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यजुर्वेद अध्याय - 20

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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 46
    ऋषिः - आङ्गिरस ऋषिः देवता - स्वाहाकृतयो देवताः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    57

    स्तो॒काना॒मिन्दुं॒ प्रति॒ शूर॒ऽइन्द्रो॑ वृषा॒यमा॑णो वृष॒भस्तु॑रा॒षाट्। घृ॒त॒प्रुषा॒ मन॑सा॒ मोद॑मानाः॒ स्वाहा॑ दे॒वाऽअ॒मृता॑ मादयन्ताम्॥४६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्तो॒काना॑म्। इन्दु॑म्। प्रति॑। शूरः॑। इन्द्रः॑। वृ॒षा॒यमा॑णः। वृष॒यमा॑ण॒ इति॑ वृष॒यऽमा॑णः। वृ॒ष॒भः। तु॒रा॒षाट्। घृ॒त॒प्रुषेति॑ घृत॒ऽप्रुषा॑। मन॑सा। मोद॑मानाः। स्वाहा॑। दे॒वाः। अ॒मृताः॑। मा॒द॒य॒न्ता॒म् ॥४६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्तोकानामिन्दुम्प्रति शूरऽइन्द्रो वृषायमाणो वृषभस्तुराषाट् । घृतप्रुषा मनसा मोदमानाः स्वाहा देवाऽअमृता मादयन्ताम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    स्तोकानाम्। इन्दुम्। प्रति। शूरः। इन्द्रः। वृषायमाणः। वृषयमाण इति वृषयऽमाणः। वृषभः। तुराषाट्। घृतप्रुषेति घृतऽप्रुषा। मनसा। मोदमानाः। स्वाहा। देवाः। अमृताः। मादयन्ताम्॥४६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 46
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    यथा वृषायमाणो वृषभस्तुराषाट् शूर इन्द्र स्तोकानामिन्दुं प्रत्याऽऽनन्दति तथा घृतप्रुषा मनसा स्वाहा च मोदमाना अमृता देवा मादयन्ताम्॥४६॥

    पदार्थः

    (स्तोकानाम्) अल्पानाम् (इन्दुम्) आर्द्रस्वभाविनं जनम् (प्रति) (शूरः) शत्रूणां हिंसकः (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् (वृषायमाणः) बलिष्ठः सन् (वृषभः) उत्तमः (तुराषाट्) तुरान् हिंसकान् सहते (घृतप्रुषा) प्रकाशसेविना (मनसा) विज्ञानेन (मोदमानाः) आनन्दिताः सन्तः (स्वाहा) सत्यया क्रियया (देवाः) विद्वांसः (अमृताः) आत्मना स्वस्वरूपेण मृत्युरहिताः (मादयन्ताम्) तृप्ता भूत्वाऽस्मानानन्दयन्तु॥४६॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये जना अल्पगुणमपि जनं दृष्ट्वार्द्रचित्ता भवन्ति, ते सर्वतः सर्वान् सुखयन्ति॥४६॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    जैसे (वृषायमाणः) बलिष्ठ होता हुआ (वृषभः) उत्तम (तुराषाट्) हिंसक शत्रुओं को सहनेहारा (शूरः) शूरवीर (इन्द्रः) ऐश्वर्य वाला (स्तोकानाम्) थोड़ों के (इन्दुम्) कोमल स्वभाव वाले मनुष्य के (प्रति) प्रति आनन्दित होता है, वैसे (घृतप्रुषा) प्रकाश के सेवन करने वाले (मनसा) विज्ञान से और (स्वाहा) सत्य क्रिया से (मोदमानाः) आनन्दित होते हुए (अमृताः) आत्मस्वरूप से मृत्युधर्मरहित (देवाः) विद्वान् लोग (मादयन्ताम्) आप तृप्त होकर हम को आनन्दित करें॥४६॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य अल्पगुण वाले भी मनुष्य को देखकर स्नेहयुक्त होते हैं, वे सब ओर से सब को सुखी कर देते हैं॥४६॥

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    विषय

    इन्द्र, सेनापति पद के योग्य पुरुष का लक्षण ।

    भावार्थ

    ( स्तोकानाम् ) अल्प शक्ति वाले पुरुषों में से जो (वृषभः) महान् ( तुराषाट् ) दुष्ट पुरुषों को पराजित करने हारा, (वृषायमाणः) प्रजाओं पर मेघ के समान सुखवर्षक (शूरः) शूरवीर है, वह (इन्द्रः) इन्द्र पद के योग्य है । उस (इन्द्रम् प्रति) ऐश्वर्यवान्, दयाई राजा के ( प्रति) प्रति (घृतप्रषा) स्नेह और तेज को सेचन करने वाले (मनसा) मन से (मोदमानाः) अति प्रसन्न (अमृता : देवा:) जीवित, अधिकारी राजपुरुष (स्वाहा ) उत्तम यश व वचनों द्वारा ( मोदयन्ताम् ) हर्ष अनुभव करें और प्रजा को सुखी करें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    स्वाहाकृतयो देवताः । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे न्यून गुण असणाऱ्या माणसांवर ही स्नेह करतात ती सर्व तऱ्हेने सर्वांना सुखी करतात.

