यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 37
ऋषिः - आङ्गिरस ऋषिः
देवता - तनूनपाद्देवता देवता
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
621
नरा॒शꣳसः॒ प्रति॒ शूरो॒ मिमा॑न॒स्तनू॒नपा॒त् प्रति॑ य॒ज्ञस्य॒ धाम॑। गोभि॑र्व॒पावा॒न् मधु॑ना सम॒ञ्जन् हिर॑ण्यैश्च॒न्द्री य॑जति॒ प्रचे॑ताः॥३७॥
स्वर सहित पद पाठनरा॒शꣳसः॑। प्रति॑। शूरः॑। मिमा॑नः। तनू॒नपा॒दिति॒ तनू॒ऽनपा॑त्। प्रति॑। य॒ज्ञस्य॑। धाम॑। गोभिः॑। व॒पावा॒निति॑ व॒पाऽवा॑न्। मधु॑ना। स॒म॒ञ्जन्निति॑ सम्ऽअ॒ञ्जन्। हिर॑ण्यैः। च॒न्द्री। य॒ज॒ति॒। प्रचे॑ता॒ इति॒ प्रऽचे॑ताः ॥३७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नराशँसः प्रति शूरो मिमानस्तनूनपात्प्रति यज्ञस्य धाम । गोभिर्वपावान्मधुना समञ्जन्हिरण्यैश्चन्द्री यजति प्रचेताः ॥
स्वर रहित पद पाठ
नराशꣳसः। प्रति। शूरः। मिमानः। तनूनपादिति तनूऽनपात्। प्रति। यज्ञस्य। धाम। गोभिः। वपावानिति वपाऽवान्। मधुना। समञ्जन्निति सम्ऽअञ्जन्। हिरण्यैः। चन्द्री। यजति। प्रचेता इति प्रऽचेताः॥३७॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ प्रकारान्तरेण विद्वद्विषयमाह॥
अन्वयः
हे मनुष्याः! यो नराशंसो यज्ञस्य धाम प्रति मिमानः शूरस्तनूनपाद् गोभिर्वपावान् मधुना समञ्जन् हिरण्यैश्चन्द्री प्रचेताः प्रति यजति, सोऽस्माभिराश्रयितव्यः॥३७॥
पदार्थः
(नराशंसः) यो नरैराशस्यते स्तूयते सः (प्रति) व्याप्तौ (शूरः) सर्वतो निर्भयः (मिमानः) योऽनेकानुत्तमान् पदार्थान् मिमीते (तनूनपात्) यस्तनूं न पातयति (प्रति) (यज्ञस्य) सत्यव्यवहारस्य (धाम) (गोभिः) धेनुवृषभैः (वपावान्) वपन्ति यया क्रियया सा वपा सा प्रशस्ता विद्यते यस्य सः (मधुना) मधुरगुणेन रसेन (समञ्जन्) व्यक्तीकुर्वन् (हिरण्यैः) सुवर्णादिभिः (चन्द्री) चन्द्रं बहुसुवर्णं विद्यते यस्य सः (यजति) (प्रचेताः) प्रकृष्टं चेतः प्रज्ञा यस्य सः॥३७॥
भावार्थः
मनुष्यैः कश्चिन्निन्दितो भीरुः स्वशरीरनाशक उद्यमहीनोऽलसो मूढो दरिद्रश्च नैव संगन्तव्यः॥३७॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर प्रकारान्तर से विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो! (नराशंसः) जो मनुष्यों से प्रशंसा किया जाता (यज्ञस्य) सत्य व्यवहार के (धाम) स्थान का और (प्रति, मिमानः) अनेक उत्तम पदार्थों का निर्माण करनेहारा (शूरः) सब ओर से निर्भय (तनूनपात्) जो शरीर का पात न करनेहारा (गोभिः) गाय और बैलों से (वपावान्) जिससे क्षेत्र बोये जाते हैं, उस प्रशंसित उत्तम क्रिया से युक्त (मधुना) मधुरादि रस से (समञ्जन्) प्रकट करता हुआ (हिरण्यैः) सुवर्णादि पदार्थों से (चन्द्री) बहुत सुवर्णवान् (प्रचेताः) उत्तम प्रज्ञायुक्त विद्वान् (प्रति, यजति) यज्ञ करता कराता है, सो हमारे आश्रय के योग्य है॥३७॥
भावार्थ
मनुष्यों को योग्य है कि किसी निन्दित, भीरु, अपने शरीर के नाश करनेहारे, उद्यमहीन, आलसी, मूढ़ और दरिद्री का संग कभी न करें॥३७॥
विषय
नराशंस, तनूनपात् पद, उसके कर्त्तव्य।
भावार्थ
