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यजुर्वेद अध्याय - 20

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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 67
    ऋषिः - विदर्भिर्ऋषिः देवता - अश्विसरस्वतीन्द्रा देवताः छन्दः - भुरिगनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    52

    अ॒श्विना॑ ह॒विरि॑न्द्रि॒यं नमु॑चेर्धि॒या सर॑स्वती।आ शु॒क्रमा॑सु॒राद्वसु॑ म॒घमिन्द्रा॒॑य जभ्रिरे॥६७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒श्विना॑। ह॒विः। इ॒न्द्रि॒यम्। नमु॑चेः। धि॒या। सर॑स्वती। आ। शु॒क्रम्। आ॒सु॒रात्। वसु॑। म॒घम्। इन्द्रा॑य। ज॒भ्रि॒रे॒ ॥६७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्विना हविरिन्द्रियन्नमुचेर्धिया सरस्वती । आ शुक्रमासुराद्वसु मघमिन्द्राय जभ्रिरे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अश्विना। हविः। इन्द्रियम्। नमुचेः। धिया। सरस्वती। आ। शुक्रम्। आसुरात्। वसु। मघम्। इन्द्राय। जभ्रिरे॥६७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 67
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    अश्विना सरस्वती च धिया नमुचेर्हविरिन्द्रियमासुराच्छुक्रं मघं वस्विन्द्रायाजभ्रिरे॥६७॥

    पदार्थः

    (अश्विना) सुवैद्यौ (हविः) आदातुमर्हम् (इन्द्रियम्) मन आदि (नमुचेः) अविनश्वरात् कारणादुत्पन्नात् कार्यात् (धिया) प्रज्ञया (सरस्वती) (आ) (शुक्रम्) वीर्यम् (आसुरात्) मेघात् (वसु) (मघम्) पूज्यम् (इन्द्राय) ऐश्वर्याय (जभ्रिरे) धरेयुः॥६७॥

    भावार्थः

    स्त्रीपुरुषैरैश्वर्यसुखप्राप्तय औषधानि संसेव्यानि॥६७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    (अश्विना) अच्छे वैद्य और (सरस्वती) अच्छी शिक्षायुक्त स्त्री (धिया) बुद्धि से (नमुचेः) नाशरहित कारण से उत्पन्न हुए कार्य से (हविः) ग्रहण करने योग्य (इन्द्रियम्) मन को (आसुरात्) मेघ से (शुक्रम्) पराक्रम और (मघम्) पूज्य (वसु) धन को (इन्द्राय) ऐश्वर्य के लिये (आजभ्रिरे) धारण करें॥६७॥

    भावार्थ

    स्त्री और पुरुषों को चाहिये कि ऐश्वर्य से सुख की प्राप्ति के लिये ओषधियों का सेवन करें॥६७॥

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    विषय

    उषा, नक्त, अश्वि, तीन देवियां, सविता, वरुण का इन्द्र पद को पुष्ट करना ।

    भावार्थ

    ( अश्विनौ) पूर्वोक्त दो अधिकारी जन और(सरस्वती) विद्वसभा (धिया) बुद्धिपूर्वक और राष्ट्र के धारण करनेवाली शक्ति से ( नमुचेः) कभी न छोड़ने योग्य, सदा वध कर देने योग्य शत्रु से अथवा शत्रु के हाथ कभी न देने योग्य राष्ट्र से ( इन्द्राय ) ऐश्वर्यवान्, शत्रुनाशक राजा के लिये (हविः) अन्न समृद्धि या स्वीकार करने योग्य (इन्द्रियम् ) ऐश्वर्य या इन्द्रपद और (शुक्रम् ) शुद्ध तेजोमय (वसु) प्रजा को बसानेवाला राष्ट्र और (मघम् ) ऐश्वर्य सम्पत्ति इन पदार्थों को (आजभ्रिरे) प्राप्त कराते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    [ ६७–६९ ] अश्विसरस्वतीन्द्रा देवताः । भुरिग् अनुष्टुप् । गान्धारः ॥

