यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 23
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - समिद्देवता
छन्दः - स्वराडतिशक्वरी
स्वरः - पञ्चमः
258
एधो॑ऽस्येधिषी॒महि॑ स॒मिद॑सि॒ तेजो॑ऽसि॒ तेजो॒ मयि॑ धेहि। स॒माव॑वर्ति पृथि॒वी समु॒षाः समु॒ सूर्यः॑। समु॒ विश्व॑मि॒दं जग॑त्। वै॒श्वा॒न॒रज्यो॑तिर्भूयासं वि॒भून् कामा॒न् व्यश्नवै॒ भूः स्वाहा॑॥२३॥
स्वर सहित पद पाठएधः॑। अ॒सि॒। ए॒धि॒षी॒महि॑। स॒मिदिति॑ स॒म्ऽइत्। अ॒सि॒। तेजः॑। अ॒सि॒। तेजः॑। मयि॑। धे॒हि॒। स॒माव॑व॒र्तीति॑ स॒म्ऽआव॑वर्ति। पृ॒थि॒वी। सम्। उ॒षाः। सम्। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। सूर्यः॑। सम्। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। विश्व॑म्। इ॒दम्। जग॑त्। वै॒श्वा॒न॒रज्यो॑ति॒रिति॑ वैश्वान॒रऽज्यो॑तिः। भू॒या॒स॒म्। वि॒भूनिति॑ वि॒ऽभून्। कामा॑न्। वि। अ॒श्न॒वै॒। भूः। स्वाहा॑ ॥२३ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एधोस्येधिषीमहि समिदसि तेजो सि तेजो मयि धेहि । समाववर्ति पृथिवी समुषाः समु सूर्यः । समु विश्वमिदञ्जगत् । वैश्वानरज्योतिर्भूयासँविभून्कामान्व्यश्नवै भूः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठ
एधः। असि। एधिषीमहि। समिदिति सम्ऽइत्। असि। तेजः। असि। तेजः। मयि। धेहि। समाववर्तीति सम्ऽआववर्ति। पृथिवी। सम्। उषाः। सम्। ऊँऽइत्यूँ। सूर्यः। सम्। ऊँऽइत्यूँ। विश्वम्। इदम्। जगत्। वैश्वानरज्योतिरिति वैश्वानरऽज्योतिः। भूयासम्। विभूनिति विऽभून्। कामान्। वि। अश्नवै। भूः। स्वाहा॥२३॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ प्रकृतविषये पुनरुपासनाविषयमाह॥
अन्वयः
हे जगदीश्वर! त्वमेधोऽसि समिदसि तेजोऽसि, तस्मात् तेजो मयि धेहि। यो भवान् सर्वत्र समाववर्त्ति येन भवता पृथिव्युषाश्च संसृष्टा सूर्यः संसृष्ट इदं विश्वं जगत् संसृष्टम्, तदु वैश्वानरज्योतिर्ब्रह्म प्राप्य वयमेधिषीमहि, यथाऽहं स्वाहाभूविभून् कामान् व्यश्नवै सुखी न भूयासमु तथैव यूयमपि सिद्धकामाः सुखिनः स्यात॥२३॥
पदार्थः
(एधः) वर्द्धकः (असि) (एधिषीमहि) वर्द्धिषीमहि (समित्) अग्नेरिन्धनमिव मनुष्याणामात्मनां प्रकाशकः (असि) (तेजः) तीव्रप्रज्ञः (असि) (तेजः) ज्ञानप्रकाशम् (मयि) (धेहि) (समाववर्त्ति) सम्यग् वर्त्तेत। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदं शपः श्लुश्च (पृथिवी) भूमिः (सम्) (उषाः) प्रभातः (सम्) (उ) इति वितर्के (सूर्यः) (सम्) (उ) (विश्वम्) (इदम्) (जगत्) (वैश्वानरज्योतिः) विश्वेषु नरेषु प्रकाशमानं वैश्वानरं वैश्वानरं च तज्ज्योतिश्च वैश्वानरज्योतिः (भूयासम्) (विभून्) व्यापकान् (कामान्) संकल्पितान् (वि) विविधतया (अश्नवै) प्राप्नुयाम् (भूः) सत्तात्मिकाम् (स्वाहा) सत्यया वाचा क्रियया च॥२३॥
