यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 55
ऋषिः - विदर्भिर्ऋषिः
देवता - अश्विसरस्वतीन्द्रा देवताः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
163
समि॑द्धोऽअ॒ग्निर॑श्विना त॒प्तो घ॒र्मो वि॒राट् सु॒तः। दु॒हे धे॒नुः सर॑स्वती॒ सोम॑ꣳ शु॒क्रमि॒हेन्द्रि॒यम्॥५५॥
स्वर सहित पद पाठसमि॑द्ध॒ इति॒ सम्ऽइ॑द्धः। अ॒ग्निः। अ॒श्वि॒ना॒। त॒प्तः। घ॒र्मः। वि॒राडिति॑ वि॒ऽराट्। सु॒तः। दु॒हे। धे॒नुः। सर॑स्वती। सोम॑म्। शु॒क्रम्। इ॒ह। इ॒न्द्रि॒यम् ॥५५ ॥
स्वर रहित मन्त्र
समिद्धोऽअग्निरश्विना तप्तो घर्मा विराट्सुतः । दुहे धेनुः सरस्वती सोमँ शुक्रमिहेन्द्रियम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
समिद्ध इति सम्ऽइद्धः। अग्निः। अश्विना। तप्तः। घर्मः। विराडिति विऽराट्। सुतः। दुहे। धेनुः। सरस्वती। सोमम्। शुक्रम्। इह। इन्द्रियम्॥५५॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ स्त्रीपुरुषयोर्विषयमाह॥
अन्वयः
यथेह धेनुस्सरस्वती शुक्रं सोममिन्द्रियं च दोग्धि, तथैतमहं दुहे, अश्विना तप्तो विराट् सुतः समिद्धो घर्मोऽग्निर्यथा विश्वं पाति, तथाहमेतत्सर्वं रक्षेयम्॥५५॥
पदार्थः
(समिद्धः) सम्यक् प्रदीप्तः (अग्निः) पावकः (अश्विना) शुभगुणेषु व्याप्तौ (तप्तः) (घर्मः) यज्ञ इव संगतियुक्तः (विराट्) विविधतया राजते (सुतः) प्रेरितः (दुहे) (धेनुः) दुग्धदात्री गौरिव (सरस्वती) शास्त्रविज्ञानयुक्ता वाक् (सोमम्) ऐश्वर्यम् (शुक्रम्) शुद्धम् (इह) अस्मिन् संसारे (इन्द्रियम्) धनम्॥५५॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। अस्मिन् संसारे तुल्यगुणकर्मस्वभावौ स्त्रीपुरुषौ सूर्यवत्सत्कीर्तिप्रकाशमानौ पुरुषार्थिनौ भूत्वा धर्मेणैश्वर्यं सततं सञ्चिनुताम्॥५५॥
हिन्दी (3)
विषय
अब स्त्री-पुरुषों का विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
जैसे (इह) इस संसार में (धेनुः) दूध वाली गाय के समान (सरस्वती) शास्त्र विज्ञानयुक्त वाणी (शुक्रम्) शुद्ध (सोमम्) ऐश्वर्य और (इन्द्रियम्) धन को परिपूर्ण करती है, वैसे उसे मैं (दुहे) परिपूर्ण करूं। हे (अश्विना) शुभगुणों में व्याप्त स्त्री पुरुषो! (तप्तः) तपा और (विराट्) विविध प्रकार से प्रकाशमान (सुतः) प्रेरणा को प्राप्त (समिद्धः) प्रदीप्त (घर्मः) यज्ञ के समान संगतियुक्त (अग्निः) पावक जगत् की रक्षा करता है, वैसे मैं इस सब जगत् की रक्षा करूं॥५५॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। इस संसार में तुल्य गुण-कर्म-स्वभाव वाले स्त्री-पुरुष सूर्य के समान कीर्ति से प्रकाशमान पुरुषार्थी होके धर्म से ऐश्वर्य्य को निरन्तर संचित करें॥५५॥
विषय
अग्नि के समान तेजस्वी पद पर अभिषिक्त नायक के लक्षण।
भावार्थ