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    विषय

    हवि-इन्द्रिय-शुक्र-वसु-मघ

    पदार्थ

    १. (अश्विना) = प्राणापान तथा सरस्वती ज्ञानाधिदेवता (नमुचे:) = [न-मुचि, धर्ममत्यजत] धर्म को, अपने धारणात्मक कर्म को न छोड़नेवाले प्रभु के धिया ध्यान व ज्ञान के द्वारा (हविः) = त्यागपूर्वक अदन की भावना को और (इन्द्रियम्) = इन्द्रियों की शक्ति को तथा (शुक्रम्) = जीव को शुद्ध [ शुच्] व सक्रिय [शुक्] बनानेवाले वीर्य को (वसु) = उत्तम निवास के लिए आवश्यक तत्त्वों को तथा (मघम्) = पापशून्य, सुपथ से अर्जित ऐश्वर्य को (आसुरात्) = उस प्राणाशक्ति के देनेवाले प्रभु से (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिए (आजभ्रिरे) = प्राप्त कराए २. मानव जीवन की साधना में सबसे महत्त्वपूर्ण पग प्राणसाधना [ प्राणायाम्] व स्वाध्याय हैं। ३. इनसे मनुष्य में [क] त्यागपूर्वक अदन की भावना उत्पन्न होती है। इन्द्रियशक्ति उत्पन्न होती है। [ख] वीर्य स्थिर होता है जो उसके जीवन को शुद्ध व क्रियाशील बनाता है। [ग] उत्तम निवास के लिए आवश्यक सब तत्त्व उसमें विकसित होते हैं और [घ] उसे सुपथ - अर्जित ऐश्वर्य प्राप्त होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्राणायाम व स्वाध्याय के द्वारा अश्विनीदेवों व सरस्वती की आराधना करें, जिससे हमारा जीवन 'हवि - इन्द्रिय- शुक्र-वसु व मघ' से सुशोभित हो ।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    स्री-पुरुषांनी ऐश्वर्यप्राप्ती व सुखाची प्राप्ती व्हावी यासाठी औषधांचे सेवन करावे.

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    विषय

    पुढील मंत्रात तोच विषय वर्णित आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (सामाजिकांची कामना की) (सचा) संपर्क वा संबंध केल्यानंतर (आमचे) (अश्विना) अध्यापक आणि उपदेशक तसेच (घराघरातील) (सरस्वती) विदुषी स्त्रिया, (नमुचौ) अविनाशी कारण (प्रकृती) पासून उत्पन्न होणाऱ्या (आसुरे) मेघांमधे (जसे जल संचित वा वर्धित होते) तद्वत आपल्या घराघरामधे स्त्रियांनी (हविषा) उत्तम प्रकारे निर्मित होमसामग्री तयार करावी आणि (यम्‌) त्यापासून (इन्द्रम्‌) घराचे ऐश्वर्य (अवद्धदन्‌) वाढवीत रहावे. (सः) त्या ऐश्वर्य वा धनाने (मघम्‌) पूजनीय, कार्यसिद्धि कारक (बलम्‌) बलाचे (बिभेद) भेदन (वा अर्जन, प्राप्ती) करावी. ॥68॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जो (कुशल वैद्य) औषधीच्या रसांचे गुण ओळखतो आणि त्या गुणांनी (व्याधिग्रस्तांना) रोगरहित करतो, तोच खऱ्या अर्थांने रोगनिवारक वैद्य असतो ॥68॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Good physicians and an educated lady, with their wisdom, through the use of material objects resulting from indestructible matter, should cultivate an acceptable mind, and acquire from cloud strength, brilliant: treasure, and ample wealth.

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    Meaning

    Let the Ashvinis, scholars of health and nature, and Sarasvati, expert of science and the divine word, with their intelligence and vision, distil and create from the heavenly waters of space, modes of Prakriti, pure vitality, exceptional drinks, wealth and prosperity, sacred materials for yajna, and noble mind and senses worthy of the man of honour and glory.

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    Translation

    The twin healers and the divine Doctress, with their ingenuity, fetch unadulterated sacrificial supplies, strength, and bounteous wealth for the aspirant from the niggard. (1)

    Notes

    Namuciḥ, कृपण:, miser, niggard.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- (অশ্বিনা) সুবৈদ্য এবং (সরস্বতী) সুশিক্ষাযুক্তা নারী (ধিয়া) বুদ্ধি দ্বারা (নমুচেঃ) নাশরহিত কারণ হইতে উৎপন্ন কার্য্য দ্বারা (হবিঃ) গ্রহণ করিবার যোগ্য (ইন্দ্রিয়ম্) মনকে (আসুরাৎ) মেঘ হইতে (শুক্রম্) পরাক্রম এবং (মঘম্) পূজ্য (বসু) ধনকে (ইন্দ্রায়) ঐশ্বর্য্য হেতু (আজভ্রিরে) ধারণ করিবে ॥ ৬৭ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- নারী ও পুরুষদের উচিত যে, ঐশ্বর্য্য দ্বারা সুখের প্রাপ্তি হেতু ওষধিসমূহের সেবন করিবে ॥ ৬৭ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    অ॒শ্বিনা॑ হ॒বিরি॑ন্দ্রি॒য়ং নমু॑চের্ধি॒য়া সর॑স্বতী ।
    আ শু॒ক্রমা॑সু॒রাদ্বসু॑ ম॒ঘমিন্দ্রা॑য় জভ্রিরে ॥ ৬৭ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    অশ্বিনা হবিরিত্যস্য বিদর্ভির্ঋষিঃ । অশ্বিসরস্বতীন্দ্রা দেবতাঃ । ভুরিগনুষ্টুপ্ ছন্দঃ । গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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