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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 20
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - गौः छन्दः - याजुषी जगती सूक्तम् - गौ सूक्त

    इन्द्रः॒ प्राङ्तिष्ठ॑न्दक्षि॒णा तिष्ठ॑न्य॒मः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑: । प्राङ् । तिष्ठ॑न् । द॒क्षि॒णा । तिष्ठ॑न् । य॒म: ॥१२.२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रः प्राङ्तिष्ठन्दक्षिणा तिष्ठन्यमः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र: । प्राङ् । तिष्ठन् । दक्षिणा । तिष्ठन् । यम: ॥१२.२०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 20

    पदार्थ -
    [वह परमेश्वर] (प्राङ्) पूर्व वा सन्मुख (तिष्ठन्) ठहरा हुआ (इन्द्रः) परम ऐश्वर्यवान्, (दक्षिणा) दक्षिण वा दाहिनी ओर (तिष्ठन्) ठहरा हुआ (यमः) न्यायकारी (प्रत्यङ्) पश्चिम वा पीछे की ओर (तिष्ठन्) ठहरा हुआ (धाता) धारण करनेवाला और (उदङ्) उत्तर वा बाईं ओर (तिष्ठन्) ठहरा हुआ (सविता) सब का चलानेवाला [है] ॥२०, २१॥

    भावार्थ - वह प्रजापति परमेष्ठी परमेश्वर ही सर्वशक्तिमान्, सर्वनियन्ता और सर्वव्यापक है ॥२०, २१॥

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