भावार्थः
हे मनुष्याः! यच्छुद्धं सर्वत्र व्यापकं सर्वप्रकाशकं जगत्स्रष्टृधर्तृप्रलयकृद् ब्रह्मोपास्य यूयमानन्दिता यथा भवत, तथैतल्लब्ध्वा वयमप्यानन्दिता भवेमाऽऽकाशकालदिशोऽपि विभून् जानीयाम॥२३॥
हिन्दी (3)
विषय
अब प्रकरणगत विषय में फिर उपासना विषय कहते हैं॥
पदार्थ
हे जगदीश्वर! आप (एधः) बढ़ानेहारे (असि) हैं, जैसे (समित्) अग्नि का प्रकाशक इन्धन है, वैसे मनुष्यों के आत्मा का प्रकाश करनेहारे (असि) हैं और (तेजः) तीव्रबुद्धि वाले (असि) हैं, इससे (तेजः) ज्ञान के प्रकाश को (मयि) मुझ में (धेहि) धारण कीजिये। जो आप सर्वत्र (समाववर्त्ति) अच्छे प्रकार व्याप्त हो जिन आपने (पृथिवी) भूमि और (उषाः) उषा (सम्) अच्छे प्रकार उत्पन्न की (सूर्य्यः) सूर्य्य (सम्) अच्छे प्रकार उत्पन्न किया (इदम्) यह (विश्वम्) सब (जगत्) जगत् (सम्) उत्पन्न किया (उ) उसी (वैश्वानरज्योतिः) विश्व के नायक प्रकाशस्वरूप ब्रह्म को प्राप्त होके लोग (एधिषीमहि) नित्य बढ़ा करें, जैसे मैं (स्वाहा) सत्यवाणी वा क्रिया से (भूः) सत्ता वाली प्रकृति (विभून्) व्यापक पदार्थ और (कामान्) कामों को (व्यश्नवै) प्राप्त होऊं और सुखी (भूयासम्) होऊं (उ) और वैसे तुम भी सिद्धकाम और सुखी होओ॥२३॥
भावार्थ
हे मनुष्यो! जिस शुद्ध, सर्वत्र व्यापक, सब के प्रकाशक, जगत् के उत्पादन, धारण, पालन और प्रलय करनेहारे ब्रह्म की उपासना करके तुम लोग जैसे आनन्दित होते हो, वैसे इस को प्राप्त होके हम भी आनन्दित होवें; आकाश, काल और दिशाओं को भी व्यापक जानें॥२३॥
विषय
सम्राट् की वैश्वानर ज्योति सूर्य के समान स्थिति ।
भावार्थ
हे परमेश्वर ! प्रभो ! ( त्वम् ) तू (एधः असि) अग्नि में रखे काष्ठ के समान तेज को बढ़ा देने वाला स्वतः प्रकाशस्त्ररूप है । हम (एधिपी महि) सदा वृद्धि को प्राप्त हों । तु (समित् असि ) संग लगे अग्नि को काष्ठ के समान प्रकाशित करने वाला है, तू स्वयं (तेजः असि) तेज: स्वरूप है । (मयि) मुझ में तू (तेजः देहि) तेज प्रदान कर । (पृथिवी), पृथिवी, यह लोक (सम् आववर्ति) अच्छी प्रकार रहे, (उषाः) उषा ( सम् ) अच्छी प्रकार सुखदायिनी हो, (सूर्य: सम् उ ) सूर्य हमें सदा सुखदायी हो । ( इदं विश्वं जगत् ) यह समस्त जगत् (सम् उ ) हमें सुखकारी हो । और मैं (वैश्वानर-ज्योतिः) समस्त विश्व के हितकारक जाठर अग्नि, सामान्य अग्नि, विद्युत् और सूर्य और परमेश्वर की सब ज्योतियों के समान ज्योति धारण करने वाला, सर्वोपकारक ( भूयासम् )- होऊं । मैं ( बिभून् ) बड़े-बड़े, विविध ( कामान् ) कामनायोग्य ऐश्वर्यो को (व्यश्नवै) प्राप्त करूं । (भूः स्वाहा ) संसार के उत्पादक, परमेश्वर और पृथ्वी को उत्तम न्याय धर्म और सत्य ज्ञान द्वारा प्राप्त करूं । शत ०-१२ । ९ । २ । १० ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
