यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 86
ऋषिः - मधुच्छन्दा ऋषिः
देवता - सरस्वती देवता
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
64
म॒होऽअर्णः॒ सर॑स्वती॒ प्र चे॑तयति के॒तुना॑। धियो॒ विश्वा॒ वि रा॑जति॥८६॥
स्वर सहित पद पाठम॒हः। अर्णः॑। सर॑स्वती। प्र। चे॒त॒य॒ति॒। के॒तुना॑। धियः॑। विश्वा॑। वि। रा॒ज॒ति॒ ॥८६ ॥
स्वर रहित मन्त्र
महोऽअर्णः सरस्वती प्र चेतयति केतुना । धियो विश्वा विराजति ॥
स्वर रहित पद पाठ
महः। अर्णः। सरस्वती। प्र। चेतयति। केतुना। धियः। विश्वा। वि। राजति॥८६॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे स्त्रियो! यथा सरस्वती केतुना महो अर्णः प्रचत्ोयति, विश्वा धियो विराजति, तथा विद्यासु यूयं प्रवृत्ता भवत॥८६॥
पदार्थः
(महः) महत् (अर्णः) अन्तरिक्षस्थं शब्दसमुद्रम् (सरस्वती) वाणी (प्र, चेतयति) प्रज्ञपयति (केतुना) प्रज्ञानेन (धियः) बुद्धयः (विश्वाः) सर्वाः (वि) (राजति) प्रकाशयति॥८६॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। कन्याभिर्ब्रह्मचर्येण विद्यासुशिक्षेपूर्णे संगृह्य बुद्धयो वद्धर्यितव्याः॥८६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे स्त्री लोगो ! जैसे (सरस्वती) वाणी (केतुना) उत्तम ज्ञान से (महः) बड़े (अर्णः) आकाश में स्थित शब्दरूप समुद्र को (प्रचत्ोयति) उत्तम प्रकार से जतलाती है और (विश्वाः) सब (धियः) बुद्धियों को (वि, राजति) नाना प्रकार से प्रकाशित करती है, वैसे विद्याओं में तुम प्रवृत्त होओ॥८६॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। कन्याओं को चाहिये कि ब्रह्मचर्य्य से विद्या और सुशिक्षा को समग्र ग्रहण करके अपनी बुद्धियों को बढ़ावें॥८६॥
विषय
विद्वत्सभा के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
(सरस्वती) वेदवाणी (केतुना) अपने महान् ज्ञान से (महः अर्णः) बड़े भारी ज्ञान या शब्दसागर को ( प्र चेतयति) प्रकट करती है । और (विश्वाः धियः) समस्त कर्मकाण्डों, कर्मों, कर्त्तव्यों को (वि राजति) प्रकाशित करती है । उसी प्रकार विद्वत्सभा (केतुना) विज्ञान बल से (महः अर्णः) बड़ा ज्ञान प्रकट करती है । राष्ट्र के (विश्वा धियः) समस्त कर्मों या समस्त बुद्धियों, बुद्धिमान् पुरुषों या सामर्थ्यौं को (वि राजति) विविध रूपों में प्रकाशित करती है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गायत्री । षड्जः ॥
विषय
सरस्वान् [महो अर्णः] = महान् समुद्र
पदार्थ
१. यह (सरस्वती) = वेदवाणी (महो अर्णः) = एक महान् जल है। जिस प्रकार समुद्र का अन्त नहीं दिखता, इसी प्रकार यह वेदवाणी भी एक महान् ज्ञान का समुद्र है। इसका भी अन्त नहीं है- 'अनन्ता वै वेदाः', यह उक्ति ठीक ही है। वेदज्ञान का कोई अन्त नहीं, इसीलिए इसको जितना ही मथेंगे उतना ही अधिक ज्ञान का नवनीत प्राप्त करेंगे। ३. यह वेदवाणी (केतुना) = उत्तम ज्ञान से (प्रचेतयति) = हमें प्रकृष्ट चेतनावाला बनाती है। हमारा हृदयान्तरिक्ष इससे दीप्त हो उठता है। हमारे मनों में इस प्रकाश से उत्कृष्ट संकल्प उठते हैं । ३. यह वेदवाणी (विश्वा धियः) = सब बुद्धियों को (विराजति) = [विराजयति] दीप्त करती हैं। यह हमें सब ज्ञानों को देती है। यह सब सत्य विद्याओं का ग्रन्थ है। मनुष्य के लिए आवश्यक सब ज्ञानों का यह प्रतिपादन करती है। सब उपादेय ज्ञान का वह कोश है। इसको प्राप्त करने की प्रबल कामना होनी चाहिए। यही सबसे उत्तम कामना है। इस कामना को करनेवाला ही इस मन्त्र का ऋषि 'मधुच्छन्दा' है। वस्तुतः वेदाध्येता अमधुर इच्छा कर ही नहीं सकता।
भावार्थ
भावार्थ- वेद ज्ञान का महान् समुद्र है। यह प्रकाश से हमें प्रकृष्ट चेतनावाला बना देता है। इसमें सब सत्यविद्याओं का प्रकाश हुआ है।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. मुलींनी ब्रह्मचर्यपूर्वक विद्या व चांगले शिक्षण सम्यक रीतीने ग्रहण करून आपली बुद्धी वाढवावी.
