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यजुर्वेद अध्याय - 20

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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 73
    ऋषिः - विदर्भिर्ऋषिः देवता - अश्विसरस्वतीन्द्रा देवताः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    89

    अ॒श्विना॒ गोभि॑रिन्द्रि॒यमश्वे॑भिर्वी॒र्यं बल॑म्।ह॒विषेन्द्र॒ꣳ सर॑स्वती॒ यज॑मानमवर्द्धयन्॥७३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒श्विना॑। गोभिः॑। इ॒न्द्रि॒यम्। अश्वे॑भिः। वी॒र्य्य᳕म्। बल॑म्। ह॒विषा॑। इन्द्र॑म्। सर॑स्वती। यज॑मानम्। अ॒व॒र्द्ध॒य॒न् ॥७३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्विना गोभिरिन्द्रियमश्वेभिर्वीर्यम्बलम् । हविषेन्द्रँ सरस्वती यजमानमवर्दयन् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अश्विना। गोभिः। इन्द्रियम्। अश्वेभिः। वीर्य्यम्। बलम्। हविषा। इन्द्रम्। सरस्वती। यजमानम्। अवर्द्धयन्॥७३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 73
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    अश्विना सरस्वती च गोभिरश्वेभिर्हविषेन्द्रियं वीर्यं बलमिन्द्रं यजमानमवर्द्धयन्॥७३॥

    पदार्थः

    (अश्विना) अध्यापकोपदेशकौ (गोभिः) सुशिक्षिताभिर्वाणीभिः पृथिवीधेनुभिर्वा (इन्द्रियम्) धनम् (अश्वेभिः) सुशिक्षितैस्तुरङ्गादिभिः (वीर्यम्) पराक्रमम् (बलम्) (हविषा) उपादत्तेन पुरुषार्थेन (इन्द्रम्) ऐश्वर्ययुक्तम् (सरस्वती) सुशिक्षिता विदुषी स्त्री (यजमानम्) सत्यानुष्ठानस्य यज्ञस्य कर्त्तारम् (अवर्द्धयन्)॥७३॥

    भावार्थः

    ये येषां समीपे निवसेयुस्तेषां योग्यतास्ति, ते तान् सर्वैः शुभगुणकर्मभिरैश्वर्यादिना च समुन्नयेयुः॥७३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    (अश्विना) अध्यापक, उपदेशक और (सरस्वती) सुशिक्षायुक्त विदुषी स्त्री (गोभिः) अच्छे प्रकार शिक्षायुक्त वाणी वा पृथिवी और गौओं तथा (अश्वेभिः) अच्छे प्रकार शिक्षा पाये हुए घोड़ों और (हविषा) अङ्गीकार किये हुए पुरुषार्थ से (इन्द्रियम्) धन (वीर्यम्) पराक्रम (बलम्) बल और (इन्द्रम्) ऐश्वर्ययुक्त (यजमानम्) सत्य अनुष्ठानरूप यज्ञ करनेहारे को (अवर्द्धयन्) बढ़ावें॥७३॥

    भावार्थ

    जो लोग जिनके समीप रहें उनको योग्य है कि वे उनको सब अच्छे गुण कर्मों और ऐश्वर्य आदि से उन्नति को प्राप्त करें॥७३॥

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    विषय

    उषा, नक्त, अश्वि, तीन देवियां, सविता, वरुण का इन्द्र पद को पुष्ट करना ।

    भावार्थ

    (गोभि:) दुग्धों से जिस प्रकार शरीर में इन्द्रिय सामर्थ्यं बढ़ता है और (अश्वेभिः) व्यापक प्राणों से वीर्य और बल बढ़ता है उसी प्रकार (अश्विनौ) राज्य के दोनों मुख्य पदाधिकारी क्रम से (गोभिः) गौ आदि पालतू पशुओं से ( इन्द्रियम् ) राजा के ऐश्वर्य को बढ़ावें और (अश्वेभिः) घोड़ों से या घुड़सवारों से ( वीर्यम् ) शरीर में वीर्य के समान राष्ट्र में तेज और वीरकर्म से युक्त ( बलम् ) सेना के बल की वृद्धि करें । और (सरस्वती) उत्तम ज्ञान वाली विद्वत्सभा ( यजमानम् ) सबके स्नेही, राज्य के व्यवस्थापक, सर्वाश्रयप्रद ( इन्द्रम् ) इन्द्र, राजा को (हविषा ) आदान योग्य रूप से ( अवर्धयन् ) वृद्धि करें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    [ ७३–७५ ] अश्विसरस्वतीन्द्राः देवताः । अनुष्टुप् । गान्धारः ॥

