Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 38
    ऋषिः - सिन्धुद्वीप ऋषिः देवता - आपो देवताः छन्दः - न्युङ्कुसारिणी बृहती स्वरः - मध्यमः
    2

    अ॒पो दे॒वीरुप॑सृज॒ मधु॑मतीरय॒क्ष्माय॑ प्र॒जाभ्यः॑। तासा॑मा॒स्थाना॒दुज्जि॑हता॒मोष॑धयः सुपिप्प॒लाः॥३८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒पः। दे॒वीः। उप॑। सृ॒ज॒। मधु॑मती॒रिति॒ मधु॑ऽमतीः। अ॒य॒क्ष्माय॑। प्र॒जाभ्य॒ इति॑ प्र॒ऽजाभ्यः॑। तासा॑म्। आ॒स्थाना॒दित्या॒ऽस्थाना॑त्। उत्। जि॒ह॒ता॒म्। ओष॑धयः। सु॒पि॒प्प॒ला इति॑ सुऽपिप्प॒लाः ॥३८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपो देवीरुपसृज मधुमतीरयक्ष्माय प्रजाभ्यः । तासामास्थानादुज्जिहतामोषधयः सुपिप्पलाः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अपः। देवीः। उप। सृज। मधुमतीरिति मधुऽमतीः। अयक्ष्माय। प्रजाभ्य इति प्रऽजाभ्यः। तासाम्। आस्थानादित्याऽस्थानात्। उत्। जिहताम्। ओषधयः। सुपिप्पला इति सुऽपिप्पलाः॥३८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 38
    Acknowledgment

    पदार्थ -

    १. पिछले तीन मन्त्रों में उस मार्ग का प्रदर्शन है, जिसपर चलकर हमें प्रभु का दर्शन करना है। मार्ग पर चलना तभी सम्भव है यदि हम स्वस्थ हों, अतः यहाँ ‘सिन्धुद्वीप’ ऋषि के तीन मन्त्रों में स्वास्थ्य के मौलिक साधनों ‘जल, वायु व अग्नि’ पर क्रमशः प्रकाश डाला गया है। 

    २. जल के विषय में कहते हैं कि हे प्रभो! आप ( अपः देवीः ) = दिव्य गुणोंवाले जलों का ( उपसृज ) = समीपता से सृजन करो। आपकी कृपा से उत्तम गुणोंवाले जल हमें समीपता से सुलभ हों। जहाँ हम रहते हैं वहाँ उत्तम जल सुप्राप्य हो। 

    ३. ये जल ( मधुमतीः ) = माधुर्यवाले हों। इनसे हमारे शरीर में उन रसादि धातुओं का निर्माण हो जो हमारे जीवनों को मधुर बना दें। 

    ४. ये जल ( प्रजाभ्यः ) = सब प्रजाओं के लिए ( अयक्ष्माय ) = यक्ष्मादि रोगों से राहित्य के लिए हों। इनके सेवन से यक्ष्मादि रोग भी दूर हो जाएँ, ऐसी शक्ति इन जलों के अन्दर हो। 

    ५. ( तासाम् ) = उन जलों के ( आस्थानात् ) = चारों ओर ठहरने के स्थान से ( सुपिप्पलाः ) = उत्तम फलोंवाली ( ओषधयः ) = ओषधियाँ ( उज्जिहताम् ) = उद्गत हों, उत्पन्न हों। इन जलों से सिक्त क्षेत्रों में उत्तम फलोंवाली ओषधियाँ विकसित हों। यह सामान्य अनुभव है कि गन्दे पानी से सिक्त खेतों की सब्जियाँ कूप जल से सिक्त खेतों की सब्जियों से बड़ी हीन होती हैं। 

    ६. एवं, इस संसार-समुद्र में ( सिन्धु ) = बहनेवाले ये जल ( द्वीप ) = शरण हैं जिसके ऐसा यह ‘सिन्धुद्वीप’ ही प्रस्तुत मन्त्रों का ऋषि है। अगले मन्त्र में ‘वायु’ का वर्णन है वे भी बहनेवाले होने से ‘सिन्धु’ हैं। चालीसवाँ मन्त्र ‘अग्नि’ का है। ‘अधिक तापांशवाले पदार्थ से निम्न तापांशवाले पदार्थ की ओर बहने से वह भी ‘सिन्धु’ है। इन तीनों के ठीक प्रयोग से अपने स्वास्थ्य की रक्षा करनेवाला यह ऋषि ‘सिन्धुद्वीप’ है।

    भावार्थ -

    भावार्थ — जल दिव्य गुणोंवाले हैं, ये माधुर्य को उत्पन्न करते हैं, यक्ष्मा को नष्ट करते हैं। इनसे उत्पन्न ओषधियाँ उत्तम फलवाली होती हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top