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यजुर्वेद अध्याय - 20

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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 50
    ऋषिः - गर्ग ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - विराट् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    103

    त्रा॒तार॒मिन्द्र॑मवि॒तार॒मिन्द्र॒ꣳ हवे॑हवे सु॒हव॒ꣳ शूर॒मिन्द्र॑म्। ह्वया॑मि श॒क्रं पु॑रुहू॒तमिन्द्र॑ꣳ स्व॒स्ति नो॑ म॒घवा॑ धा॒त्विन्द्रः॑॥५०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्रा॒तार॑म्। इन्द्र॑म्। अ॒वि॒तार॑म्। इन्द्र॑म्। हवे॑हव॒ इति॒ हवे॑ऽहवे। सु॒हव॒मिति॑ सु॒ऽहव॑म्। शूर॑म्। इन्द्र॑म्। ह्वया॑मि। श॒क्रम्। पु॒रु॒हू॒तमिति॑ पुरुऽहू॒तम्। इन्द्र॑म्। स्व॒स्ति। नः॒। म॒घवेति॑ म॒घऽवा॑। धा॒तु॒। इन्द्रः॑ ॥५० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रँ हवेहवे सुहवँ शूरमिन्द्रम् । ह्वयामि शक्रम्पुरुहूतमिन्द्रँ स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्रः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    त्रातारम्। इन्द्रम्। अवितारम्। इन्द्रम्। हवेहव इति हवेऽहवे। सुहवमिति सुऽहवम्। शूरम्। इन्द्रम्। ह्वयामि। शक्रम्। पुरुहूतमिति पुरुऽहूतम्। इन्द्रम्। स्वस्ति। नः। मघवेति मघऽवा। धातु। इन्द्रः॥५०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 50
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे सभाध्यक्ष! यं हवेहवे त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रं सुहवं शूरमिन्द्रं शक्रं पुरुहूतमिन्द्रं त्वां ह्वयामि स मघवेन्द्रस्त्वं नः स्वस्ति धातु॥५०॥

    पदार्थः

    (त्रातारम्) रक्षितारम् (इन्द्रम्) दुष्टविदारकम् (अवितारम्) प्रीणयितारम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यप्रदम् (हवेहवे) युद्धे युद्धे (सुहवम्) सुष्ठ्वाह्वानम् (शूरम्) शत्रुहिंसकम् (इन्द्रम्) राज्यधारकम् (ह्वयामि) आह्वयामि (शक्रम्) आशुकर्त्तारम् (पुरुहूतम्) पुरुभिविद्वद्भिराहूतम् (इन्द्रम्) शत्रुदलविदारकम् (स्वस्ति) सुखम् (नः) अस्मभ्यम् (मघवा) परमपूज्यः (धातु) दधातु (इन्द्रः) प्रशस्तसेनाधारकः॥५०॥

    भावार्थः

    मनुष्यास्तमेव सर्वदा सत्कुर्युर्यो विद्यान्यायधर्मसेवकः सुशीलो जितेन्द्रियः सन् सर्वेषां सुखवर्द्धनाय प्रयतेत॥५०॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे सभाध्यक्ष! जिस (हवेहवे) प्रत्येक संग्राम में (त्रातारम्) रक्षा करने (इन्द्रम्) दुष्टों के नाश करने (अवितारम्) प्रीति कराने (इन्द्रम्) उत्तम ऐश्वर्य के देने (सुहवम्) सुन्दरता से बुलाये जाने (शूरम्) शत्रुओं का विनाश कराने (इन्द्रम्) राज्य का धारण करने और (शक्रम्) कार्यों में शीघ्रता करनेहारे (पुरुहूतम्) बहुतों से सत्कार पाये हुए तथा (इन्द्रम्) शत्रुसेना के विदारण करनेहारे तुझको (ह्वयामि) सत्कारपूर्वक बुलाता हूं सो (मघवा) बहुत धनयुक्त (इन्द्रः) उत्तम सेना का धारण करनेहारा तू (नः) हमारे लिये (स्वस्ति) सुख का (धातु) धारण कर॥५०॥

    भावार्थ

    मनुष्य उसी पुरुष का सदा सत्कार करें जो विद्या न्याय और धर्म्म का सेवक, सुशील और जितेन्द्रिय हुआ सब के सुख को बढ़ाने के लिये निरन्तर यत्न किया करे॥५०॥

