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यजुर्वेद अध्याय - 20

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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 57
    ऋषिः - विदर्भिर्ऋषिः देवता - अश्विसरस्वतीन्द्रा देवताः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    218

    इन्द्रा॒येन्दु॒ꣳ सर॑स्वती॒ नरा॒शꣳसे॑न न॒ग्नहु॑म्।अधा॑ताम॒श्विना॒ मधु॑ भेष॒जं भि॒षजा॑ सु॒ते॥५७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रा॑य। इन्दु॑म्। सर॑स्वती। नरा॒शꣳसे॑न। न॒ग्नहु॑म्। अधा॑ताम्। अ॒श्विना॑। मधु॑। भे॒ष॒जम्। भि॒षजा॑। सु॒ते ॥५७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रायेन्दुँ सरस्वती नराशँसेन नग्नहुम् । अधातामश्विना मधु भेषजम्भिषजा सुते ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्राय। इन्दुम्। सरस्वती। नराशꣳसेन। नग्नहुम्। अधाताम्। अश्विना। मधु। भेषजम्। भिषजा। सुते॥५७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 57
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ प्राधान्येन भिषजां व्यवहारमाह॥

    अन्वयः

    अश्विना भिषजेन्द्राय सुते मधु भेषजमधाताम्। नराशंसेन सरस्वती नग्नहुमिन्दुमादधातु॥५७॥

    पदार्थः

    (इन्द्राय) दुःखविदारणाय (इन्दुम्) परमैश्वर्यम् (सरस्वती) प्रशस्तविद्यायुक्ता वाणी (नराशंसेन) नरैः स्तुतेन (नग्नहुम्) यो नन्दयति स नग्नस्तमाददातीति (अधाताम्) दध्याताम् (अश्विना) वैद्यकविद्याव्यापिनौ (मधु) ज्ञानवर्द्धकं मधुरादिगुणयुक्तम् (भेषजम्) औषधम् (भिषजा) सद्वैद्यौ (सुते) उत्पन्नेऽस्मिञ्जगति॥५७॥

    भावार्थः

    वैद्या द्विधा एके ज्वरादिशरीररोगाऽपहारकाश्चिकित्सकाः। अपरे मानसाविद्यादिरोगविनाशका अध्यापकोपदेशकास्सन्ति, यत्रैते वर्तन्ते तत्र रोगाणां विनाशात् सर्वे प्राणिन आधिव्याधिमुक्ता भूत्वा सुखिनो भवन्ति॥५७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब प्रधानता से वैद्यों के व्यवहार को कहते हैं॥

    पदार्थ

    (अश्विना) वैद्यकविद्या में व्याप्त (भिषजा) उत्तम वैद्यजन (इन्द्राय) दुःखनाश के लिये (सुते) उत्पन्न हुए इस जगत् में (मधु) ज्ञानवर्द्धक कोमलतादि गुणयुक्त (भेषजम्) औषध को (अधाताम्) धारण करें और (नराशंसेन) मनुष्यों से स्तुति किये हुए वचन से (सरस्वती) प्रशस्तविद्यायुक्त वाणी (नग्नहुम्) आनन्द कराने वाले विषय को ग्रहण करने वाले (इन्दुम्) ऐश्वर्य को धारण करें॥५७॥

    भावार्थ

    वैद्य दो प्रकार के होते हैं-एक ज्वरादि शरीररोगों के नाशक चिकित्सा करनेहारे और दूसरे मन के रोग जो कि अविद्यादि मानस क्लेश हैं, उनके निवारण करनेहारे अध्यापक, उपदेशक हैं। जहां ये रहते हैं, वहां रोगों के विनाश से प्राणी लोग शरीर और मन के रोगों से छूटकर सुखी होते हैं॥५७॥