विषय
पुनश्च, तोच विषय -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (गृहस्थ स्त्रीजनहो) ज्याप्रमाणे (सरस्वती) वाणी (केतुना) उत्तम ज्ञानाच्या साहाय्याने (महः) विशाल (अर्णः) आकाशात विद्यमान शब्दरूप सागराचे (प्रचेतयति) उत्तमरीत्या ज्ञान करवितो (ज्ञानाद्वारे वाणी सत्य प्रकट करते वा सृष्टितील पदार्थांचा परिचय करून देते) आणि (विश्वाः) सर्व (धियः) बुद्धी वा विचारांना (रि, राजति) नानाप्रकारे प्रेरित वा प्रकाशित करते, त्याप्रमाणे तुम्हीदेखील सर्व विद्यांमधे पारंगत व्हा (उत्तम वाणी व उत्तम ज्ञान शिका) ॥86॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. सर्व कन्या (युवती व मुली) यांनी ब्रह्मचर्य पालन करीत विद्या आणि उत्तम शिक्षण ग्रहण करीत आपली बुद्धी (विचारशक्ती) वाढवावी ॥86॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Vedic text, with its store of knowledge, illuminates the vast ocean of words, and brightens all pious thoughts.
Meaning
Sarasvati, Divine Intelligence, inspires the cosmic mind with consciousness and vests the universal Word with meaning and self-revelation. It illuminates the mental faculties of the soul with divine light and matures their potential for self-expression.
Translation
This speech divine sets in motion all the energies of the soul and intellect. It enlightens the wisdom of all, who are seekers of truth. (1)
Notes
Maho arṇaḥ, a great flood. Ketuna, कर्मणा प्रज्ञया वा , with actions or with intellect. Dhiyaḥ, thought; thinking.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে নারীগণ ! যেমন (সরস্বতী) বাণী (কেতুনা) উত্তম জ্ঞান দ্বারা (মহঃ) মহৎ (অর্ণঃ) আকাশে স্থিত শব্দরূপ সমুদ্রকে (প্রচেতয়তি) উত্তম প্রকারে জ্ঞান করায় এবং(বিশ্বাঃ) সকল (ধিয়ঃ) বুদ্ধিসমূহকে (বি, রাজতি) নানা প্রকারে প্রকাশিত করে, সেইরূপ বিদ্যাসমূহের মধ্যে তুমি প্রবৃত্ত হও ॥ ৮৬ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । কন্যাদের উচিত যে, ব্রহ্মচর্য্য দ্বারা বিদ্যা ও সুবিদ্যাকে সমগ্র গ্রহণ করিয়া স্বীয় বুদ্ধিকে বৃদ্ধি করাইবে ॥ ৮৬ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
ম॒হোऽঅর্ণঃ॒ সর॑স্বতী॒ প্র চে॑তয়তি কে॒তুনা॑ ।
ধিয়ো॒ বিশ্বা॒ বি রা॑জতি ॥ ৮৬ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
মহো অর্ণ ইত্যস্য মধুচ্ছন্দা ঋষিঃ । সরস্বতী দেবতা । গায়ত্রী ছন্দঃ ।
ষড্জঃ স্বরঃ ॥
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