यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 14
योगे॑योगे त॒वस्त॑रं॒ वाजे॑वाजे हवामहे। सखा॑य॒ऽइन्द्र॑मू॒तये॑॥१४॥
स्वर सहित पद पाठयोगे॑योग॒ इति योगे॑ऽयोगे। त॒वस्त॑र॒मिति॑ त॒वःऽत॑रम्। वाजे॑वाज॒ इति॒ वाजे॑ऽवाजे। ह॒वा॒म॒हे॒। सखा॑यः। इन्द्र॑म्। ऊ॒तये॑ ॥१४ ॥
स्वर रहित मन्त्र
योगेयोगे तवस्तरँवाजेवाजे हवामहे । सखायऽइन्द्रमूतये ॥
स्वर रहित पद पाठ
योगेयोग इति योगेऽयोगे। तवस्तरमिति तवःऽतरम्। वाजेवाज इति वाजेऽवाजे। हवामहे। सखायः। इन्द्रम्। ऊतये॥१४॥
विषय - तवस्तर
पदार्थ -
१. गत मन्त्र में अपने जीवन-मार्ग में प्रभु को युक्त करने का उपदेश था। उसी प्रसङ्ग में कहते हैं कि ( योगेयोगे ) = जब-जब हम प्रभु से अपना योग करते हैं तब वे प्रभु ( तवस्तरम् ) = [ तवस् = बल ] हमारे बल को अधिक और अधिक बढ़ाते हैं। पिछले मन्त्र में प्रभु से मेल करनेवाले पति-पत्नी को ‘वृषण्वसू’ कहा था—शक्तिशाली, प्रभुरूप धनवाले। प्रभु को अपना धन बनाकर वे ( वाजी ) = शक्तिशाली बने थे। उस १३वें मन्त्र का विषय [ देवता ] यह ‘वाजी’ ही था। प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि ‘शुनःशेप’ = सुख का निर्माण करनेवाला है। शक्तिशाली का ही जीवन सुखी होता है। यह ‘शुनःशेप’ भी प्रभु के योग के कारण ‘क्षत्रपति’ है, बल का स्वामी है। यही प्रस्तुत मन्त्र का देवता = विषय है।
२. ( वाजे-वाजे ) = प्रत्येक संग्राम में ( हवामहे ) = हम उस प्रभु को पुकारते हैं। वस्तुतः उस प्रभु ने ही विजय करानी है। हमारी शक्ति विजय करने की नहीं। हमारा रथ प्रभु से अधिष्ठित होता है तो विजयी होता है अन्यथा इसके लिए पराजय-ही-पराजय है।
३. ( सखायः ) = अतः हम उस प्रभु के सखा बनने के लिए प्रयत्नशील होते हैं। वे प्रभु हमारे ‘द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया’ = सयुज् सखा हैं—कभी साथ न छोड़नेवाले मित्र हैं।
४. ( इन्द्रम् ) = सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभु को ( ऊतये ) = रक्षा के लिए हम अपने साथ युक्त करते हैं। प्रभु से युक्त होने पर इस प्रभु के नाम-श्रवण से ही शत्रुओं के सेनापति काम का संहार हो जाता है। सब शत्रुओं का विजय करके हम अपने जीवन को बड़ा सुखी बना पाते हैं और प्रस्तुत मन्त्र के ऋषि ‘शुनःशेप’ होते हैं।
भावार्थ -
भावार्थ — प्रभु की उपासना हमें शक्तिशाली बनाती है। शत्रुओं के साथ संग्राम में हमें विजयी करती है। हमारा जीवन सुखमय होता है।
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