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यजुर्वेद अध्याय - 20

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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 8
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - सभापतिर्देवता छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    115

    पृ॒ष्ठीर्मे॑ रा॒ष्ट्रमु॒दर॒मꣳसौ॑ ग्री॒वाश्च॒ श्रोणी॑। ऊ॒रूऽअ॑र॒त्नी जानु॑नी॒ विशो॒ मेऽङ्गा॑नि स॒र्वतः॑॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पृ॒ष्ठीः। मे॒। रा॒ष्ट्रम्। उ॒दर॑म्। अꣳसौ॑। ग्री॒वाः। च॒। श्रोणी॒ऽइति॒ श्रोणी॑। ऊ॒रूऽइत्यू॒रू। अ॒र॒त्नी। जानु॑नी॒ऽइति॒ जानु॑नी। विशः॑। मे॒। अङ्गा॑नि। स॒र्वतः॑ ॥८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पृष्टीर्मे राष्ट्रमुदरमँसौ ग्रीवाश्च श्रोणी । ऊरूऽअरत्नी जानुनी विशो मेङ्गानि सर्वतः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पृष्ठीः। मे। राष्ट्रम्। उदरम्। अꣳसौ। ग्रीवाः। च। श्रोणीऽइति श्रोणी। ऊरूऽइत्यूरू। अरत्नी। जानुनीऽइति जानुनी। विशः। मे। अङ्गानि। सर्वतः॥८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 8
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! मे मम पृष्ठी राष्ट्रमुदरमंसौ ग्रीवाः श्रोणी ऊरू अरत्नी जानुनी सर्वतोऽन्यानि चाङ्गानि मे विशः सन्ति॥८॥

    पदार्थः

    (पृष्ठीः) पृष्ठदेशः पश्चाद्भागः। अत्र सुपां सुलुग्॰ [अष्टा॰७.१.३९] इति सोः स्थाने सुः (मे) (राष्ट्रम्) राजमानं राज्यम् (उदरम्) (अंसौ) बाहुमूले (ग्रीवाः) कण्ठप्रदेशाः (च) (श्रोणी) कटिप्रदेशौ (ऊरू) सक्थिनी (अरत्नी) भुजमध्यप्रदेशौ (जानुनी) ऊरूजङ्घयोर्मध्यभागौ (विशः) प्रजाः (मे) (अङ्गानि) अवयवाः (सर्वतः) सर्वाभ्यो दिग्भ्यस्सर्वेभ्यो देशेभ्यो वा॥८॥

    भावार्थः

    यः स्वदेहाङ्गवत् प्रजाः जानीयात्, स एव राजा सर्वदा वर्द्धते॥८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! (मे) मेरा (राष्ट्रम्) राज्य (पृष्ठीः) पीठ (उदरम्) पेट (अंसौ) स्कन्ध (ग्रीवाः) कण्ठप्रदेश (श्रोणी) कटिप्रदेश (ऊरू) जंघा (अरत्नी) भुजाओं का मध्यप्रदेश और (जानुनी) गोड़ का मध्यप्रदेश तथा (सर्वतः) सब ओर से (च) और (अङ्गानि) अङ्ग (मे) मेरे (विशः) प्रजाजन हैं॥८॥

    भावार्थ

    जो अपने अङ्गों के तुल्य प्रजा को जाने, वही राजा सर्वदा बढ़ता रहता है॥८॥

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    विषय

    पदाधिकारों और अध्यात्म शक्तियों की तुलना ।

    भावार्थ

    (राष्ट्रं मे पृष्टीः) राष्ट्र, जनपद मेरी पसुलियां हैं । (विशः) प्रजाएं (उदरम् ) पेट, (अंसौ) दोनों कन्धे, (ग्रीवाः च) गर्दन के मोहरे, (श्रोणी) कटि. (ऊरू) जांघ, (अरत्नी) हाथ के भाग, (जानुनी) गोड़े (सर्वतः) ये सब (मे अङ्गानि ) मेरे अंग हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रजापतिः । सभापतिः । निचृद् अनुष्टुप् । गांधारः ॥

