यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 11
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - उपदेशका देवताः
छन्दः - पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
69
त्र॒या दे॒वा एका॑दश त्रयस्त्रि॒ꣳशाः सु॒राध॑सः। बृह॒स्पति॑पुरोहिता दे॒वस्य॑ सवि॒तुः स॒वे। दे॒वा दे॒वैर॑वन्तु मा॥११॥
स्वर सहित पद पाठत्र॒याः। दे॒वाः। एका॑दश। त्र॒य॒स्त्रि॒ꣳशा इति॑ त्रयःऽत्रि॒ꣳशाः। सु॒राध॑स॒ इति॑ सु॒ऽराध॑सः। बृह॒स्पति॑पुरोहिता॒ इति॒ बृह॒स्पति॑ऽपुरोहिताः। दे॒वस्य॑। स॒वि॒तुः। स॒वे। दे॒वाः। दे॒वैः। अ॒व॒न्तु॒। मा॒ ॥११ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्रया देवाऽएकादश त्रयस्त्रिँशाः सुराधसः । बृहस्पतिपुरोहिता देवस्य सवितुः सवे । देवा देवैरवन्तु मा ॥
स्वर रहित पद पाठ
त्रयाः। देवाः। एकादश। त्रयस्त्रिꣳशा इति त्रयःऽत्रिꣳशाः। सुराधस इति सुऽराधसः। बृहस्पतिपुरोहिता इति बृहस्पतिऽपुरोहिताः। देवस्य। सवितुः। सवे। देवाः। देवैः। अवन्तु। मा॥११॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथोपदेशकविषयमाह॥
अन्वयः
ये त्रया देवा बृहस्पतिपुरोहिताः सुराधस एकादश त्रयस्त्रिंशाः सवितुर्देवस्य सवे वर्त्तन्ते, तैर्देवैः सहितं मा देवा अवन्तु, उन्नतं सम्पादयन्तु॥११॥
पदार्थः
(त्रयाः) त्रयाणामवयवभूताः (देवाः) दिव्यगुणाः (एकादश) एतत्संख्याताः (त्रयस्त्रिंशाः) त्र्यधिकास्त्रिंशत् (सुराधसः) सुष्ठु राधसः संसिद्धयो येभ्यस्ते (बृहस्पतिपुरोहिताः) बृहस्पतिः सूर्य्यः पुरः पूर्वो हितो धृतो येषु ते (देवस्य) प्रकाशमानेश्वरस्य (सवितुः) सकलजगदुत्पादकस्य (सवे) परमैश्वर्ययुक्ते प्रेरितव्ये जगति (देवाः) विद्वांसः (देवैः) द्योतमानैः (अवन्तु) रक्षन्तु (मा) माम्॥११॥
भावार्थः
ये पृथिव्यप्तेजोवाय्वाकाशद्युचन्द्रनक्षत्राण्यष्टौ प्राणादयो दश वायव एकादशो जीवात्मा द्वादश मासा विद्युद्यज्ञश्चैतेषां दिव्यपृथिव्यादीनां पदार्थानां गुणकर्मस्वभावोपदेशेन सर्वान् मनुष्यानुत्कर्षयन्ति, ते सर्वोपकारका भवन्ति॥११॥
हिन्दी (3)
विषय
अब उपदेशक विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
जो (त्रयाः) तीन प्रकार के (देवाः) दिव्यगुण वाले (बृहस्पतिपुरोहिताः) जिनमें कि बड़ों का पालन करनेहारा सूर्य्य प्रथम धारण किया हुआ है, (सुराधसः) जिनसे अच्छे प्रकार कार्यों की सिद्धि होती वे (एकादश) ग्यारह (त्रयस्त्रिंशाः) तेंतीस दिव्यगुण वाले पदार्थ (सवितुः) सब जगत् की उत्पत्ति करनेहारे (देवस्य) प्रकाशमान ईश्वर के (सवे) परमैश्वर्य्ययुक्त उत्पन्न किये हुए जगत् में हैं, उन (देवैः) पृथिव्यादि तेंतीस पदार्थों से सहित (मा) मुझ को (देवाः) विद्वान् लोग (अवन्तु) रक्षा और बढ़ाया करें॥११॥
भावार्थ
जो पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश, सूर्य्य, चन्द्र, नक्षत्र ये आठ और प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त, धनञ्जय तथा ग्यारहवाँ जीवात्मा, बारह महीने, बिजुली और यज्ञ इन तेंतीस दिव्यगुण वाले पृथिव्यादि पदार्थों के गुण, कर्म और स्वभाव के उपदेश से सब मनुष्यों की उन्नति करते हैं, वे सर्वोपकारक होते हैं॥११॥
विषय
तेंतीस विद्वान् देवों की प्रतिष्ठा ।
भावार्थ
(त्रयाः एकादश ) तीन विशेष शक्तियों के ही अंशांश रूप से विद्यमान ११, ११, और ११ ये (त्रयः त्रिंशाः) तेंतीस (देवाः) देव, विद्वान्गण (सुराधसः) उत्तम धन ऐश्वर्य से सम्पन्न एवं (बृहस्पति पुरो- हिताः) बृहस्पति, वेदज्ञ विद्वान् को अपना महामात्य पुरोहित अग्रवर्ती प्रमुख बनाकर (देवस्य) देव (सवितुः) सबके प्रेरक राजा के भी राजा परमेश्वर के (सवे) परमैश्वर्य युक्त शासन या जगत् में रहें। और वे (देवाः) समस्त विद्वान् पुरुष (देवैः ) अपने दिव्य गुणों और व्यवहारों से ( मा अवन्तु) मुझ प्रजाजन और राजा की रक्षा करें । साधारणतः - पृथ्वी, अप, तेज, वायु, आकाश, सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र ये आठ वसु, दश प्राण और ग्यारहवां जीव ये ११ रुद्र, बारह मास १२ आदित्य, विद्युत् और यज्ञ ये सब मेरी रक्षा करें । अर्थात् — मैं शत्रु मित्र दोनों के देशों को वश करूं । पशु, गौ अश्वादिमान्, प्राणों से नीरोग, आत्मप्रतिष्ठ अर्थात् मानस दुख से रहित समृद्ध, इह और पर दोनों लोकों में कीर्त्तिमान्, धर्मात्मा और प्रभावशाली होऊं ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रजापतिः । उपदेशकाः । पंक्तिः । पंचमः ॥
विषय
३३ देव
पदार्थ
१. (त्रयाः) = [ त्रयोऽवयवा येषां ते] तीन प्रकार के (एकादश) = ग्यारह ग्यारह (देवा:) = देव (त्रयस्त्रिंशाः) = कुल मिलाकर तैतीस देव [जो ११ पृथिवीलोक में हैं, ११ अन्तरिक्षलोक में हैं तथा ११ द्युलोक में- ये सब ] (सुराधसः) = [ शोभनं राधो येषाम् ] उत्तम धनोंवाले हैं। उसउस धनवाले हैं जोकि [राध्नोति अनेन ] हमें सब प्रकार की उन्नतियों में सफल बनाते हैं। २. ये (बृहस्पतिपुरोहिता:) = [बृहस्पतिः सूर्यः पुरः पूर्व: हितो धृतो येषु - द०] सूर्यरूपी मुखियावाले (देवाः) = देव (देवस्य सवितुः) = उस दिव्य गुणोंवाले उत्पादक प्रभु की (सवे) = अनुज्ञा में वर्त्तमान हुए-हुए (देवैः) = अपनी दीप्तियों से व अपने दिव्य गुणों से (मा अवन्तु) = मेरी रक्षा करें। ३. संसार में कुल तैतीस देव हैं-ये 'पृथिवी, अन्तरिक्ष व द्युलोक' में स्थिति के कारण तीन प्रकार हैं। एक- एक देव में उत्तम धन निहित है। इन तैतीस देवों में सूर्य मुख्य है। वस्तुत: सूर्य केन्द्र में है और सब देव सूर्य के चारों ओर घूमते हैं और इस प्रकार एक सौरलोक बनता है। प्रभु की अनुज्ञा में वर्त्तमान ये सब देव अपने दिव्य गुणों से हमारी रक्षा करें।
भावार्थ
भावार्थ - तैतीस देव मेरे लिए सुराधस् हों, ये मेरी रक्षा करें।
मराठी (2)
भावार्थ
जे विद्वान जल, तेज, वायू, आकाश, सूर्य, चंद्र नक्षत्र हे आठ (वसू) , प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त, धनंजय व अकरावा जीवात्मा (रुद्र) , बारा महिने (आदित्य) , तसेच विद्युत व यज्ञ अशा तेहतीस देवता अर्थात पृथ्वी इत्यादी पदार्थांच्या गुण, कर्म, स्वभावाचा उपदेश करतात ते सर्व माणसांची उन्नती करण्यास साह्यभूत ठरून सर्वांवर उपकार करतात.
विषय
आता उपदेशकांविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (या जगात) (त्रयाः) तीन प्रकारचे (देवाः) दिव्यगुणधारक (असे पदार्थ आहेत) या (बृहस्पतिपुरोहिताः) सर्वांमधे मोठ्यामोठ्यांचे पालन करणारा सुर्य प्रथम आहे. या शिवाय (सुराधसः) ज्यांमुळे कार्यांची सिद्धी चांगल्याप्रकारे होते असे (एकादश) अकरा आणि (त्रयस्त्रिंशा) तेहतीस दिव्यगुणधारक पदार्थ (सवितुः) सर्व जगाची उत्पत्ती करणाऱ्या (देवस्य) कीर्तिमान परमेश्वराने (सवे) उत्पन्न केलेल्या या परमैश्वर्ययुक्त जगात आहेत. त्या (देवैः) पृथ्वी आदी तेहतीस पदार्थांसह (देवाः) विद्वानजनांनी (मा) माझे (उपदेशकाचे, सर्वांना ज्ञान देणाऱ्याचे) (अवन्तु) रक्षण करावे (ही माझी अभिलाषा आहे) ॥11॥
भावार्थ
भावार्थ - पृथ्वी, जल, वायू, आकाश, सूर्य, चंद्र आणि नक्षत्र हे आठ (पदार्थ) प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कर्म, कृकल, देवदत्त, धनंजय व अकरावा जीवात्मा, याशिवाय बारा महिने, विद्युत आणि यज्ञ या एकूण तेहतीस दिव्यगुण धारक पृथ्वी आदी पदार्थांच्या गुणांचा, कर्म (कार्य) आणि स्वभाव यांविषयी उपदेश देऊन जे उपदेशक सर्व मनुष्यांचे कल्याण करतात, तेच खऱ्या अर्थाने सर्वांचे उपकारक आहेत ॥11॥
इंग्लिश (3)
Meaning
There are three times eleven, i. e. , thirty three fine objects imbued with attributes, duties and inherent properties, in this world created by God; of whom the sun is the most prominent, and which are serviceable to mankind. May the learned persons, with the help of these objects protect me.
Meaning
Three are the orders of divinities, brilliant powers of nature’s generosity. Three times eleven are they, thirty-three powers of grandeur and majesty all, Brihaspati, the Sun, great lord of light and knowledge being their chief. In this great world of Lord Savita’s yajnic creation, may the devas, brilliant scholars of knowledge and generosity, with all these divine powers, protect me and promote me for the higher life. Note: The thirty three devas, according to Swami Ji are: i. Eight Vasus, abodes and supports of life, are: earth, water, fire, air, space, sun, moon and the stars. ii. Eleven Rudras, viz. , five primary pranic energies (prana, apana, vyana, udana and samana), five secondary pranic energies (naga, kurma, krikala devadatta and dhananjaya), and the soul. They are Rudras because they destroy pain, and when they leave the body they make people cry in sorrow. iii. Twelve Adityas, viz. , twelve months of the year, they being zodiacs of the sun in the year. They are Adityas because they count up the time and exhaust the life of whatever is born. In addition to these (8+11+12), there is Indra, universal electric energy, and Yajna, universal creative power. Ji are:
Translation
There are three types of deities (bounties of Nature), eleven each in number, thirty-three in all, and bounteous. Under the leadership of the Lord Supreme and at the impulsion of the inspirer Lord, may those bounties of Nature guard me with the enlightened ones. (1)
Notes
Trayā ekādaśa, त्रिप्रकारा: एकादश, thrice eleven; 33. Surādhasah, राधः इति धननाम, शोभनधनाः, bounteous. Brhaspatipurohitaḥ, whose leader is Brhaspati. Save, आज्ञायां वर्तमाना:, at his urging; under his orders.
बंगाली (1)
विषय
অথোপদেশকবিষয়মাহ ॥
এখন উপদেশক সম্পর্কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- যে (ত্রয়াঃ) তিন প্রকারের (দেবাঃ) দিব্যগুণ সম্পন্ন (বৃহস্পতি পুরোহিতা) যাহাতে গুরুজনদের পালনকারী সূর্য্য প্রথম ধারণ করিয়া আছে (সুরাধসঃ) যদ্দ্বারা ভালমত কার্য্যের সিদ্ধি হয় তাহারা (একাদশ) এগারো (ত্রয়স্ত্রিংশাঃ) তেত্রিশ দিব্যগুণ যুক্ত পদার্থ (সবিতুঃ) সকল জগতের উৎপন্নকারী (দেবস্য) প্রকাশমান ঈশ্বরের (সবে) পরমৈশ্বর্য্যযুক্ত উৎপন্ন জগতে আছে সেই সব (দেবৈঃ) পৃথিব্যাদি তেত্রিশ পদার্থ সহিত (মা) আমাকে (দেবাঃ) বিদ্বান্গণ (অবন্তু) রক্ষা ও বৃদ্ধি করুক ॥ ১১ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- যে পৃথিবী, জল, তেজ, বায়ু, আকাশ, সূর্য্য, চন্দ্র, নক্ষত্র এই আট এবং প্রাণ, অপান, ব্যান, উদান, সমান, নাগ, কূর্ম, কৃকল, দেবদত্ত, ধনঞ্জয় তথা একাদশ জীবাত্মা, বারো মাস, বিদ্যুৎ, যজ্ঞ এই তেত্রিশ দিব্যগুণযুক্ত পৃথিব্যাদি পদার্থের জন্য কর্ম ও স্বভাবের উপদেশ দ্বারা সকল মনুষ্যের উন্নতি করে তাহারা সর্বোপকারক হইয়া থাকে ॥ ১১ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
ত্র॒য়া দে॒বা একা॑দশ ত্রয়স্ত্রি॒ꣳশাঃ সু॒রাধ॑সঃ । বৃহ॒স্পতি॑পুরোহিতা দে॒বস্য॑ সবি॒তুঃ স॒বে । দে॒বা দে॒বৈর॑বন্তু মা ॥ ১১ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ত্রয়া ইত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । উপদেশকা দেবতাঃ । পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥
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