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    विषय

    पुनश्च, तोच विषय -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - ज्याप्रमाणे (वृषायमाणः) बलिष्ठ असलेला (वृषभः) उत्तम (स्वभावाचा) आणि (तुराषाट्) हिंसक शत्रूंना ठार मारणारा कोणी (शूरः) शूरवीर मनुष्य (स्तोकानाम्‌) अल्पशक्ती असलेल्या निर्बळ (इन्दुम्‌) कोमल स्वभावाच्या माणसाला (प्रति) पाहून आनंदित होतो (कारण तो बलवान मनुष्य निर्बळांचे रक्षण करणारा असतो. आता मी आलो असल्यामुळे या दीनाला घाबरण्याची गरज नाही, असा विचार करतो) तसेच ज्याप्रमाणे (घृतप्रुषा) प्रकाश वा कीर्तीची इच्छा करणारे लोक आपल्या (मनसा) विज्ञानाद्वारे आणि (स्वाहा) व्यावहारिक ज्ञानाद्वारे (मोदमानाः) आनंदित होतात आणि ते (देवाः) विद्वान लोक (अमृताः) आत्मस्वरूपास ओळखून (मी अमर आहे, हे जाणून) (मादयन्ताम्‌) स्वतः तृप्त होतात, तसे त्यांनी इतर लोकांनादेखील (आत्म्याचे अमरत्व जाणून देऊन) तृप्त केले पाहिजे. ॥46॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. जी माणसें अल्पगुणी व्यक्तीला पाहून त्याच्याविषयी प्रेमळ होतात, ते स्वतः सुखी होऊन सर्वांना सुखी करतात. ॥46॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Just as a strong, exalted, heroic person, overpowers the violent foe, but is pleased with an upright, straight-forward man with little merit, so with brilliant knowledge, and truthful deeds, let the immortal sages, full of joy and contentment contribute to our happiness.

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    Meaning

    May the brave, generous and exalted hero, Indra, conqueror of the violent, and the brilliant realized souls among humanity, rejoicing at heart by the sacred acts of their holy sacrifice into the fire and gifts of love and kindness, drink of the nectar sweets of soma in yajnic life and live the ecstasy of their immortal being on earth.

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    Translation

    May the resplendent Lord, killer of the enemies of the weak and the meek, showerer of happiness, swift conqueror, behaving like a bull, as well as the enlightened ones, free from fear of death, rejoice and be merry with the offerings of butter. (1)

    Notes

    Turāṣāt, killer of the enemies of the weak and the meek. Also, swift conqueror. Vrsāyamānah, वृष इव आचरन्, behaving like a bull. वृषभ: सर्वलोकत्रासकृत्,a bull is a cause of terror for all. Ghrtapruşa, घृतविंदुना, with drops of butter. Svāhā devāḥ, स्वाहाकृतिभि: देवा:, divinities or the enlightened ones (may rejoice) with the offerings.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- যেমন (বৃষায়মাণঃ) বলিষ্ঠ হইয়া (বৃষভঃ) উত্তম (তুরাষাট্) হিংসক শত্রুদিগকে সহ্যকারী (শূরঃ) শূরবীর (ইন্দ্রঃ) ঐশ্বর্য্য সম্পন্ন (স্তোকানাম্) অল্পের (ইন্দুম্) কোমল স্বভাব সম্পন্ন মনুষ্যের (প্রতি) প্রতি আনন্দিত হয় তদ্রূপ (ঘৃতপ্রুষা) প্রকাশের সেবনকারীগণ (মনসা) বিজ্ঞান দ্বারা এবং (স্বাহা) সত্য ক্রিয়া দ্বারা (মোদমানাঃ) আনন্দিত হইয়া (অমৃতাঃ) আত্মস্বরূপ দ্বারা মৃত্যুধর্মরহিত (দেবাঃ) বিদ্বান্ ব্যক্তিগণ (মাদয়ন্তাম্) আপনারা তৃপ্ত হইয়া আমাদেরকে আনন্দিত করুন ॥ ৪৬ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যে সব মনুষ্য অল্পগুণবিশিষ্ট মনুষ্যকে দেখিয়া স্নেহযুক্ত হয়, তাহারা সব দিক দিয়া সকলকে সুখী করিয়া দেয় ॥ ৪৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    স্তো॒কানা॒মিন্দুং॒ প্রতি॒ শূর॒ऽইন্দ্রো॑ বৃষা॒য়মা॑ণো বৃষ॒ভস্তু॑রা॒ষাট্ ।
    ঘৃ॒ত॒প্রুষা॒ মন॑সা॒ মোদ॑মানাঃ॒ স্বাহা॑ দে॒বাऽঅ॒মৃতা॑ মাদয়ন্তাম্ ॥ ৪৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    স্তোকানামিত্যস্যাঙ্গিরস ঋষিঃ । স্বাহাকৃতয়ো দেবতাঃ । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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