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    विषय

    प्रजारूपी अङ्ग

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के व्रतों के अनुसार अपने जीवन का सुन्दर परिपाक करके राष्ट्र के प्रति राष्ट्र-रक्षणयज्ञ में अपनी आहुति देता हुआ राजा कहता है कि (राष्ट्रम्) = राष्ट्र ही (मे पृष्ठी) = मेरा पृष्ठदेश- पश्चाद्भाग है। जैसे शरीर की मूल आधारभूत यह रीढ़ की हड्डी है, उसी प्रकार मैं अपने जीवन में राष्ट्र को ही रीढ़ की हड्डी समझता हूँ। उसके स्वास्थ्य पर ही मेरा स्वास्थ्य निर्भर करता है। २. (विशः) = ये प्रजाएँ सर्वतः जो चारों ओर सब भागों से एकत्र हुई हैं, वे (मे) = मेरे (अङ्गानि) = अङ्गों के तुल्य हैं। (उदरम्) = वैश्यवर्ग उदर के समान है। असौ सैनिकवर्ग मेरे कन्धों के समान है। (ग्रीवा:) = ब्राह्मण लोग गर्दन व कण्ठ के समान हैं। (श्रोणी) = रक्षकवर्ग कटिदेशों के तुल्य हैं। (ऊरू) = श्रमिकवर्ग जंघाओं के समान हैं। (अरत्नी) = शासन में भाग लेनेवाला सारा सैक्रेटेरियेट भुज - मध्यप्रदेशों के समान है तथा (जानुनी) = मन्त्रिमण्डल का अधीनस्थ कर्मचारीवर्ग घुटनों के तुल्य है। इन सब लोगों को मैं अपने अङ्गों के समान ही समझता हूँ। जिस प्रकार मुझे अपने अङ्ग प्रिय हैं, उसी प्रकार ये सारा प्रजावर्ग मुझे प्रिय है। इसकी पुष्टि में ही मैं अपनी पुष्टि समझता हूँ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रजा राष्ट्र- शरीर के विविध अङ्ग हैं। राष्ट्र स्वयं इस शरीर की रीढ़ की हड्डी है। राजा प्रजा को अपने शरीर के अङ्गों के समान समझता है।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जो राजा प्रजेला स्वतःच्या शरीरावयवाप्रमाणे मानतो त्याच राजाची सदैव उन्नती होते.

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    विषय

    पुन्हा तोच विषय -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (राष्ट्रपती म्हणतात) हे मनुष्यानो, (हे प्रजाजनहों, तुम्ही विश्वास ठेवा की (मे) माझे (राष्ट्र) हे राज्य (तुमचे आहे. माझे अंग, अंग तुम्हीच आहात) माझी (पृष्ठी) पाठ (उदरम्‌) पोट (अंसौ) दोन्ही खांदे (ग्रीवाः) कंठप्रदेश (श्रोणीः) कटिप्रदेश (उरू) जंघा (अरत्नी) भुजाचा मध्यप्रदेश (खांद्यापासून ते मनगटापर्यंतचा भाग आणि (जानुनी) घोटा व गुडघा-प्रदेश (सर्वतः) एवढेच नव्हे तर सर्व शरीर सर्व दृष्टीने (तुमचे वा तुमच्या सेवेसाठी आहेत) (च) आणि माझे (अङ्गानि) सर्व अवयव (मे) माझे (विशः) प्रजाजनच आहे (अशी मी तुम्हांस ग्वाही देतो. मला माझे प्रजाजन स्वतःच्या प्राणाहून अधिक प्रिय आहेत) ॥8॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जो राजा प्रजेला आपल्या शरीरातील अवयवांप्रमाणे प्रिय मानतो, तोच सदा पुढे पुढे प्रगती करीत जातो ॥8॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    My government is my back, my belly, shoulders, neck, hips, thighs, elbows, knees, and all other members of the body are my subjects.

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    Meaning

    The government order is my back. My belly, shoulders, neck, hips and loins, thighs, elbows, knees, and all my limbs are wholly for the people — my people and my government are me.

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    Translation

    Good government is, as if, my ribs; and the people are my belly, my two shoulders, my neck, my hips, my thighs, my elbows, my knees and all my limbs. (1)

    Notes

    Prstih, ribs. Or, back. Rastram, good government. Aratni, elbows. Visaḥ, T:, the people.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! (মে) আমার (রাষ্ট্রম্) রাজ্য (পৃষ্ঠীঃ) পিঠ (উদরম্) উদর (অংসৌ) স্কন্ধ (গ্রীবাঃ) গ্রীবা (শ্রোণীঃ) কটিপ্রদেশ (ঊরূ) ঊরু (অরত্নী) ভুজগুলির মধ্য প্রদেশ এবং (জানুনী) জানুর মধ্যপ্রদেশ তথা (সর্বতঃ) সকল দিক দিয়া (চ) এবং (অঙ্গানি) অঙ্গগুলি (মে) আমার (বিশঃ) প্রজাগণ ॥ ৮ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যিনি নিজ অঙ্গ সদৃশ প্রজাকে জানিবেন সেই রাজাই সর্বদা উন্নতি করিতে থাকে ॥ ৮ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    পৃ॒ষ্ঠীর্মে॑ রা॒ষ্ট্রমু॒দর॒মꣳসৌ॑ গ্রী॒বাশ্চ॒ শ্রোণী॑ ।
    ঊ॒রূऽঅ॑র॒ত্নী জানু॑নী॒ বিশো॒ মেऽঙ্গা॑নি স॒র্বতঃ॑ ॥ ৮ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    পৃষ্ঠীরিত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । সভাপতির্দেবতা । নিচৃদনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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