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    विषय

    सरस्वती और अश्वियों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    (सरस्वती) ज्ञानसम्पन्न विद्वत्-सभा, (इन्द्राय ) दुःख नाशक ऐश्वर्ययुक्त राजपद के लिये ( नराशंसेन) उत्तम पुरुषों द्वारा गुण स्तवन के सहित (नग्नहुम् ) दरिद्रों के पालक, प्रजा के सुखदायक (इन्दुम् ) दयालु, ऐश्वर्यवान् पुरुष को (अधात् ) राज्य पद पर स्थापित करे और ( भिषजा अश्विना) रोगनिवारक वैद्यों के समान विवेकी विद्वान् स्त्री पुरुष ( सुते ) अभिषिक्त राजा या राष्ट्र में ( भेषजम् ) रोग निवारक ओषधि के समान ( मधु ) मधुर अन्न और सेना बल को ( अधातम् ) धारण करें। सेना पोलीस आदि भी शरीर में रोग शम का ओषधि के समान उपद्रवकारी पुरुषों की शान्ति के लिये हों और अन्नादि पदार्थ भूख शान्ति के लिये हों । वह व्यर्थ प्रजा को पीड़ित न करें और व्यसनों में धन नष्ट न करें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अनुष्टुप् । गांधारः ॥

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    विषय

    मधु भेषजम्

    पदार्थ

    १. (सरस्वती) = ज्ञान की अधिदेवता (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिए इन्दुम् सोम को, [इन्द् to be powerful या इन्द् परमैश्वर्य] शक्ति व ज्ञानरूप परमैश्वर्य के कारणभूत इस सोम को धारण करती है। सोम को यहाँ इन्दु कहा गया है, चूँकि यह सोम शक्ति व परमैश्वर्य का कारण बनता है। मनुष्य जब ज्ञान प्राप्ति के मार्ग पर चलता है तब यह सोम ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता है और ज्ञानाग्नि को दीप्त करता है। २. यह सरस्वती ही इस इन्द्र को (नराशंसेन) = [नरै आशंसनीयेन] मनुष्यों से चाहनेयोग्य इस यज्ञ से (नग्नहुम्) = [नग्नः सन् जुहोति ] अपनी आवश्यकताओं को कम करके आहुति देनेवाला दान देनेवाला बनाती है। ज्ञान से मनुष्य भौतिक वृत्तियों से ऊपर उठता हुआ खूब देने की वृत्तिवाला बनता है। ३.इस इन्द्र के लिए ही (भिषजा अश्विना) = रोगों के चिकित्सक प्राणापान (सुते) = शरीर में सोम का उत्पादन होने पर (मधु भेषजम्) = अत्यन्त माधुर्यमय औषध को (अधाताम्) = धारण करते हैं। अथवा इस (मधु) = शहदरूप औषध को धारण करते हैं, अर्थात् प्राणापान की शक्ति के साथ इस मधु का मात्रा में प्रयोग इनके लिए सर्वोत्तम औषध हो जाता है। शहद की सामान्यतः मात्रा गर्मियों में १८ ग्राम व सर्दियों में ३० ग्राम हो सकती है।

    भावार्थ

    भावार्थ - १. ज्ञान का उपासक पुरुष सोम की रक्षा के द्वारा शक्तिसम्पन्न बनता है । २. यज्ञियवृत्ति को धारण कर, अपनी आवश्यकताएँ न बढ़ाकर दान देता है ३. प्राणापान इसके वैद्य बनते हैं, ४. मात्रा में किया गया मधु का प्रयोग इनके लिए सर्वोत्तम औषध बन जाता है।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    वैद्य दोन प्रकारचे असतात. एक शरीरज्वर वगैरे निवारण करणारे वैद्य व दुसरे अविद्या वगैरे मानसिक क्लेशामुळे होणाऱ्या रोगाचे निवारण करणारे अध्यापक व उपदेशक. जेथे हे असतात तेथे शरीर व मनाचे रोग नाहिसे होऊन प्राणी होतात.

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    विषय

    आता पुढील मंत्रात वैद्यांच्या कर्तव्यांविषयी सांगत आहेत -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (अश्विना) वैद्य विद्येत निपुण (दो वा अधिक) (भिषजा) उत्तम वैद्यजन (इन्द्राय) दुःख (वेदना, ज्वर आदींच्या) नाशाकरिता (सुते) (परमेश्वराने) उत्पन्न केलेल्या या संसारात (मधु) ज्ञानवर्धक आणि सौम्यगुणधारक (भेषनम्‌) औषधी (अधातम्‌) धारण, कराव्यात (रोगी लोकांकरिता योग्य औषधी शोधाव्यात आणि त्या औषधी रोग्यांना द्यावीत) तसेच (नराशंसेन) माणसांनी स्तुती केल्यानंतर (वा रोगीजनांची विनंती ऐकल्यानंतर) (वैद्यजनांनी) मधुर (उपदेशपर) वाणीने (नग्नहम्‌) आनंदवर्धक विषय व गोष्टी सांगाव्यात आणि त्याद्वारे (इन्दुम्‌) ऐश्वर्याची वृद्धी करावी (स्वास्थ्यरूप धनाची वृद्धी व रक्षा करावी) ॥57॥

