than a leaf.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २९−(अनागोहत्या) अनपराधिनो घातः (वै) अवश्यम् (भीमा) भयावहा (कृत्ये) हे हिंसाक्रिये (नः) अस्माकम् (गाम्, अश्वम्, पुरुषम्) (मा वधीः) मा हिंसीः (यत्रयत्र) यस्मिंश्चित् स्थाने (असि) (निहिता) गुप्तं स्थापिता (ततः) (त्वा) (उत् स्थापयामसि) उत्थापयामः (पर्णात्) तरुपत्रात् (लघीयसी) लघुतरा (भव) ॥

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