हे (अश्विनौ) प्रजा के स्त्री-पुरुषो ! (अग्निः) अग्नि के समान तेजस्वी राजा (सम् इद्वः) अपने तेज से अति प्रदीप्त (तप्तः) पराक्रम से शत्रुतापी, (धर्मः) आदित्य के समान ( विराट् ) विविध ऐश्वर्यों से तेजस्वी होकर (सुतः) अभिषिक्त है । (सरस्वती) उत्तम ज्ञान से युक्त वेदवाणी के समान विदुषी, विद्वत्सभा ( धेनु) गाय के समान समस्त सार पदार्थों को प्राप्त करने वाली (इह) इस राष्ट्र में (शुक्रम् ) शुद्ध, ( इन्द्रियम् ) इन्द्र, राजा के पद के योग्य ( सोमम् ) समस्त राज्यैश्वर्य को (दुहे) पूर्ण करती है ।
टिप्पणी
अतो द्वादश आप्रियः ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विदर्भिऋषिः । अश्विनौ सरस्वती इन्द्रश्च देवताः । अनुष्टुप् । गान्धारः ॥
विषय
आदर्श गृह
पदार्थ
१. हे (अश्विनौ) = गुणों व कर्मों में व्याप्त होनेवाले स्त्री-पुरुषो! घर को अच्छा बनाने के लिए इस बात का ध्यान करो कि २. (अग्निः समिद्ध:) = आपके घर में अग्नि में समिधा डाली गई हैं और अग्निहोत्र सम्यक्तया सम्पादित हुआ है। अग्निहोत्र घर में सब व्यक्तियों को सौमनस्य देनेवाला होता है। ३. दूसरी ध्यान देने योग्य बात यह है कि (तप्तः)[तप्तं अस्यास्तीति] = घर में सब व्यक्ति तपस्वी हों। जीवन में तप मनुष्य का पतन नहीं होने देता। ४. तप के परिणामस्वरूप (घर्मः) = सब गृहसभ्यों में प्राणों की उष्णता हो [ घर्म-गर्म] तपस्या से यह प्राणों की उष्णता भी बनी रहती है । ५. (विराट्) = प्रत्येक व्यक्ति प्राणों की उष्णता को स्थिर रखता हुआ ज्ञान की ज्योति से चमकनेवाला हो। ६. (सुतः) = [सुतं अस्यास्तीति ] यह उत्पादनवाला-अर्थात् यह सदा निर्माण के कार्यों में लगनेवाला हो। ७. (धेनुः दुहे) - प्रत्येक गृहपति यह कह सके कि मेरे घर में गौ दुही जाती है या दूध देने से गौ सबका पूरण करती है। ८. गौ ही नहीं, सरस्वती दुहे यहाँ ज्ञान की अधिदेवता भी सबका पूरण करती है, अर्थात् इस घर में सब ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं और ९. इसी का परिणाम है कि (इह) = इस घर में (सोमम्) = सौम्यता- विनीतता व शान्ति है, (शुक्रम्) = वीर्यशक्ति है और (इन्द्रियम्) = प्रत्येक इन्द्रिय का बल अथवा धन है।
भावार्थ
भावार्थ- आदर्श घर में पति-पत्नी सदा कर्मव्यापृत रहते हैं, घर में अग्निहोत्र होता है, तपस्या, प्राणशक्ति, ज्ञानदीप्ति व निर्माणात्मक कार्य वहाँ विद्यमान होते हैं। गौवों और ज्ञान का दोहन होता है। अन्त में सौम्यता के साथ वहाँ वीरता होती है तथा सब इन्द्रियाँ ठीक स्थिति में होती हैं।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. या जगात समान गुण, कर्म, स्वभावाच्या स्री-पुरुषांनी सूर्याप्रमाणे प्रकाशमान व्हावे व पुरुषार्थी व धर्मयुक्त बनून ऐश्वर्य मिळवावे.
