अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 14
न॒दी सू॒त्री व॒र्षस्य॒ पत॑य॒ स्तना॑ स्तनयि॒त्नुरूधः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठन॒दी । सू॒त्री । व॒र्षस्य॑ । पत॑य: । स्तना॑: । स्त॒न॒यि॒त्नु: । ऊध॑: ॥१२.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
नदी सूत्री वर्षस्य पतय स्तना स्तनयित्नुरूधः ॥
स्वर रहित पद पाठनदी । सूत्री । वर्षस्य । पतय: । स्तना: । स्तनयित्नु: । ऊध: ॥१२.१४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 14
विषय - सृष्टि की धारणविद्या का उपदेश।
पदार्थ -
[सृष्टि में] (नदी) नदी (सूत्री) जन्मदात्री [नाड़ी], (वर्षस्य पतयः) वर्षा के रक्षक [मेघ] (स्तनः) स्तन [दूध के आधार], (स्तनयित्नुः) गर्जन (ऊधः) भेड़ [दूध के छिद्र स्थान के समान है] ॥१४॥
भावार्थ - सृष्टि और शरीर के अवयवों का परस्पर सम्बन्ध स्पष्ट है ॥१४॥
टिप्पणी -
१४−(नदी) सरित् (सूत्री) अमिचिमिशसिभ्यः क्त्रः। उ० ४।१६४। षूङ् प्राणिगर्भविमोचने−क्त्र, ङीप्। उत्पादयित्री नाडी (वर्षस्य पतयः) वृष्टिरक्षका मेघाः (स्तनाः) दुग्धाधाराः (स्तनयित्नुः) अ० ४।१५।११। गर्जनम् (ऊधः) अ० ४।११।४। आपीनम् ॥