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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 7
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - गौः छन्दः - त्रिपदा पिपीलिकमध्या निचृद्गायत्री सूक्तम् - गौ सूक्त

    मि॒त्रश्च॒ वरु॑ण॒श्चांसौ॒ त्वष्टा॑ चार्य॒मा च॑ दो॒षणी॑ महादे॒वो बा॒हू ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मि॒त्र: । च॒ । वरु॑ण: । च॒ । अंसौ॑ । त्वष्टा॑ । च॒ । अ॒र्य॒मा । च॒ । दो॒षणी॒ इति॑ । म॒हा॒ऽदे॒व: । बा॒हू इति॑ ॥१२.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मित्रश्च वरुणश्चांसौ त्वष्टा चार्यमा च दोषणी महादेवो बाहू ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मित्र: । च । वरुण: । च । अंसौ । त्वष्टा । च । अर्यमा । च । दोषणी इति । महाऽदेव: । बाहू इति ॥१२.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 7

    पदार्थ -
    [सृष्टि में] (मित्रः) प्राणवायु (च) और (वरुणः) अपान वायु (च) ही (अंसौ) दोनों कन्धे, (त्वष्टा) [अन्न जल आदि उत्पन्न करनेवाला] मेघ (च) और (अर्यमा) सूर्य (च) ही (दोषणी) दो भुजदण्ड और (महादेवः=०−वौ) अधिक जीतने की इच्छा और स्तुतिगुण (बाहू) दो भुजाओं [के तुल्य हैं] ॥७॥

    भावार्थ - जैसा शरीर और उसके अवयवों का परस्पर सम्बन्ध है, वैसा ही प्राण आदि का सम्बन्ध सृष्टि से है ॥७॥

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