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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 21
    ऋषिः - प्रस्कण्व ऋषिः देवता - सूर्यो देवता छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    उद्व॒यं तम॑स॒स्परि॒ स्वः पश्य॑न्त॒ उत्त॑रम्। दे॒वं दे॑व॒त्रा सूर्य॒मग॑न्म॒ ज्योति॑रुत्त॒मम्॥२१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत्। व॒यम्। तम॑सः। परि॑। स्वः᳕। पश्य॑न्तः। उत्त॑र॒मित्युत्ऽत॑रम्। दे॒वम्। दे॒व॒त्रेति॑ देव॒ऽत्रा। सूर्य॑म्। अग॑न्म। ज्योतिः॑। उ॒त्त॒ममित्यु॑त्ऽत॒मम् ॥२१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उद्वयन्तमसस्परि स्वः पश्यन्तऽउत्तरम् । देवन्देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उत्। वयम्। तमसः। परि। स्वः। पश्यन्तः। उत्तरमित्युत्ऽतरम्। देवम्। देवत्रेति देवऽत्रा। सूर्यम्। अगन्म। ज्योतिः। उत्तममित्युत्ऽतमम्॥२१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 21
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    पदार्थ -
    हे मनुष्यो! जैसे (वयम्) हम लोग (तमसः) अन्धकार से परे (ज्योतिः) प्रकाशस्वरूप (सूर्यम्) सूर्यलोक वा चराचर के आत्मा परमेश्वर को (परि) सब ओर से (पश्यन्तः) देखते हुए (देवत्रा) दिव्यगुण वाले देवों में (देवम्) उत्तम सुख के देने वाले (स्वः) सुखस्वरूप (उत्तरम्) सबसे सूक्ष्म (उत्तमम्) उत्कृष्ट स्वप्रकाशस्वरूप परमेश्वर को (उदगन्म) उत्तमता से प्राप्त हों, वैसे ही तुम लोग भी इसको प्राप्त होओ॥२१॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो सूर्य्य के समान स्वप्रकाश सब आत्माओं का प्रकाशक महादेव जगदीश्वर है, उसी की सब मनुष्य उपासना करें॥२१॥

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