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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 29
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - आसुर्यनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त

    दे॑वहे॒तिर्ह्रि॒यमा॑णा॒ व्यृद्धिर्हृ॒ता ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒व॒ऽहे॒ति: । ह्रि॒यमा॑णा । विऽऋ॑ध्दि: । हृ॒ता ॥८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवहेतिर्ह्रियमाणा व्यृद्धिर्हृता ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवऽहेति: । ह्रियमाणा । विऽऋध्दि: । हृता ॥८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 29

    टिप्पणीः - २९−(देवहेतिः) इन्द्रियाणां हननम् (ह्रियमाणा) गृह्यमाणा (व्यृद्धिः) अवृद्धिः। हानिः (हृता) गृहीता ॥

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