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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 49
    ऋषिः - वामदेव ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    आ नऽइन्द्रो॒ हरि॑भिर्या॒त्वच्छा॑र्वाची॒नोऽव॑से॒ राध॑से च। तिष्ठा॑ति व॒ज्री म॒घवा॑ विर॒प्शीमं य॒ज्ञमनु॑ नो॒ वाज॑सातौ॥४९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ। नः॒। इन्द्रः॑। हरि॑भि॒रिति॒ हरि॑ऽभिः। या॒तु॒। अच्छ॑। अ॒र्वा॒ची॒नः। अव॑से। राध॑से। च॒। तिष्ठा॑ति। व॒ज्री। म॒घवेति म॒घऽवा॑। वि॒र॒प्शीति॑ विऽर॒प्शी। इ॒मम्। य॒ज्ञम्। अनु॑। नः॒। वाज॑साता॒विति॒ वाज॑ऽसातौ ॥४९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ नऽइन्द्रो हरिभिर्यात्वच्छार्वाचीनोवसे राधसे च । तिष्ठाति वज्री मघवा विरप्शीमँयज्ञमनु नो वाजसातौ ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आ। नः। इन्द्रः। हरिभिरिति हरिऽभिः। यातु। अच्छ। अर्वाचीनः। अवसे। राधसे। च। तिष्ठाति। वज्री। मघवेति मघऽवा। विरप्शीति विऽरप्शी। इमम्। यज्ञम्। अनु। नः। वाजसाताविति वाजऽसातौ॥४९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 49
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    पदार्थ -
    जो (मघवा) परम प्रशंसित धनयुक्त (विरप्शी) महान् (अर्वाचीनः) विद्यादि बल से सन्मुख जाने वाला (वज्री) प्रशंसित शस्त्रविद्या की शिक्षा पाये हुए (इन्द्रः) ऐश्वर्य का दाता सेनाधीश (हरिभिः) अच्छी शिक्षा किये हुए घोड़ों से (नः) हम लोगों की (अवसे) रक्षा आदि के लिये (च) और (राधसे) धन के लिये (वाजसातौ) संग्राम में (अनु, तिष्ठाति) अनुकूल स्थित हो, वह (नः) हमारे (इमम्) इस (यज्ञम्) सत्यन्याय पालन करने रूप राज्यव्यवहार को (अच्छ, आ, यातु) अच्छे प्रकार प्राप्त हो॥४९॥

    भावार्थ - जो युद्धविद्या में कुशल बड़े बलवान्, प्रजा और धन की वृद्धि करनेहारे, उत्तम शिक्षा युक्त, हाथी और घोड़ों से युक्त कल्याण ही के आचरण करनेहारे हों, वे ही राजपुरुष होवें॥४९॥

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