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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 11
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - उपदेशका देवताः छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    त्र॒या दे॒वा एका॑दश त्रयस्त्रि॒ꣳशाः सु॒राध॑सः। बृह॒स्पति॑पुरोहिता दे॒वस्य॑ सवि॒तुः स॒वे। दे॒वा दे॒वैर॑वन्तु मा॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्र॒याः। दे॒वाः। एका॑दश। त्र॒य॒स्त्रि॒ꣳशा इति॑ त्रयःऽत्रि॒ꣳशाः। सु॒राध॑स॒ इति॑ सु॒ऽराध॑सः। बृह॒स्पति॑पुरोहिता॒ इति॒ बृह॒स्पति॑ऽपुरोहिताः। दे॒वस्य॑। स॒वि॒तुः। स॒वे। दे॒वाः। दे॒वैः। अ॒व॒न्तु॒। मा॒ ॥११ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्रया देवाऽएकादश त्रयस्त्रिँशाः सुराधसः । बृहस्पतिपुरोहिता देवस्य सवितुः सवे । देवा देवैरवन्तु मा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    त्रयाः। देवाः। एकादश। त्रयस्त्रिꣳशा इति त्रयःऽत्रिꣳशाः। सुराधस इति सुऽराधसः। बृहस्पतिपुरोहिता इति बृहस्पतिऽपुरोहिताः। देवस्य। सवितुः। सवे। देवाः। देवैः। अवन्तु। मा॥११॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 11
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    पदार्थ -
    जो (त्रयाः) तीन प्रकार के (देवाः) दिव्यगुण वाले (बृहस्पतिपुरोहिताः) जिनमें कि बड़ों का पालन करनेहारा सूर्य्य प्रथम धारण किया हुआ है, (सुराधसः) जिनसे अच्छे प्रकार कार्यों की सिद्धि होती वे (एकादश) ग्यारह (त्रयस्त्रिंशाः) तेंतीस दिव्यगुण वाले पदार्थ (सवितुः) सब जगत् की उत्पत्ति करनेहारे (देवस्य) प्रकाशमान ईश्वर के (सवे) परमैश्वर्य्ययुक्त उत्पन्न किये हुए जगत् में हैं, उन (देवैः) पृथिव्यादि तेंतीस पदार्थों से सहित (मा) मुझ को (देवाः) विद्वान् लोग (अवन्तु) रक्षा और बढ़ाया करें॥११॥

    भावार्थ - जो पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश, सूर्य्य, चन्द्र, नक्षत्र ये आठ और प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त, धनञ्जय तथा ग्यारहवाँ जीवात्मा, बारह महीने, बिजुली और यज्ञ इन तेंतीस दिव्यगुण वाले पृथिव्यादि पदार्थों के गुण, कर्म और स्वभाव के उपदेश से सब मनुष्यों की उन्नति करते हैं, वे सर्वोपकारक होते हैं॥११॥

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