Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 42
    ऋषिः - आङ्गिरस ऋषिः देवता - दैव्याध्यापकोपदेशकौ देवते छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    6

    दैव्या॒ मिमा॑ना॒ मनु॑षः पुरु॒त्रा होता॑रा॒विन्द्रं॑ प्रथ॒मा सु॒वाचा॑। मू॒र्द्धन् य॒ज्ञस्य॒ मधु॑ना॒ दधा॑ना प्रा॒चीनं॒ ज्योति॑र्ह॒विषा॑ वृधातः॥४२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दैव्या॑। मिमा॑ना। मनु॑षः। पु॒रु॒त्रेति॑ पुरु॒ऽत्रा। होता॑रौ। इन्द्र॑म्। प्र॒थ॒मा। सु॒वाचेति॑ सु॒ऽवाचा॑। मू॒र्द्धन्। य॒ज्ञस्य॑। मधु॑ना। दधा॑ना। प्रा॒चीन॑म्। ज्योतिः॑। ह॒विषा॑। वृ॒धा॒तः॒ ॥४२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दैव्या मिमाना मनुषः पुरुत्रा होताराविन्द्रम्प्रथमा सुवाचा । मूर्धन्यज्ञस्य मधुना दधाना प्राचीनञ्ज्योतिर्हविषा वृधातः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    दैव्या। मिमाना। मनुषः। पुरुत्रेति पुरुऽत्रा। होतारौ। इन्द्रम्। प्रथमा। सुवाचेति सुऽवाचा। मूर्द्धन्। यज्ञस्य। मधुना। दधाना। प्राचीनम्। ज्योतिः। हविषा। वृधातः॥४२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 42
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    जो (दैव्या) दिव्य पदार्थों और विद्वानों में हुए (मिमाना) निर्माण करनेहारे (होतारौ) दाता (सुवाचा) जिनकी सुशिक्षित वाणी वे विद्वान् (यज्ञस्य) संग करने योग्य व्यवहार के (मूर्द्धन्) ऊपर (प्रथमा) वर्त्तमान (पुरुत्रा) बहुत (मनुषः) मनुष्यों को (दधाना) धारण करते हुए (मधुना) मधुरादिगुणयुक्त (हविषा) होम करने योग्य पदार्थ से (प्राचीनम्) पुरातन (ज्योतिः) प्रकाश और (इन्द्रम्) परम ऐश्वर्य को (वृधातः) बढ़ाते हैं, वे सब मनुष्यों के सत्कार करने योग्य हैं॥४२॥

    भावार्थ - जो विद्वान् पढ़ाने और उपदेश से सब मनुष्यों को उन्नति देते हैं, वे सम्पूर्ण मनुष्यों को सुभूषित करनेहारे हैं॥४२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top