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    विषय

    इन्द्र सुत्रामा के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    मैं ( इन्द्रम् ) शत्रुओं के विदारण करने वाले और ( त्राता- रम् ) कष्टों से बचाने वाले पुरुष को (ह्वयामि) बुलाता हूँ । (हवे-हवे) प्रत्येक संग्राम में मैं ( अवितारम् ) रक्षा करने वाले ( इन्द्रम् ) परमैश्वर्यवान् पुरुष को बुलाता हूँ । मैं ( सुहवम् ) उत्तम संग्राम करने वाले शूरवीर, (इन्द्रम् ) इस राष्ट्र के धारणकर्त्ता 'इन्द्र' राजा को बुलाता हूँ । मैं ( शुक्रम् ) शक्तिशाली, ( पुरुहूतम् ) बहुत प्रजाओं द्वारा स्वीकृत, ( इन्द्रम् ) अन्नादि के रक्षक पुरुष को (ह्वयामि) बुलाता हूँ | वह (मघ- वान् ) धनादि से समृद्ध (इन्द्रः) पृथ्वी का पालक (नः) हमें (स्वस्ति) कल्याण और सुख (धातु) प्रदान करे ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गर्ग ऋषिः । इन्द्रो देवता । विराट् त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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    विषय

    राष्ट्र-रक्षा व प्रजा-कल्याण

    पदार्थ

    १. प्रस्तुत मन्त्रों का ऋषि 'गर्ग' है, जो [गिरति] शत्रुओं को निगल जाता है। राष्ट्र पर आक्रमण करनेवाले शत्रुओं को समाप्त करके राष्ट्र के (त्रातारम्) = रक्षक (इन्द्रम्) = शत्रुओं के मार भगानेवाले राजा को और अतएव (अवितारम्) = [ अव प्रीणने] प्रजा का प्रीणित करनेवाले (इन्द्रम्) = राजा को २. (हवेहवे) = प्रत्येक संग्राम में सुहवम् सुगमता से बुलाये जानेवाले, (शूरम्) = शत्रुओं की हिंसा करनेवाले [शृ हिंसायाम् ] (इन्द्रम्) = इन्द्रियों के अधिष्ठता, जितेन्द्रिय राजा को ३. जितेन्द्रियता के कारण ही (शक्रम्) = [ शक्नोति इति शक्र:] राष्ट्र की रक्षा करने में समर्थ, (पुरुहूतम्) = बहुत-से पुकारे गये, सत्कार किये गये (इन्द्रम्) = इस परमैश्वर्यशाली राजा को ह्वयामि इस सिंहासन पर बैठने व बैठकर राज्य करने के लिए पुकारता हूँ। ४. यह (इन्द्रः) = शत्रुओं का विद्रावक, इन्द्रियों का अधिष्ठाता (मघवा) = पापशून्य ऐश्वर्यवाला, कर आदि से प्राप्त उचित धन को यज्ञादि उत्तम कर्मों में व्ययित करनेवाला और अतएव (मघवा) = मघवान् कहलानेवाला यह राजा (नः) = हममें (स्वस्ति) = कल्याण को (धातु) = स्थापित करे।

    भावार्थ

    भावार्थ- राजा राष्ट्र की उत्तमता से रक्षा करे और प्रजा के कल्याण की साधना करें।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    माणसांनी त्याच पुरुषाचा नेहमी सन्मान करावा. जो विद्या, न्याय व धर्म यांचा पुरस्कर्ता, सुशील, जितेंद्रिय असतो, तसेच सर्वांचे सुख वाढविण्याचा प्रयत्न करतो.

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    विषय

    पुन्हा, त्याच विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे सभापती (सेनापती) मी (एक राजपुरूष, एक प्रजाजन वा मंत्री) (हवे हवे) प्रत्येक युद्धाच्यावेळी (आपणांला बोलावतो वा रक्षणासाठी हाक मारतो) (त्रातारम्‌) आमचे रक्षण करणाऱ्या (इन्द्रम्‌) दुष्टांचा नाश करणाऱ्या (अवितारम्‌) आमच्यावर प्रीती करणाऱ्या (इन्द्रम्‌) उत्तम ऐश्वर्य देणाऱ्या (सुहवम्‌) बोलावल्यानंतर (हाक दिल्यानंतर) त्वरित येणाऱ्या आणि (शूरम्‌) आमच्या शूर सेनापतीला (आम्ही आवाहन करीत आहोत.) तसेच (इन्द्रम्‌) राज्य चालविणाऱ्या (शक्र) कार्याची पूर्तता त्वरित करणाऱ्या (पुरुहूतम्‌) अनेकांद्वारे आवाहन केलेल्या (इन्द्रम्‌) शत्रुसैन्याचा विध्वंस करणाऱ्या आपणाला, हे सेनापती, मी (हृयामि) आदराने बोलावीत आहे. असे (मघवा) अतिधनसंपन्न (इन्द्रः) सेनेचे उत्तम संचालन करणारे आपण (नः) आम्हा (प्रजाजनांसाठी (स्वस्ति) कल्याण (धातू) धारण करा (ज्या ज्या वेळी आम्ही प्रजाजन आपणास हाक देऊ, त्या त्या वेळी आपण धावून या) ॥50॥