समिद् अग्निर्वैश्वानरश्च देवताः । स्वराड अतिशक्वरी । पंचमः ॥
विषय
उदार इच्छाएँ
पदार्थ
१. गतमन्त्र के अनुसार उस रसमय प्रभु से अपना सम्पर्क बनानेवाला व्यक्ति प्रभु से प्रार्थना करता है कि (एधः असि) = आप सदा से बढ़े हुए हैं। आप प्रत्येक गुण का निरतिशय रूप हैं। (एधिषीमहि) = आपके सम्पर्क से हम भी बढ़नेवाले बनें। २. (समित् असि) = आप सम्यक् दीप्त ज्ञानाग्निरूप हैं। आपकी कृपा से मेरी ज्ञानाग्नि भी दीप्त हो। ३. (तेजः असि) = आप तेजस्विता के पुञ्ज हैं। (तेजः मयि धेहि) = आप मुझमें तेजस्विता का आधान कीजिए । ४. इस 'वर्धन- ज्ञानाग्निदीपन व तेजस्विता' के लिए मैं उसी प्रकार अपने दैनिक कार्यक्रम का ठीक से आवर्तन करूँ जैसेकि (पृथिवी समाववर्ति) = पृथिवी सम्यक्तया आवृत्त हो रही है। (उ) = और (उषा:) = उषा (उ) = तथा (सूर्य:) = सूर्य भी (सम्) = नियमपूर्वक आवर्तन में चल रहा है। बहुत क्या? (इदं विश्वं जगत्) = यह सम्पूर्ण संसार (उ) = भी (सम्) = सम्यक् आवर्तन कर रहा है। इस संसार से प्रेरणा लेकर मैं भी सम्यक् आवर्तनवाला बनूँ। मेरी दिनचर्या बड़ी ठीक हो । ५. इस प्रकार प्राकृतिक जगत् के आवर्तन की भाँति अपने दैनिक कार्यक्रम का ठीक आवर्तन करता हुआ मैं (वैश्वानरज्योतिः) = सब मनुष्यों के सञ्चालक प्रभु की ज्योतिवाला बनूँ, प्रभु के तेज से तेजस्वी बनूँ। ६. (विभून्) = व्यापक (कामान्) = इच्छाओं को (व्यश्नवै) = प्राप्त करूँ। मेरी कमानाएँ उदारता को लिये हुए हों। संकुचित, स्वार्थमयी इच्छाओंवाला मैं न होऊँ। ७. इस प्रकार उत्तम जीवनवाला बनकर (भूः) = मैं प्राणशक्ति का पुञ्ज बनूँ और स्वाहा उस आत्मा के प्रति अपना अर्पण करनेवाला बनूँ।
भावार्थ
भावार्थ- मैं 'वर्धन- ज्ञानाग्निदीपन व तेजस्वितावाला' होऊँ । सूर्य-चन्द्र आदि की भाँति व्यवस्थित क्रियाओंवाला बनूँ। प्रभु के तेजोऽश को प्राप्त करूँ। उदारमना बनूँ । प्राणशक्तिसम्पन्न होकर समर्पण की वृत्तिवाला होऊँ ।
मराठी (2)
भावार्थ
हे माणसांनो ! ज्या शुद्ध, सर्वव्यापक, सर्वांचा प्रकाशक, जगाची निर्मिती, धारण, पालन व प्रलय करणाऱ्या ब्रह्माची उपासना करून तुम्ही आनंदी होता त्या ब्रह्माला प्राप्त करून आम्हीही आनंदी व्हावे. आकाश, दिशा व काळ हे व्यापक आहेत, हे जाणा.