( नराशंसः) आश्रित जनों से स्तुति के योग्य, (शूरः) शूरवीर, निर्भय, (प्रति मिमानः) राष्ट्र के प्रत्येक कार्य को स्वयं जानता और करता हुआ ( तनूनपात् ) अग्नि के समान, तेजस्वी, जाठर अग्नि जैसे शरीर को नहीं गिरने देता वैसे ही राष्ट्र का पतन न होने देने वाला और शरीर को प्राणवत् राष्ट्र का रक्षक होकर ( यज्ञस्य ) राज्य रूप यज्ञ या प्रजापति, राजा के ( धाम ) धारण सामर्थ्य और प्रताप को (प्रति) बनाये रक्खे। वह ( गोभिः ) गवादि पशुओं से ( बपावान् ) लक्ष्मीवान् एवं ( गोभिः: वपावान् ) भूमियों से कृषि - सम्पत्तिमान् और शास्त्र-वाणियों से बुद्धिमान्होकर (मधुना ) स्वयं मधु, ज्ञान, अन्न और बल से ( समञ्जन् ) अच्छी प्रकार प्रकाशित होता हुआ, ( हिरण्येः ) सुवर्ण आदि रमणीय और हितकारी पदार्थों से (चन्द्री) प्रजा का आनन्दकारी, ऐश्वर्यवान् और ( प्रचेताः ) उत्कृष्ट ज्ञानवान् होकर ( यजति ) यज्ञ करता, दान देता, राष्ट्र को व्यवस्थित करता है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
इन्द्रस्तनूनपाद् देवता । त्रिष्टुप् । धैवतः ||
विषय
यज्ञ का धाम
पदार्थ
१. गतमन्त्र का आङ्गिरस चारों मोक्ष द्वारों को खोलनेवाला नराशंसः - ( नरै: आ=समन्तात् शंस्यते) सर्वत्र मनुष्यों से प्रशंसित होता है। यह २ प्रति - शूर:- प्रत्येक वासना व शत्रु से मुकाबला करनेवाला वीर होता है। ३. प्रतिमिमानः = कार्य को माप-तोलकर करनेवाला होता है और ४. इसीलिए तनू-न-पात् शरीर को वह गिरने नहीं देता, शरीर को पूर्ण स्वस्थ बनाये रखता है । ५. यज्ञस्य धाम - (यज्ञो वै विष्णुः) सृष्टियज्ञ को करनेवाले सर्वव्यापक 'यज्ञ' नामक प्रभु का यह घर ( निवासस्थान) बनता है । ६. जब यह अपने हृदय में प्रभु को बिठा लेता है तब गोभिः = उस हृदयस्थ प्रभु से उच्चारण की गई वेदवाणियों के द्वारा यह वपावान्- (वप् - बोना) प्रशस्त गुणों के बीजों को बोनेवाला होता है। अपने अन्दर उत्तम गुणों का विकास करता है। ७. मधुना समञ्जन् = माधुर्य से अपने जीवन को अलंकृत करता है। इसका व्यवहार व वाणी अत्यन्त मधुर होते हैं। अन्दर गुण हों तो वाणी व व्यवहार में माधुर्य होना ही चाहिए। ८. हिरण्यै:- (हितरमणीयैः) हितरमणीय ज्ञानों के द्वारा, वीर्य के द्वारा शक्तियुक्त होने के कारण चन्द्री - यह सदा आह्लाद - प्रसन्नता की वृत्तिवाला होता है। ९. यजति यज्ञशील होता है- (क) बड़ों का आदर करता है, (ख) बराबरवालों से मिलकर चलता है तथा (ग) देने की शक्तिवाला होता है। १०. प्रचेताः - यह प्रकृष्ट चेतनावाला—उत्कृष्ट ज्ञानी बनता है। जीवन को बड़ी समझदारी से उन्नति - पथ पर ले चलता है, कभी असावधान नहीं होता।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु को अपने में धारण करनेवाले बनें, उसकी ज्ञानवाणियों से जीवन में सद्गुणों के बीज बोएँ। माधुर्यवाले हों। सदा आह्लादमय, यज्ञशील व प्रचेता बनें।
मराठी (2)
भावार्थ
माणसांनी निंदित, भीरू व शरीराचा नाश करणारे उद्योगहीन, आळशी, मूढ व दरिद्री यांची संगत कधी धरता कामा नये.