    भावार्थ

    भावार्थ - त्याच मनुष्याचा लोकांनी सत्कार केला पाहिजे की जो विद्या, न्याय आणि धर्माप्रमाणे वागणारा असून सुशील आणि जितेंद्रिय असेल आणि जो सर्वांसाठी सुखाची वृद्धी करणारा असेल ॥50॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O Commander, in each battle I invite thee, the rescuer, the destroyer of the ignoble, affable, the giver of glory, deserving of invocation, the Subduer of the foes, the preserver of administration, quick in action, adored by the multitude, and the castigator of the enemys army. O Bounteous Lord, may thou give us happiness.

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    Meaning

    I invoke Indra, lord of might and majesty, adorable and universally adored, saviour, protector and promoter of His creation. I invoke Him for protection in every problem of life. I call upon Indra, royal and brave ruler of the nation, saviour and protector of the people, and destroyer of the nation’s enemies. I call upon him for protection and solution of every problem in the life of the nation. I call upon Indra, commander of the army, defender and protector of the land, instant in action, for defence in every battle of the nation. May Indra, saviour, protector, defender and promoter of life, destroyer of evil and router of the enemy, lord of power and prosperity, bless us with all that is good and hold it safe for us.

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    Translation

    Аt repeated worships, I invoke the resplendent Lord, the preserver, the rescuer, the brave and the one, who is easily propitiated. The Lord is invoked by all. May He, the bounteous Lord, bestow prosperity on us. (1)

    Notes

    Sakram,शक्तं, capable; strong. Or, अ शुकर्तारं, quick acting. Svasti dhātu, अविनाशं कल्याणं करोतु, may save us from harm and bestow weal on us.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে সভাধ্যক্ষ ! যে (হবেহবে) প্রত্যেক সংগ্রামে (ত্রাতারম্) রক্ষা করিবার (ইন্দ্রম্) দুষ্টদিগকে নাশ করিবার (অবিতারম্) প্রীতি করাইবার (ইন্দ্রম্) উত্তম ঐশ্বর্য্য প্রদান করিবার (সুহবম্) সুন্দরতা পূর্বক আহুত হওয়ার (শূরম্) শত্রুদের বিনাশ করিবার (ইন্দ্রম্) রাজ্য ধারণ করিবার এবং (শক্রম্) কার্য্যে শীঘ্রতা আনয়ন করিবার ব্যক্তি (পুরুহূতম্) অনেকের দ্বারা সৎকার প্রাপ্ত তথা (ইন্দ্রম্) শত্রুসেনা বিদীর্ণকারী তোমাকে (হ্বয়ামি) সৎকারপূর্বক আহ্বান করি, সুতরাং (মঘবা) বহু ধনযুক্ত (ইন্দ্রঃ) উত্তম সেনার ধারণকারী তুমি (নঃ) আমাদের জন্য (স্বস্তি) সুখ (ধাতু) ধারণ কর ॥ ৫০ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- মনুষ্য সেই পুরুষের সর্বদা সৎকার করিবে যে বিদ্যা, ন্যায় ও ধর্মের সেবক, সুশীল ও জিতেন্দ্রিয় হইয়া সকলের সুখ বৃদ্ধি করিবার জন্য নিরন্তর চেষ্টা করিতে থাকে ॥ ৫০ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    ত্রা॒তার॒মিন্দ্র॑মবি॒তার॒মিন্দ্র॒ꣳ হবে॑হবে সু॒হব॒ꣳ শূর॒মিন্দ্র॑ম্ ।
    হ্বয়া॑মি শ॒ক্রং পু॑রুহূ॒তমিন্দ্র॑ꣳ স্ব॒স্তি নো॑ ম॒ঘবা॑ ধা॒ত্বিন্দ্রঃ॑ ॥ ৫০ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ত্রাতারমিত্যস্য গর্গ ঋষিঃ । ইন্দ্রো দেবতা । বিরাট্ ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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