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    विषय

    गौः अश्व

    पदार्थ

    १. (अश्विना) = प्राणापान (गोभिः) = ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा अथवा वेदवाणियों के द्वारा (इन्द्रियम्) = बल को, इन्द्रियों की शक्ति को, (वर्धयन्) = बढ़ाते हैं। २. (अश्वेभिः) = कर्मेन्द्रियों के द्वारा अथवा कर्मों में व्यापन के द्वारा वीर्यम् शरीर में रोगों का प्रतीकार करनेवाली शक्ति को तथा (बलम्) = बल को बढ़ाते हैं। ३. सरस्वती ज्ञानाधिदेवता (हविषा) = हवि के द्वारा (यजमानम्) = यज्ञशील, यज्ञ के स्वभाववाले (इन्द्रम्) = जितेन्द्रिय पुरुष को बढ़ाती है। ज्ञान से मनुष्य के अन्दर अकेले खा लेने की वृत्ति नष्ट होती है और वह हविर्मय जीवनवाला बन जाता है। ४. प्राणापान की साधना ज्ञानेन्द्रियों व कर्मेन्द्रियों को निर्दोष बनाकर उनकी शक्ति को बढ़ाती है। प्राणापान के ठीक कार्य करने पर मनुष्य ज्ञानेन्द्रियों से ज्ञान प्राप्ति में लगा रहता है और कर्मेन्द्रियों को यज्ञादि उत्तम कर्मों में व्याप्त किये रखता है। इस प्रकार इस प्राणसाधना से उसकी ज्ञानेन्द्रियों व कर्मेन्द्रियों का बल बढ़ता है।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्राणायाम से हमारी इन्द्रियाँ निर्दोष बन बढ़ी हुई शक्तिवाली होती हैं और ज्ञान-प्राप्ति से हमारी यज्ञियवृत्ति का विकास होता है, हम हविरूप हो जाते हैं।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जे लोक ज्या व्यक्तीजवळ राहतात. त्यांनी त्या लोकांना चांगले गुण, कर्म, स्वभाव व ऐश्वर्य इत्यादींनी उन्नत करावे.

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    विषय

    पुनश्च त्याच विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (अश्विना) (समाजातील) अध्यापकांनी आणि उपदेशकांनी तसेच (सरस्वती) सुशिक्षिता विदुषी स्त्रीने (वा स्त्रियांनी) (गोभिः) सुसंस्कृत वाणीचा, पृथ्वीचा अथवा गायींचा तसेच (अश्वेभिः) प्रशिक्षित घोड्यांचा (हविषा) योग्यप्रकारे (उपयोग करावा) आणि पुरूषार्थद्वारे आपले (इन्द्रियम्‌) धन (वीर्यम्‌) पराक्रम आणि (बलम्‌) बल वाढवीत (इन्द्रम्‌) ऐश्वर्यशाली (यजमानम्‌) सत्य-आचरण रूप यज्ञ करणाऱ्या (धार्मिक मनुष्याची )उन्नती करावी ॥73॥

    भावार्थ

    भावार्थ - सर्वांचे कर्तव्य आहे की जे जे जेवढे लोक आपल्या शेजारी-पाजारी राहतात, त्यांना सर्व सत्कर्म करण्याची व सद्गुण धारण करण्याची प्रेरणा करीत त्या सर्वाचे ऐश्वर्यवृद्धीद्वारे प्रगती साधावी ॥73॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Teacher, preacher, and an educated lady, with disciplined speech, well trained horses, and enterprise, should augment wealth, prowess, strength, and enhance a mighty devotee of truth.

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    Meaning

    The Ashvinis, creative and curative powers of nature, and the teacher and the preacher, and Sarasvati, universal intelligence, and the woman of knowledge and enlightenment advance Indra, prosperous man of yajna, with wealth and power by cows and produce of the earth, valour and prowess by horses, and moral and spiritual strength by the holy foods of yajna fire.

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    Translation

    May the twin healers and the divine Doctress enhance the power of the aspirant, the sacrificer, with cattle, horses, keenness of sense-organs, mental power, physical strength and provisions. (1)

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে, পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- (অশ্বিনা) অধ্যাপক উপদেশক এবং (সরস্বতী) সুশিক্ষাযুক্তা বিদুষী নারী (গোভিঃ) সুশিক্ষিতা বাণী বা পৃথিবী এবং গাভি তথা (অশ্বেভিঃ) সুশিক্ষিত অশ্ব এবং (হবিষা) অঙ্গীকৃত পুরুষার্থ দ্বারা (ইন্দ্রিয়ম্) ধন (বীর্য়ম্) পরাক্রম (বলম্) বল ও (ইন্দ্রম্) ঐশ্বর্য্যযুক্ত (য়জমানম্) সত্য অনুষ্ঠানরূপ যজ্ঞকারীকে (অবর্দ্ধয়ন্) বৃদ্ধি কর ॥ ৭৩ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যাহারা যাহাদের সমীপ থাকে তাহাদের উচিত যে, তাহারা তাহাদের সব উত্তম গুণ কর্ম ও ঐশ্বর্য্যাদি দ্বারা উন্নতি প্রাপ্ত করুক ॥ ৭৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    অ॒শ্বিনা॒ গোভি॑রিন্দ্রি॒য়মশ্বে॑ভির্বী॒র্য়ং᳕ বল॑ম্ ।
    হ॒বিষেন্দ্র॒ꣳ সর॑স্বতী॒ য়জ॑মানমবর্দ্ধয়ন্ ॥ ৭৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    অশ্বিনেত্যস্য বিদর্ভির্ঋষিঃ । অশ্বিসরস্বতীন্দ্রা দেবতাঃ । নিচৃদনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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