    भावार्थ

    भावार्थ - वैद्य दोन प्रकारचे असतात. पहिल्या प्रकारचे ते वैद्य की जे ज्वर (वेदना) आदी शारीरिक रोगांचा योग्य चिकित्सा द्वारे नाश करतात आणि दुसरे प्रकारचे वैद्य ते की जे उपदेशक वा अध्यापक असून मानसिक रोगांचे यथा अविद्या, क्लेश आदींचे निवारण करतात (ते उपदेशाने मानसिक रोग दूर करतात) जेथे असे दोन प्रकारचे वैद्य राहतात, त्या प्रदेशातील लोक शारीरिक आणि मानसिक रोगांपासून मुक्त होऊन सदा, सुखी असतात. ॥57॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Both kinds of physicians, well versed in the science of medicine, for the removal of ailment, in this world, prescribe medicine skilfully and with a sweet voice. May speech full of commendable learning, coupled with words of praise from men, lead to affluence, conducive to happiness.

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    Meaning

    Let Sarasvati, mother scholar of knowledge and the Vedic voice, create the inspiring honour and joy of life by the admirable yajna of the people in honour of Indra, lord of yajna and the world. Let the Ashvinis, experts of health and medicine, create and bear the sweet medicinal panacea in honour of the Lord.

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    Translation

    When the cure-juice is pressed out for the aspirant, the divine Doctress and the twin healers, the two physicians, mix with it the yeast, much praised by men and turn it into a sweet medicine. (1)

    Notes

    Nagnahum, mixture of numerous herbs and medicines for brewing liquor; yeast. Indum, सोमं, cure-juice; a juice that cures all the maladies.

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    बंगाली (1)

    विषय

    অথ প্রাধান্যেন ভিষজাং ব্যবহারমাহ ॥
    এখন প্রধানতঃ বৈদ্যদিগের ব্যবহার বলা হইতেছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- (অশ্বিনা) বৈদ্যক বিদ্যায় ব্যাপ্ত (ভিষজা) উত্তম বৈদ্যগণ (ইন্দ্রায়) দুঃখনাশ হেতু (সুতে) উৎপন্ন এই জগতে (মধু) জ্ঞানবর্ধক কোমলতাদি গুণযুক্ত (ভেষজম্) ঔষধকে (অধাতাম্) ধারণ করিবে এবং (নরাশংসেন) মনুষ্যগণের দ্বারা স্তুত্য বচন দ্বারা (সরস্বতী) প্রশস্তবিদ্যাযুক্ত বাণী (নগ্নহুম্) আনন্দ করাইবার বিষয়কে গ্রহণকারী (ইন্দুম্) ঐশ্বর্য্যকে ধারণ করিবে ॥ ৫৭ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- বৈদ্য দুই প্রকারের হয় – এক, জ্বরাদি শরীররোগের নাশক চিকিৎসাকারী এবং দ্বিতীয়, মনের রোগ যাহা অবিদ্যাজনিত মানস ক্লেশ তাহার নিবারণকারী অধ্যাপক, উপদেশক । যেখানে ইহারা থাকেন সেখানে রোগের বিনাশের ফলে প্রাণিগণ শরীর ও মনের রোগ হইতে মুক্ত হইয়া সুখী হইয়া থাকে ॥ ৫৭ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    ইন্দ্রা॒য়েন্দু॒ꣳ সর॑স্বতী॒ নরা॒শꣳসে॑ন ন॒গ্নহু॑ম্ ।
    অধা॑তাম॒শ্বিনা॒ মধু॑ ভেষ॒জং ভি॒ষজা॑ সু॒তে ॥ ৫৭ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ইন্দ্রায়েত্যস্য বিদর্ভির্ঋষিঃ । অশ্বিসরস্বতীন্দ্রা দেবতাঃ । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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