विषय
आता स्त्री-पुरूषांविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - ज्या प्रमाणे (इह) या जगात (धेनुः) गाय दूध देते, त्याप्रमाणे (सरस्वती) शास्त्र आणि विज्ञानयुक्त वाणी (सुसंस्कृत व मधुर भाषणाची सवय) (माणसाला) (शुद्ध) शुद्ध (सोमम्) एश्वर्य आणि (इन्द्रियम्) धनाने परिपूर्ण करते (मधुर भाषणाने) मनुष्यास ऐश्वर्यप्राप्ती होते) मी (एक उपासक वा गृहस्थ पुरूष) देखील तसे मधुर भाषण करून संपत्ती मिळवावी तसेच हे (अश्विमा) शुभगुणवान गृहस्थ स्त्री-पुरुषहो, (तप्तः) प्रज्वलित आणि (विराट्) विविध प्रकारे प्रकाश (वा लाभ) देणाऱ्या (सुतः) प्रेरणादायी (समिद्धः) (धर्मः) प्रदीप्त यज्ञाद्वारे (अग्निः) अग्नी साऱ्या जगाची रक्षा करतो, तद्वत तुम्हीदेखील (यथाशक्य) जगाची (सर्व प्राणिमात्राची) रक्षा करा. ॥55॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. या जगात समान गुण, कर्म आणि स्वभाव असलेल्या स्त्री-पुरुषांनी सूर्याप्रमाणे आपल्या कीर्तीद्वारे देदीप्यमान असावे आणि पुरूषार्थ करीत धर्ममय उपायाने ऐश्वर्याचा संचय करावा. ॥55॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Just as in this world, vedic text, like the milch-cow, multiplies our pure glory and wealth, so should I perfect it. O men and women just as heated, radiant, impelled, burning, unified fire protects the world, so should I protect it.
Meaning
Agni, lighted, heated, burning and blazing as universal and sovereign light of the world, inspired with vitality, creates food and energy for the Lord’s creation. Sarasvati, voice of universal knowledge, holds the pure nectar of the wealth and grandeur of the spirit of life and, like a cow, yields it for the nourishment and benefit of men and women of the world. So must I create light and vitality. So should all men and women do like the Ashvinis, powers of health and nourishment.
Translation
O twin healers, the fire has been made blazing; the cauldron is heated; the sparkling cure-juice has been pressed out; and the divine Doctress, like a milchcow, has poured here bright and invigorating curejuice. (1)
Notes
This and the next eleven verses form an Aprī, a propi tiatory hymn in praise of the Aśvins and Sarasvati. The Asvins, as divine physicians, attend on Indra as a matter of course, but how does Sarasvati come in, unless she be thought as divine Doctress? According to the Satapatha Sarasvati here is vāk, speech, the healing word. Samiddhaḥ agniḥ, the fire has been made blazing. Gharmaḥ, प्रवर्ग्य:, cauldron. Virät, sparkling Soma juice. Dhenuh Sarasvati, Sarasvati, the divine Doctress like a milch-cow. Indriyam, वीर्यं बलं, giving manly vigour; strength-giving.
बंगाली (1)
विषय
অথ স্ত্রীপুরুষয়োর্বিষয়মাহ ॥
এখন স্ত্রী-পুরুষের বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- যেমন (ইহ) এই সংসারে (ধেনুঃ) দুগ্ধদাত্রী গাভির সমান (সরস্বতী) শাস্ত্র বিজ্ঞানযুক্ত বাণী (শুক্রম্) শুদ্ধ (সোমম্) ঐশ্বর্য্য ও (ইন্দ্রিয়ম্) ধনকে পরিপূর্ণ করে সেইরূপ তাহাকে আমি (দুহে) পরিপূর্ণ করি । হে (অশ্বিনা) শুভগুণে ব্যাপ্ত স্ত্রী-পুরুষ ! (তপ্তঃ) তাপিত (বিরাট্) এবং বিবিধ প্রকারে প্রকাশমান (সুতঃ) প্রেরণা প্রাপ্ত (সমিদ্ধঃ) প্রদীপ্ত (ধর্মঃ) যজ্ঞের সমান সঙ্গতিযুক্ত (অগ্নিঃ) পাবক জগতের রক্ষা করে সেইরূপ আমি এই সব জগতের রক্ষা করি ॥ ৫৫ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । এই সংসারে তুল্য গুণ-কর্ম স্বভাব বিশিষ্ট স্ত্রী-পুরুষ সূর্য্যের সমান কীর্ত্তি দ্বারা প্রকাশমান পুরুষার্থী হইয়া ধর্মপূর্বক ঐশ্বর্য্যকে সর্বদা সঞ্চিত করিবে ॥ ৫৫ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
সমি॑দ্ধোऽঅ॒গ্নির॑শ্বিনা ত॒প্তো ঘ॒র্মো বি॒রাট্ সু॒তঃ ।
দু॒হে ধে॒নুঃ সর॑স্বতী॒ সোম॑ꣳ শু॒ক্রমি॒হেন্দ্রি॒য়ম্ ॥ ৫৫ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
সমিদ্ধো অগ্নিরিত্যস্য বিদর্ভির্ঋষিঃ । অশ্বিসরস্বতীন্দ্রা দেবতাঃ । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ । গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal