यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 10
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - सभोशो देवता
छन्दः - स्वराट् शक्वरी
स्वरः - धैवतः
104
प्रति॑ क्ष॒त्रे प्रति॑ तिष्ठामि रा॒ष्ट्रे प्रत्यश्वे॑षु॒ प्रति॑ तिष्ठामि॒ गोषु॑। प्रत्यङ्गे॑षु॒ प्रति॑ तिष्ठाम्या॒त्मन् प्रति॑ प्रा॒णेषु॒ प्रति॑ तिष्ठामि पु॒ष्टे प्रति॒ द्यावा॑पृथि॒व्योः प्रति॑ तिष्ठामि य॒ज्ञे॥१०॥
स्वर सहित पद पाठप्रति॑। क्ष॒त्रे। प्रति॑। ति॒ष्ठा॒मि॒। रा॒ष्ट्रे। प्रति॑। अश्वे॑षु। प्रति॑। ति॒ष्ठा॒मि॒। गोषु॑। प्रति॑। अङ्गे॑षु। प्रति॑। ति॒ष्ठा॒मि॒। आत्मन्। प्रति॑। प्रा॒णेषु॑। प्रति॑। ति॒ष्ठा॒मि॒। पु॒ष्टे। प्रति॑। द्यावा॑पृथि॒व्योः। प्रति॑। ति॒ष्ठा॒मि॒। य॒ज्ञे ॥१० ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रति क्षत्रे प्रति तिष्ठामि राष्ट्रे प्रत्यश्वेषु प्रति तिष्ठामि गोषु । प्रत्यङ्गेषु प्रतितिष्ठाम्यात्मन्प्रति प्राणेषु क्षत्रे प्रतितिष्ठामि पुष्टे प्रति द्यावापृथिव्योः प्रति तिष्ठामि यज्ञे ॥
स्वर रहित पद पाठ
प्रति। क्षत्रे। प्रति। तिष्ठामि। राष्ट्रे। प्रति। अश्वेषु। प्रति। तिष्ठामि। गोषु। प्रति। अङ्गेषु। प्रति। तिष्ठामि। आत्मन्। प्रति। प्राणेषु। प्रति। तिष्ठामि। पुष्टे। प्रति। द्यावापृथिव्योः। प्रति। तिष्ठामि। यज्ञे॥१०॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
विशि प्रतिष्ठितो राजाऽहं धर्म्येण क्षत्रे प्रति तिष्ठामि, राष्ट्रे प्रति तिष्ठाम्यश्वेषु प्रति तिष्ठामि, गोषु प्रतितिष्ठाम्यङ्गेषु प्रति तिष्ठाम्यात्मन् प्रति तिष्ठामि, प्राणेषु प्रति तिष्ठामि, पुष्टे प्रति तिष्ठामि, द्यावापृथिव्योः प्रति तिष्ठामि, यज्ञे प्रति तिष्ठामि॥१०॥
पदार्थः
(प्रति) प्रतिनिधौ (क्षत्रे) क्षताद् रक्षके क्षत्रियकुले (प्रति) (तिष्ठामि) (राष्ट्रे) प्रकाशमाने राज्ये (प्रति) (अश्वेषु) तुरङ्गादिषु (प्रति) (तिष्ठामि) (गोषु) गोषु पृथिव्यादिषु च (प्रति) (अङ्गेषु) राज्याऽवयवेषु (प्रति) (तिष्ठामि) (आत्मन्) आत्मनि (प्रति) (प्राणेषु) (प्रति) (तिष्ठामि) (पुष्टे) (प्रति) (द्यावापृथिव्योः) सूर्याचन्द्रवन्न्यायप्रकाशभूम्योः (प्रति) (तिष्ठामि) (यज्ञे) विद्वत्सेवासङ्गविद्यादानादिक्रियायाम्॥१०॥
भावार्थः
यो राजा प्रियाऽप्रिये विहाय न्यायधर्मेण प्रजाः प्रशास्य सर्वेषु राजकर्मसु चारचक्षुर्भूत्वा मध्यस्थया वृत्त्या सर्वाः प्रजाः पालयित्वा सततं विद्यासुशिक्षावर्धको भवेत्, स एव सर्वपूज्यो भवेत्॥१०॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
प्रजाजनों में प्रतिष्ठा को प्राप्त मैं राजा धर्मयुक्त व्यवहार से (क्षत्रे) क्षय से रक्षा करनेहारे क्षत्रियकुल में (प्रति) प्रतिष्ठा को प्राप्त होता हूं, (राष्ट्रे) राज्य में (प्रति, तिष्ठामि) प्रतिष्ठा को प्राप्त होता हूं, (अश्वेषु) घोड़े आदि वाहनों में (प्रति) प्रतिष्ठा को प्राप्त होता हूं, (गोषु) गौ और पृथिवी आदि पदार्थों में (प्रति, तिष्ठामि) प्रतिष्ठित होता हूं (अङ्गेषु) राज्य के अङ्गों में (प्रति) प्रतिष्ठित होता हूं, (आत्मन्) आत्मा में (प्रति, तिष्ठामि) प्रतिष्ठित होता हूं, (प्राणेषु) प्राणों में (प्रति) प्रतिष्ठित होता हूं, (पुष्टे) पुष्टि करने में (प्रति, तिष्ठामि) प्रतिष्ठित होता हूं, (द्यावापृथिव्योः) सूर्य-चन्द्र के समान न्याय-प्रकाश और पृथिवी में (प्रति) प्रतिष्ठित होता (यज्ञे) विद्वानों की सेवा संग और विद्यादानादि क्रिया में (प्रति, तिष्ठामि) प्रतिष्ठित होता हूं॥१०॥
भावार्थ
जो राजा प्रिय-अप्रिय को छोड़, न्यायधर्म से समस्त प्रजा का शासन, सब राजकर्मों में चाररूप आंखों वाला अर्थात् राज्य के गुप्त हाल को देने वाले दूत ही जिसके नेत्र के समान, वैसा ही मध्यस्थ वृत्ति से सब प्रजाओं का पालन कर कराके निरन्तर विद्या की शिक्षा को बढ़ावे, वही सब का पूज्य होवे॥१०॥
विषय
अंगों में आत्मा के समान राष्ट्र के अंगों में राजा की प्रतिष्ठा ।
भावार्थ
राजा की राष्ट्र के भिन्न-भिन्न भागों में प्रतिष्ठा । 'मैं' राजा (प्रति क्षत्रे) प्रत्येक क्षत्रिलकुल में (प्रति तिष्ठामि) प्रतिष्ठा को प्राप्त करूं । (राष्ट्रे प्रतितिष्ठामि) प्रत्येक राष्ट्र में या राष्ट्र के प्रत्येक भाग में प्रतिष्ठा को प्राप्त करूं । (अश्वेषु) अश्वों में और ( गोषु) गौओं में भी ( प्रतितिष्ठामि ) प्रतिष्ठा प्राप्त करूं । (अङ्गेषु) समस्त अंगों में प्रतिष्ठित होऊं । (आत्मन् प्रतितिष्ठामि) आत्मा में प्रतिष्ठित होऊं । (प्राणेषु) प्राणों में (प्रतितिष्ठामि ) `प्रतिष्ठित होऊं । (पुष्टे प्रति) पुष्ट, पोषणकारी अन्न आदि पदार्थों में प्रतिष्ठित होऊं । (द्यावापृथिव्योः) आकाश और पृथिवी पर और (यज्ञे) यज्ञ में भी (प्रति तिष्ठामि) प्रतिष्ठा को प्राप्त करूं ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रजापतिः । सभेशः । विराट शक्वरी । धैवतः ॥
विषय
वश्यविश्व
पदार्थ
१. (प्रतिक्षत्रे) = प्रत्येक बल में (प्रतितिष्ठामि) = मैं प्रतिष्ठित होऊँ । बल व राष्ट्र में प्रतिष्ठित होने का अभिप्राय यह है कि मैं बल व राष्ट्र को अपने वश में करनेवाला बनूँ। २. (अश्वेषु प्रतितिष्ठामि) = मैं अश्वों में प्रतिष्ठित होऊँ तथा (गोषु प्रतितिष्ठामि) = गौवों में प्रतिष्ठित होऊँ, अर्थात् मैं गौवों व घोड़ों को खूब प्राप्त करूँ। मेरे राष्ट्र में गौवों व घोड़ों की कमी न हो। ३. (प्रत्यङ्गेषु) = मैं हाथ-पाँव आदि सब अङ्गों में (प्रतितिष्ठामि) = प्रतिष्ठित होऊँ तथा (आत्मन्) = चित्त में प्रतिष्ठित होऊँ। अङ्गों में प्रतिष्ठित होने का अभिप्राय यह है कि मेरे सब अङ्ग अविकल हों तथा चित्त आधियों से शून्य हो। ४. (प्रतिप्राणेषु) = प्रत्येक प्राण में (प्रतितिष्ठामि) = मैं प्रतिष्ठित होऊँ तथा (पुष्टे) = समृद्धि में मैं प्रतिष्ठित होऊँ। प्राणों में प्रतिष्ठित होने का अभिप्राय यह है कि मैं नीरोग बनूँ। पुष्टों में प्रतिष्ठित होने का अभिप्राय है कि मैं खूब धनसम्पन्न होऊँ। ५. (द्यावापृथिव्योः प्रतितिष्ठामि) = मस्तिष्क व शरीर दोनों में प्रतिष्ठित होऊँ [ द्यावा = मस्तिष्क, पृथिवी शरीरम्] एवं शरीर व मन के विकास के परिणामरूप मेरी द्यावापृथिवी में उत्कृष्ट कीर्ति हो। मैं शरीर व मस्तिष्क दोनों में लब्धकीर्ति बनूँ। ६. शरीर व मस्तिष्क को ठीक बनाकर (यज्ञे प्रतितिष्ठामि) = मैं यज्ञों में प्रतिष्ठित बनूँ। मेरी यज्ञों में रुचि हो । प्रभु ने इसी से मुझे फूलने-फलने का निर्देश दिया है।
भावार्थ
भावार्थ- मैं ' क्षत्र - राष्ट्र- अश्व-गौ-प्रत्यङ्ग-चित्त- प्राण- पुष्ट, द्यावापृथिवी व यज्ञ में प्रतिष्ठित होऊँ। मैं वश्यविश्व, पशुमान्, आधिव्यधिरहित श्रीमान् व यज्ञकर्ता' बनूँ।
मराठी (2)
भावार्थ
जो राजा प्रिय, अप्रिय हा विचार न करता न्यायाने शासन चालविणारा, गुप्तहेररूपी नेत्रांच्या साह्याने राज्यकार्य करणारा, मध्यस्थ वृत्तीने प्रजेचे पालन करून सदैव विद्येचे संस्कार वाढविणारा असेल तोच सर्वांना पूजनीय वाटतो.
विषय
पुनश्च तोच विषय -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (राष्ट्रपतीचा मनोनिर्धार वा प्रतिज्ञा) मी प्रजाजनामधे प्रतिष्ठा प्राप्त आहे. मी राजा वा राष्ट्राध्यक्ष असून धर्मपूर्वक आचरण करीत असल्यामुळे मी (क्षत्रे) क्षतिपासून दुर्बळांचे रक्षा करणाऱ्या क्षत्रियांमधे (माझ्या सैनिकांमधे) (प्रति) प्रतिष्ठा प्राप्त आहे (सैनिकांचा माझ्यावर विश्वास आहे) मी (राष्टै) राज्यात (प्रति, तिष्ठामि) प्रतिष्ठाप्राप्त आहे. (अश्वेषु) घोडे आदी वाहनांमधे (प्रति) प्रतिष्ठाप्राप्त (त्यां सर्वांवर माझा नियंत्रण) आहे (गोषु) गौ आदी पशू आणि पृथ्वी यांवर (प्रतितिष्ठाभि) माझा अधिकार आहे. (अङ्गेषु) राज्याच्या विविध अंगामधे (सेना, राजकर्मचारी, सेवक आदी वर्गांवर (प्रति) मी प्रतिष्ठित आहे (माझ्यावर त्यांचा विश्वास आहे) मी (आत्मन्) स्वतःच्या आत्म्यावर (प्रति, तिष्ठामि) प्रतिष्ठित आहे (माझा स्वतःवर गाढ विश्वास आहे) मी (प्राणेषु) प्राणशक्तीमधे (प्रति) प्रतिष्ठित आहे (प्राणशक्ती मला वश आहे) (पुष्टे) मी पुष्ट व नीरोग होण्यास (प्रति, तिष्ठामि) तत्पर आहे (द्यावापृथिव्योः) मी सूर्य आणि चंद्राप्रमाणे न्याय करणारा असा या भूमीमधे (प्रति) प्रतिष्ठित आहे. मी (यज्ञे) विद्वानांच्या सेवेत, त्यांच्या संगतीत तत्पर असणारा असून विद्यादान, प्रसार आदी कार्यात (प्रति, तिष्ठामि) प्रतिष्ठित आहे. (मी वरील सर्व प्रतिज्ञा करीत आहे की मी असाच राहीन व असाच वागेन) ॥10॥
भावार्थ
भावार्थ - जो राजा स्वतःला प्रिय किंवा अप्रिय असा विचार न करता न्यायाने सर्व प्रजेचे पालन करतो, तसेच जो राज्यशासनकार्यात गुप्तहेरांचा सहाय्याने सर्व माहिती मिळवितो, म्हणजे गुप्तहेर हेच ज्याचे नेत्र आहेत, असा मध्यस्थवृत्तीने प्रजापालन करणारा असून विद्या, ज्ञानादीची वृद्धी करणारा असतो, तोच सर्वांचा पूजनीय व सन्माननीय होतो. ॥10॥
इंग्लिश (3)
Meaning
I take my stand on princely power and kingship, on horses am I dependent, and on cows, on agencies of administration I depend, on my soul do I depend. On vital breaths am I dependent, and on invigorating cereals do I depend. I depend on justice like the sun and moon. I depend on the company of the learned, and on the spread of knowledge.
