Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 1
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - सभोशो देवता छन्दः - द्विपदा विराड गायत्री स्वरः - षड्जः
    5

    क्ष॒त्रस्य॒ योनि॑रसि क्ष॒त्रस्य॒ नाभि॑रसि। मा त्वा॑ हिꣳसी॒न्मा मा॑ हिꣳसीः॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क्ष॒त्रस्य॑। योनिः॑। अ॒सि॒। क्ष॒त्रस्य॑। नाभिः॑। अ॒सि॒। मा। त्वा॒। हि॒ꣳसी॒त्। मा। मा॒। हि॒ꣳसीः॒ ॥१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क्षत्रस्य योनिरसि क्षत्रस्य नाभिरसि । मा त्वा हिँसीन्मा मा हिँसीः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    क्षत्रस्य। योनिः। असि। क्षत्रस्य। नाभिः। असि। मा। त्वा। हिꣳसीत्। मा। मा। हिꣳसीः॥१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    हे सभापते! जिससे तू (क्षत्रस्य) राज्य का (योनिः) निमित्त (असि) है, (क्षत्रस्य) राजकुल का (नाभिः) नाभि के समान जीवन हेतु (असि) है, इससे (त्वा) तुझको कोई भी (मा, हिंसीत्) मत मारे, तू (मा) मुझे (मा, हिंसीः) मत मारे॥१॥

    भावार्थ - स्वामी और भृत्यजन परस्पर ऐसी प्रतिज्ञा करें कि राजपुरुष प्रजापुरुषों और प्रजापुरुष राजपुरुषों की निरन्तर रक्षा करें, जिससे सबके सुख की उन्नति होवे॥१॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top