विषय
आता पूर्वीच्या प्रकरणात पुन्हा उपासने विषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (उपासक म्हणत आहे) हे जगदीश्वर, आपण (एधः) आमची वृद्धी वा उन्नती करणारे (असि) आहात. (समित्) ज्याप्रमाणे इंधन (लाकूड, समिध्य) अग्नीला प्रकाशित प्रकट करते, तसे आपण मनुष्यांच्या आत्म्यास प्रकाशित करणारे (असि) आहात. तसेच (तेजः) तीव्र बुद्धीचे (असि) आहात. यामुळे आपण (मयि) माझ्या बुद्दीमधे (तेजः) मानाचा प्रकाश (धेहि) धारण करा. आपण सर्वत्र (समावर्तीत) व्याप्त असून आपणच (पृथिवी) भूमी आणि (उषाः) उषःकाळ (सम्) चांगल्याप्रकारे उत्पन्न केली आहे. आपणच (सूर्य्यः) सूर्याचे (सम्) उत्पत्ती केली आहे. तसेच (इदम्) हे (विश्वम्) सर्व (जगत्) जग (सम्) उत्पन्न केले आहे. (उ) त्या (वैश्वानरज्योतिः) समस्त विश्वाचे नायक प्रकाशस्वरूप ब्रह्माला (आपणाला) प्राप्त करून (आपली उपासना करून) आम्ही (सर्व उपासकराज) (एधिषीमहि) नित्य उन्नती करीत राहू. ज्या प्रमाणे मी (उपासक) (स्वाहा) सत्यवाणी आणि सत्य आचरणाने (भूः) सत्तात्मक प्रकृती आणि (विभून्) सर्व व्यापक पदार्थ (अग्नी, विद्युत आदी) तसेच (कामान्) सर्व कार्यात (इच्छा) मधे (व्यश्नवे) (भूयासम्) वा सुखी होत आहे, तद्वत हे उपासकगण, आपणही आपल्या इच्छा पूर्ण करून घ्या आणि सुखी व्हा. ॥23॥
भावार्थ
भावार्थ - हे मनुष्यानो, (श्रेष्ठ उपासकहो) जसे आपण सर्व व्यापक, सर्वप्रकाशक, जगदुत्पादक, धारक, पालक आणि प्रलयकारक परमेश्वराची उपासना करून आनंदित होत आहात, तसे त्या परमेश्वराला प्राप्त करून (त्याची उपासना करून) आम्ही (नवीन साधक वा उपासकगणांनी देखील) आनंदित व्हायला हवे. आकाश, काल आणि दिशा हे देखील व्यापक आहेत, असे आम्ही जाणले पाहिजे. ॥23॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O God, Thou conducest to our prosperity. Just as fuel illumines fire, so dost Thou illumine our souls. Thou art wisdom personified. Grant me the light of knowledge. Thou art omnipresent. Thou hast nicely created the Earth, Dawn, Sun, and this entire world. May we always prosper, having realized the Effulgent Lord, the Guide of the universe. May I achieve various big ambitions. May I realise God and Matter through truthful speech, and noble deeds.
Meaning
Samit, food of the holy fire, you are the harbinger of prosperity. May we be prosperous. You are the food of the light divine, light itself. Infuse light and lustre into me. May the earth be generous. May the dawns bring us light and peace. May the sun give light and warmth. May this whole world be full of joy. May I shine with the light of the world and be the light itself. May I attain my desire and great ambitions. May I, with truth of word and deed, attain the glory of the world.
