अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 13
क्रोधो॑ वृ॒क्कौ म॒न्युरा॒ण्डौ प्र॒जा शेपः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठक्रोध॑: । वृ॒क्कौ । म॒न्यु: । आ॒ण्डौ । प्र॒ऽजा । शेप॑: ॥१२.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
क्रोधो वृक्कौ मन्युराण्डौ प्रजा शेपः ॥
स्वर रहित पद पाठक्रोध: । वृक्कौ । मन्यु: । आण्डौ । प्रऽजा । शेप: ॥१२.१३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 13
विषय - सृष्टि की धारणविद्या का उपदेश।
पदार्थ -
[सृष्टि में] (क्रोधः) क्रोध (वृक्कौ) दोनों वृक्क [दो कुक्षिगोलक,] (मन्युः) तेज (आण्डौ) दोनों अण्डकोष, और (प्रजा) प्रजा [वंशावली] (शेषः) प्रजनन सामर्थ्य [के समान है] ॥१३॥
भावार्थ - जैसे देह में दोनों वृक्क [“गुरदे”], दोनों अण्डकोष और सन्तानोत्पादन नाड़ी शरीरबल के सूचक हैं, वैसे ही क्रोध आदि सृष्टि में हैं ॥१३॥ इन नाड़ियों के लक्षण इस प्रकार हैं− वृक्कौ पुष्टिकरौ प्रोक्तौ जठरस्थस्य मेदसः ॥१॥ वीर्यवाहिशिराधारौ वृषणौ पौरुषावहौ। गर्भाधानकरं लिङ्गमयनं वीर्यमूत्रयोः ॥२॥ यह शार्ङ्गधर के वचन हैं-खण्ड १ अ० ५ श्लोक ४० व ४१ ॥ (वृक्कौ) दोनों वृक्क अर्थात् कुक्षिगोलक [गुरदे] पेट में रहनेवाले भेद पुष्ट करनेवाले कहे जाते हैं ॥१॥ दोनों वृषण अर्थात् आण्ड वीर्यवाही नाड़ियों के आधार, पुरुषार्थ के देनेवाले हैं, लिङ्ग गर्भाधान करनेवाला, वीर्य और मूत्र का मार्ग है ॥२॥
टिप्पणी -
१३−(क्रोधः) कोपः (वृक्कौ) अ० ७।९६।१। स्वृवृभू०। उ० ३।४१। वृजी वर्जने वृक आदाने वा-कक्। कुक्षिगोलकौ (मन्युः) अ० १।१०।१। मन्युर्मन्यतेर्दीप्तिकर्मणः-निरु० १०।२९। दीप्तिः। प्रतापः (आण्डौ) अण्ड-अण्। अण्डकोषौ। वृषणौ (प्रजा) वंशावली (शेषः) अ० ४।३७।७। प्रजननसामर्थ्यम् ॥