विषय
आता थोड्या वेगळ्या पद्धतीने विद्वानांविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे मनुष्यानो, (जो मनुष्य यज्ञ करतो, तो) (नराशंसः) सर्व लोकांकडून प्रशंसित होतो, तो (यज्ञस्य) सत्य व्यवहाराच्या (धाम) स्थानी (तो सत्याचारी असून) (प्रति, मिमानः) अनेक उत्तम पदार्थांचे निर्माण करतो, तो (शूरः) सर्वथा निर्भय (तनूनपात्) राहून शरीराचा क्षय वा हानी होऊ देत नाही. (गोभिः) गायी आणि बैलांद्वारे (वपावान्) उत्तमप्रकारे (दुग्धोत्पादन) आणि शेतामधे बी पेरणी करतो. अशाप्रकारे (मधुना) मधुर आदी रस उत्पन्न करून (तो याज्ञिक मनुष्य) (हिरण्यैः) सुवर्ण आदी पदार्थाने (चन्द्री) अति सुवर्णवान वा संपत्तिशाली तसेच (प्रचेताः) उत्तम प्रज्ञायुक्त विद्वान (प्रति, यजति) स्वतः यज्ञ करतो आणि इतरांनाही करायला प्रवृत्त करतो. अशा याज्ञिक मनुष्याच्या आम्ही आश्रयास जायला हवे. ॥37॥
भावार्थ
भावार्थ - मनुष्यांनी हे लक्षात ठेवावे की कोणा निंदनीय, भीरू, स्वशरीरनाशक, निरूद्योगी, आळशी, मुढ आणि दरिद्री (घृणित) व्यक्तीचा संग कदपि करू नये. ॥37॥
इंग्लिश (3)
Meaning
He, who is praised by the public, is the discoverer of different objects, is the master of just behaviour, is fearless, maintains the vitality of his body, is engaged in agriculture with oxen, is full of knowledge, is wealthy with gold, is extremely wise, and performs yajna, is fit for us to seek shelter under.
Meaning
Universally admirable is the man who is brave and totally fearless, maker of many things, self- dependent and self-protective, wholly dedicated to yajna, farming the land with bulls and cows, well- provided with milk, butter and honey, bright with golden wealth, and highly enlightened, and begins his day with yajna.
Translation
Praised by men, brave against brave, measuring every place of sacrifice, always careful to keep his body perfectly fit, having plenty of cow-butter, possessing honey and gold, wise, he, the aspirant, performs sacrifice with cattle and gold. (1)
Notes
Narāśamsaḥ, नरै: शस्यते शस्त्रै: स्तूयते य: स:, who is praised by men with praise songs. Mimānah, मिमीते, प्रतिगणयन्, knowing or recognizing, or measuring. Prati śūraḥ, brave against brave. Tanūnapāt, तनूं शरीरं न पातयति रक्षति यः सः, he who keeps his body always fit. Vapāvān, having plenty of butter or fat. Candrī, one who possesses gold. Hiranyaiḥ, with goldpieces.
बंगाली (1)
विषय
অথ প্রকারান্তরেণ বিদ্বদ্বিষয়মাহ ॥
পুনঃ প্রকারান্তরে বিদ্বানদিগের বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! (নরাশংসঃ) যাহাকে মনুষ্যগণ প্রশংসা করে (য়জ্ঞস্য) সত্য ব্যবহারের (ধাম) স্থানের এবং (প্রতি মিমানঃ) অনেক উত্তম পদার্থের নির্মাণকারী (শূরঃ) সব দিক দিয়া নির্ভয় (তনৃনপাৎ) যে শরীর পাত না করে (গোভিঃ) গাভি ও বলদ দ্বারা (বপাবান্) যদ্দ্বারা ক্ষেত্রে বীজ বপন করা হয়, সেই প্রশংসিত উত্তম ক্রিয়াযুক্ত (মধুনা) মধুরাদি রস দ্বারা (সমঞ্জন্) প্রকট করিয়া (হিরণ্যৈঃ) সুবর্ণাদি পদার্থ দ্বারা (চন্দ্রী) বহু সুবর্ণবান্ (প্রচেতাঃ) উত্তম প্রজ্ঞাযুক্ত বিদ্বান্ (প্রতি, য়জতি) যজ্ঞ করে করায় সে আমাদের আশ্রয়ের যোগ্য ॥ ৩৭ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- মনুষ্যদিগের উচিত যে, কোন নিন্দিত, ভীরু, নিজ শরীরের নাশকারী, উদ্যমহীন, আলসী, মূঢ় ও দরিদ্রের সঙ্গ কদাপি করিবে না ॥ ৩৭ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
নরা॒শꣳসঃ॒ প্রতি॒ শূরো॒ মিমা॑ন॒স্তনূ॒নপা॒ৎ প্রতি॑ য়॒জ্ঞস্য॒ ধাম॑ ।
গোভি॑র্ব॒পাবা॒ন্ মধু॑না সম॒ঞ্জন্ হির॑ণ্যৈশ্চ॒ন্দ্রী য়॑জতি॒ প্রচে॑তাঃ ॥ ৩৭ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
নরাশংস ইত্যস্যাঙ্গিরস ঋষিঃ । তনূনপাদ্দেবতা । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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