Translation
O Lord, you are the prosperity; may we prosper. (1) You are the kindling wood. You are brilliance; put brilliance on me. (2) The earth rotates; also the dawns, and also the sun; the whole of this universe also rotates. (3) May I become a light leading all men. May my ambitious desires be fulfilled. О Being, svaha. (4)
Notes
Edhaḥ, एधयति दीपयति इति एध:, fire-brand. Also, prosperity. again. Samit, kindling fire-wood. Samāvavarti, rotates; comes Vaiśvānarajyotiḥ, a light like fire; or a light leading all men; lustrous as fire. Bhūḥ, O Being! (a mahävyähṛti, an asupicious exclama tion). Or, सत्ता मात्र ब्रह्म, the Supreme God, in His existential as pect.
बंगाली (1)
विषय
অথ প্রকৃতবিষয়ে পুনরুপাসনাবিষয়মাহ ॥
এখন প্রকরণগত বিষয়ে পুনঃ উপাসনা বিষয় বলা হইতেছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে জগদীশ্বর ! আপনি (এধঃ) বর্দ্ধক (অসি) আছেন (সমিৎ) যেমন অগ্নির প্রকাশক ইন্ধন, সেইরূপ মনুষ্যদিগের আত্মার প্রকাশক (অসি) আছেন এবং (তেজঃ) তীব্র বুদ্ধি সম্পন্ন (অসি) আছেন । ইহা দ্বারা (তেজঃ) জ্ঞানের প্রকাশকে (ময়ি) আমাতে (ধেয়ি) ধারণ করুন যেহেতু আপনি সর্বত্র (সমাববর্ত্তি) উত্তম প্রকার ব্যাপ্ত, আপনি (পৃথিবী) ভূমি ও (উষাঃ) উষা (অম্) উত্তম প্রকার উৎপন্ন করিয়াছেন (সূর্য়্যঃ) সূর্য্য (সম্) উত্তম প্রকার উৎপন্ন করিয়াছেন (ইদম্) এই (বিশ্বম্) সকল (জগৎ) জগৎ (সম্) উৎপন্ন করিয়াছেন (উ) সেই (বৈশ্বানরজ্যোতিঃ) বিশ্বের নায়ক প্রকাশস্বরূপ ব্রহ্মকে প্রাপ্ত হইয়া মনুষ্যগণ (এধিষীমহি) নিত্য উন্নতি করুক যেমন আমি (স্বাহা) সত্যবাণী বা ক্রিয়া দ্বারা (ভূঃ) সত্তাযুক্তা প্রকৃতি (বিভূন্) ব্যাপক পদার্থ এবং (কামান্) কর্মকে (ব্যশ্নবৈ) প্রাপ্ত হই এবং সুখী (ভূয়াসম্) হই । (উ) এবং সেইরূপ তুমিও সিদ্ধকাম ও সুখী হও ॥ ২৩ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যে শুদ্ধ, সর্বত্র ব্যাপক, সকলের প্রকাশক, জগতের উৎপাদন, ধারণ, পালন ও প্রলয়কারী ব্রহ্মের উপাসনা করিয়া তোমরা যেমন আনন্দিত হও সেইরূপ ইহা প্রাপ্ত হইয়া আমরাও আনন্দিত হই । আকাশ, কালও দিশাগুলিকেও ব্যাপক জানিও ॥ ২৩ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
এধো॑ऽস্যেধিষী॒মহি॑ স॒মিদ॑সি॒ তেজো॑ऽসি॒ তেজো॒ ময়ি॑ ধেহি ।
স॒মাব॑বর্তি পৃথি॒বী সমু॒ষাঃ সমু॒ সূর্য়ঃ॑ । সমু॒ বিশ্ব॑মি॒দং জগ॑ৎ ।
বৈ॒শ্বা॒ন॒রজ্যো॑তির্ভূয়াসং বি॒ভূন্ কামা॒ন্ ব্য᳖শ্নবৈ॒ ভূঃ স্বাহা॑ ॥ ২৩ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
এধোऽসীত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । সমিদ্দেবতা । স্বরাডতিশক্বরী ছন্দঃ ।
পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥
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