अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 17
रक्षां॑सि॒ लोहि॑तमितरज॒ना ऊब॑ध्यम् ॥
स्वर सहित पद पाठरक्षां॑सि । लोहि॑तम् । इ॒त॒र॒ऽज॒ना: । ऊब॑ध्यम् ॥१२.१७॥
स्वर रहित मन्त्र
रक्षांसि लोहितमितरजना ऊबध्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठरक्षांसि । लोहितम् । इतरऽजना: । ऊबध्यम् ॥१२.१७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 17
विषय - सृष्टि की धारणविद्या का उपदेश।
पदार्थ -
(रक्षांसि) राक्षस [दुष्ट जीव] (लोहितम्) रुधिर रोग, (इतरजनाः) पामर लोग (ऊबध्यम्) कुपचे अन्न [के समान हैं] ॥१७॥
भावार्थ - मन्त्र १४ के समान है ॥१७॥
टिप्पणी -
१७−(रक्षांसि) दुष्टजीवाः (लोहितम्) अ० ६।१२७।१। रुधिरविकारः (इतरजनाः) अ० ८।१०(५)।९। पामराः (ऊबध्यम्) अ० ९।४।१६। अजीर्णमन्नम् ॥