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अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 6
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - साम्न्युष्णिक्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
अप॑ क्रामति सू॒नृता॑ वी॒र्यं पुण्या॑ ल॒क्ष्मीः ॥
स्वर सहित पद पाठअप॑ । क्रा॒म॒ति॒ । सू॒नृता॑ । वी॒र्य᳡म्। पुण्या॑ । ल॒क्ष्मी: ॥५.६॥
स्वर रहित मन्त्र
अप क्रामति सूनृता वीर्यं पुण्या लक्ष्मीः ॥
स्वर रहित पद पाठअप । क्रामति । सूनृता । वीर्यम्। पुण्या । लक्ष्मी: ॥५.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 6
सूचना -
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः - टिप्पणी १−मन्त्र १, २, ३ महर्षि दयानन्दकृत, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका वेदोक्तधर्मविषय पृष्ठ १०१−२ में तथा संस्कारविधि गृहाश्रमप्रकरण में व्याख्यात हैं ॥ टिप्पणी २−इस सूक्त का सम्बन्ध गत सूक्त ४ से यह है कि सूक्त ४ में वेदवाणी के प्रचार करने से लाभ का वर्णन है और इस सूक्त ५ में वेदवाणी के प्रचार रोकने से हानि का व्याख्यान है ॥ ६−(अपक्रामति) अपगच्छति। विनश्यति (सूनृता) अ० ३।१२।२। सु+नृत नर्तने−क, यद्वा, सु यथाविधि नॄन् नरान् तनोतीति या। सु+नृ+तनु विस्तारे−ड, टाप् सोर्दीर्घः। सत्यप्रियवाक्। सुकीर्तिः। (वीर्यम्) वीरत्वम् (पुण्या) मङ्गलमयी (लक्ष्मीः) चक्रवर्तिराज्यादिसम्पत्तिः ॥
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