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  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 31
    ऋषिः - गृत्समद ऋषिः देवता - जायापती देवते छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    संव॑साथास्व॒र्विदा॑ स॒मीची॒ऽउर॑सा॒ त्मना॑। अ॒ग्निम॒न्तर्भ॑रि॒ष्यन्ती॒ ज्योति॑ष्मन्त॒मज॑स्र॒मित्॥३१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम्। व॒सा॒था॒म्। स्व॒र्विदेति॑ स्वः॒ऽविदा॑। स॒मीची॒ऽइति॑ स॒मीची॑। उर॑सा। त्मना॑। अ॒ग्निम्। अ॒न्तः। भ॒रि॒ष्यन्ती॒ऽइति॑ भरि॒ष्यन्ती॑। ज्योति॑ष्मन्तम्। अज॑स्रम्। इत् ॥३१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सँवसाथाँ स्वर्विदा समीची उरसा त्मना । अग्निमन्तर्भरिष्यन्ती ज्योतिष्मन्तमजस्रमित् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सम्। वसाथाम्। स्वर्विदेति स्वःऽविदा। समीचीऽइति समीची। उरसा। त्मना। अग्निम्। अन्तः। भरिष्यन्तीऽइति भरिष्यन्ती। ज्योतिष्मन्तम्। अजस्रम्। इत्॥३१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 31
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    पदार्थ -

    १. पिछले मन्त्र में वर्णित पति-पत्नी ( संवसाथाम् ) = घर में सम्यक् निवासवाले होते हैं। ये परस्पर कुत्ते-बिल्ली की भाँति न लड़ते हुऐ बड़ी मधुरता से चलते हैं। 

    २. परिणामतः ( स्वर्विदा ) = ये स्वर्ग को प्राप्त करते हैं। इनका घर एक छोटा-मोटा स्वर्ग ही बन जाता है। मेलवाले घर में क्लेश का क्या काम ? 

    ३. ( समीची ) = अपने उस स्वर्गतुल्य घर में ये सदा सम्यक् मिल-जुलकर कर्म करनेवाले होते हैं। दोनों दो बैलों की भाँति गृहस्थ-शकट में जुते हुए गृहस्थ की गाड़ी को बड़ी उत्तमता से खैंचते हैं। ४. ( त्मना ) = स्वयं ( उरसा ) = अपनी छाती के जोर से ये इस गाड़ी को खैंचते हैं, औरों के भरोसे बैठे नहीं रह जाते। ये पराश्रित नहीं होते—ये संसार में आत्मविश्वास के साथ चलते हैं। 

    ५. चल इसलिए सकते हैं क्योंकि ये ( अन्तः ) = अपने अन्दर ( अग्निम् ) = प्रभु की भावना को—उत्साह को ( भरिष्यन्ती ) = भरनेवाले होते हैं [ भरिष्यन्ती = धारयमाणः—उ० ]। जो प्रभु ( इत् ) = निश्चय से ( अजस्रम् ) = निरन्तर, बिना विच्छेद के, ( ज्योतिष्मन्तम् ) = ज्योतिवाले हैं। प्रकाशमय प्रभु को हृदय में धारण करने से इनका जीवन सदा प्रकाशमय रहता है। इन्हें कहीं अन्धकार प्रतीत नहीं होता। उस प्रकाश में ये उत्साहपूर्वक आगे बढ़ते चलते हैं।

    भावार्थ -

    भावार्थ — प्रभु-भक्त पति-पत्नी की विशेषताएँ निम्न हैं— १. मेल से चलते हैं, २. घर को स्वर्ग बनाने का प्रयत्न करते हैं, ३. उत्तम गतिवाले होते हैं, ४. आत्मनिर्भरता से चलते हैं, ५. हृदयों में प्रभु को धारण करते हैं, परिणामतः कभी अन्धकार में नहीं होते।

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