Meaning
Accepted, appointed and consecrated in this divinely protected Order of the brilliant State of the World: I dedicate and commit myself to the Order, in the Order, for the Order. I dedicate and commit myself to the State, in the State, for the State, to the people, among the People, for the People. I dedicate myself to the horses and cows. I dedicate myself to all parts of the Order and the State. Firmly established in my mind and soul, with all my soul and pranic energy, I dedicate myself to the living spirit and exuberant dynamics of the human nation. I dedicate myself to the growth and development of the strength and prosperity of the people. In the light of heaven and greenery of the earth and her environment, I dedicate myself to heaven and earth. I dedicate and commit myself to the grand socio¬ economic yajna of service, governance and brilliance of a generous humanity for total and holistic development.
Translation
There I am established in the ruling and administrative power; I am established in the government; I am established in horses as well as in cows. I am established in all the limbs as well as in the soul. I am established in vital breaths as well as in development. I am established in the heaven and earth as well as in the sacrifice I am established. (1)
Notes
Pratitiṣṭhāmi, I am established with respect. Kşatre, in the ruling and governing power. Rāṣṭre, in the government or the administration. (not to be confused with nation). Pratyangeşu, in the limbs; parts of the body. Atman, आत्मनि, in the soul. Puște, in the development.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনরায় সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- প্রজাগণের মধ্যে প্রতিষ্ঠা প্রাপ্ত আমি রাজা ধর্মযুক্ত ব্যবহার দ্বারা (ক্ষত্রে) ক্ষয় হইতে রক্ষাকারী ক্ষত্রিয়কুলে (প্রতি) প্রতিষ্ঠা প্রাপ্ত করিয়া (রাষ্ট্রে) রাজ্যে (প্রতি, তিষ্ঠামি) প্রতিষ্ঠা প্রাপ্ত হই । (অশ্বেষু) অশ্বাদি বাহনে (প্রতি) প্রতিষ্ঠা প্রাপ্ত করিয়া (গোষু) গাভি ও পৃথিবী আদি পদার্থে (প্রতি, তিষ্ঠামি) প্রতিষ্ঠিত হই । (অঙ্গেষু) রাজ্যের অঙ্গগুলিতে (প্রতি) প্রতিষ্ঠিত হইয়া (আত্মন্) আত্মাতে (প্রতি, তিষ্ঠামি) প্রতিষ্ঠিত হই । (প্রাণেষু) প্রাণসকলের মধ্যে (প্রতি) প্রতিষ্ঠিত হইয়া (পুষ্টে) পুষ্টি করিতে (প্রতি, তিষ্ঠামি) প্রতিষ্ঠিত হই । (দ্যাবাপৃথিব্যোঃ) সূর্য্য চন্দ্র সদৃশ ন্যায়প্রকাশ ও পৃথিবীতে (প্রতি) প্রতিষ্ঠিত হইয়া (য়জ্ঞে) বিদ্বান্দিগের সেবা-সঙ্গ এবং বিদ্যাদানাদি ক্রিয়ায় (প্রতি, তিষ্ঠামি) প্রতিষ্ঠিত হই ॥ ১০ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- যে রাজা প্রিয়-অপ্রিয়কে ত্যাগ করিয়া ন্যায়ধর্ম দ্বারা সমস্ত প্রজার শাসন সকল রাজকার্য্যে চররূপ চক্ষু হইয়া অর্থাৎ রাজ্যের গুপ্ত খবর প্রদানকারী দূতই যাহার নেত্র সমান সেইরূপ মধ্যস্থ বৃত্তি দ্বারা সকল প্রজাদের পালন করিয়া করাইয়া নিরন্তর বিদ্যার শিক্ষা বৃদ্ধি করিবে, তিনিই সকলের পূজ্য হইবে ॥ ১০ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
প্রতি॑ ক্ষ॒ত্রে প্রতি॑ তিষ্ঠামি রা॒ষ্ট্রে প্রত্যশ্বে॑ষু॒ প্রতি॑ তিষ্ঠামি॒ গোষু॑ । প্রত্যঙ্গে॑ষু॒ প্রতি॑ তিষ্ঠাম্যা॒ত্মন্ প্রতি॑ প্রা॒ণেষু॒ প্রতি॑ তিষ্ঠামি পু॒ষ্টে প্রতি॒ দ্যাবা॑পৃথি॒ব্যোঃ প্রতি॑ তিষ্ঠামি য়॒জ্ঞে ॥ ১০ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
প্রতীত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । সভেশো দেবতা । স্বরাট্ শক্বরী ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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