अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 6
दे॒वानां॒ पत्नीः॑ पृ॒ष्टय॑ उप॒सदः॒ पर्श॑वः ॥
स्वर सहित पद पाठदे॒वाना॑म् । पत्नी॑: । पृ॒ष्टय॑: । उ॒प॒ऽसद॑: । पर्श॑व: ॥१२.६॥
स्वर रहित मन्त्र
देवानां पत्नीः पृष्टय उपसदः पर्शवः ॥
स्वर रहित पद पाठदेवानाम् । पत्नी: । पृष्टय: । उपऽसद: । पर्शव: ॥१२.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 6
विषय - सृष्टि की धारणविद्या का उपदेश।
पदार्थ -
[सृष्टि में] (देवानाम्) दिव्यगुणवाले [अग्नि, वायु आदि] पदार्थों की (पत्नीः) पालनशक्तियाँ (पृष्टयः) पसलियों की हड्डियों, (उपसदः) सङ्ग रहनेवाली [अग्नि वायु की तन्मात्राएँ] (पर्शवः) पसलियों [के समान हैं] ॥६॥
भावार्थ - जैसे शरीर की मोटी हड्डियों में पसलियाँ लगी हैं, वैसे ही अग्नि आदि की स्थूल और सूक्ष्म अवस्था का सम्बन्ध सृष्टि के साथ है ॥६॥
टिप्पणी -
६−(देवानाम्) दिव्यगुणवतामग्निवाय्वादीनाम् (पत्नीः) अ० २।१२।१। पालनशक्तयः (पृष्टयः) अ० ४।३।६। पार्श्वास्थीनि (उपसदः) संगताः सूक्ष्मतन्मात्राः (पर्शवः) स्पृशेः श्वण्शुनौ पृ च। उ० ५।२७। स्पृश स्पर्शने−शुन्, धातोश्च पृ इत्यादेशः। पार्श्वाधःस्थास्थीनि ॥