अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 10/ मन्त्र 6
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - गौः, विराट्, अध्यात्मम्
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - आत्मा सूक्त
गौर॑मीमेद॒भि व॒त्सं मि॒षन्तं॑ मू॒र्धानं॒ हिङ्ङ॑कृणोन्मात॒वा उ॑। सृक्वा॑णं घ॒र्मम॒भि वा॑वशा॒ना मिमा॑ति मा॒युं पय॑ते॒ पयो॑भिः ॥
स्वर सहित पद पाठगौ: । अ॒मी॒मे॒त् । अ॒भि । व॒त्सम् । मि॒षन्त॑म् । मू॒र्धान॑म् । हिङ् । अ॒कृ॒णो॒त् । मात॒वै । ऊं॒ इति॑ । सृका॑णम् । घ॒र्मम् । अ॒भि । वा॒व॒शा॒ना । मिमा॑ति । मा॒युम् । पय॑ते । पय॑:ऽभि: ॥१५.६॥
स्वर रहित मन्त्र
गौरमीमेदभि वत्सं मिषन्तं मूर्धानं हिङ्ङकृणोन्मातवा उ। सृक्वाणं घर्ममभि वावशाना मिमाति मायुं पयते पयोभिः ॥
स्वर रहित पद पाठगौ: । अमीमेत् । अभि । वत्सम् । मिषन्तम् । मूर्धानम् । हिङ् । अकृणोत् । मातवै । ऊं इति । सृकाणम् । घर्मम् । अभि । वावशाना । मिमाति । मायुम् । पयते । पय:ऽभि: ॥१५.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 10; मन्त्र » 6
भाषार्थ -
(गौः) चतुष्पाद् गौ (मिषन्तम्, वत्सम्, अभि) आंखे झपकते हुए बछड़े को लक्ष्य कर के (अमीमेत्) शब्द करती है, और (मातवै उ) उस के परिज्ञान के लिये (मूर्धानम्) उस के सिर पर (हिं अकृणोत्) हिंकारती है, हम्भारती है। (सृक्वाणम्) सरण करने वाले (घर्मम् अभि) धारोष्ण दूध को लक्ष्य कर के (मायुम्) शब्द (मिमाति) करती है, (वावशाना) बार-बार शब्द करती है, (पयोभिः) और स्तनों में दूध के साथ (पयते) विचरती है।
टिप्पणी -
[मिषन्तं वत्सम्= इस द्वारा बछड़ की शैशवावस्था को सूचित किया है। मातवै= उसे जताने के लिये कि मैं आ गई हूं, उसके सिर पर हम्भारती है। मा= ज्ञान, यथा प्रमा। सृक्वाणम्= सरणम् (निरुक्त ११।४।४१), अथवा "सृज विसर्गे" + क्वनिप्= उत्पन्नं घर्मम्। वावशाना= वाशृ शब्दे + कानच्। पयते= पय गतौ (भ्वादिः)। हिङ् अकृणोत्= इस द्वारा सामगान को भी सूचित किया है। जिस में ज्ञान चक्षु का उन्मेष हुआ है ऐसे स्वाध्यायी के प्रति वेदवाणी निजस्वरूप को प्रकट करती है, और उस के परिज्ञान के लिये “हिङ्" आदि अवयवों वाले सामगान को प्रकट करती है। उसका दूध है ज्ञानदुग्ध। यथा “उत त्वं सख्ये स्थिरपीतमाहुः" (ऋक्० १०।७१।५) में वेदवाणी रूपी गौ के ज्ञानदुग्ध को "पीतम्" शब्द द्वारा निर्दिष्ट किया है। “पयोभिः” द्वारा भी ज्ञानदुग्ध अभिप्रेत है। चतुष्पाद् गौ के चार स्तनों द्वारा दुग्ध प्रस्रवित होता है, वेदवाणी के भी ४ वेदरूपी स्तनों द्वारा ज्ञान दुग्ध प्रस्रावित होता है।]