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अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 2/ मन्त्र 25
सूक्त - आत्मा
देवता - परानुष्टुप् त्रिष्टुप्
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
वि ति॑ष्ठन्तांमा॒तुर॒स्या उ॒पस्था॒न्नाना॑रूपाः प॒शवो॒ जाय॑मानाः। सु॑मङ्ग॒ल्युप॑सीदे॒मम॒ग्निं संप॑त्नी॒ प्रति॑ भूषे॒ह दे॒वान् ॥
स्वर सहित पद पाठवि । ति॒ष्ठ॒न्ता॒म् । मा॒तु: । अ॒स्या: । उ॒पऽस्था॑त् । नाना॑ऽरूपा: । प॒शव॑: । जाय॑माना: । सु॒ऽम॒ङ्ग॒ली । उप॑ । सी॒द॒ । इ॒मम् । अ॒ग्निम् । सम्ऽप॑त्नी । प्रति॑ । भू॒ष॒ । इ॒ह ।दे॒वान् ॥२.२५॥
स्वर रहित मन्त्र
वि तिष्ठन्तांमातुरस्या उपस्थान्नानारूपाः पशवो जायमानाः। सुमङ्गल्युपसीदेममग्निं संपत्नी प्रति भूषेह देवान् ॥
स्वर रहित पद पाठवि । तिष्ठन्ताम् । मातु: । अस्या: । उपऽस्थात् । नानाऽरूपा: । पशव: । जायमाना: । सुऽमङ्गली । उप । सीद । इमम् । अग्निम् । सम्ऽपत्नी । प्रति । भूष । इह ।देवान् ॥२.२५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 25
विषय - श्रीर्वै पशवः
पदार्थ -
१. यहाँ घर में (अस्याः मातुः उपस्थात्) = इस भूमिमाता की गोद से (जायमाना:) = प्रादुर्भुत होते हुए (नानारूपाः पशवः) = विविधरूपोंवाले पशु (वितिष्ठन्ताम्) = विशेषरूप से स्थित हों। 'सन: पवस्व शं गवे शं जनाय शं अर्वते', इस मन्त्र के अनुसार घर में गौ हो तथा घर में घोड़े का भी स्थान हो । गौ सात्त्विक दूध के द्वारा हमारे शरीर-पोषण के साथ हमारी बुद्धि का भी वर्धन करती है तथा घोड़ा व्यायाम का साधन बनकर शक्तिवर्धन का हेतु बनता है। घर में पुरुष के एक ओर गौ और घोड़े का स्थान है तो दूसरी ओर अजा [बकरी] और अवि [भेड़] का। घर में इन पशुओं के होने पर 'श्री, यश व शान्ति' बनी रहती है। विवाह-संस्कार पर वर वधू से प्रारम्भ में ही कहता है कि 'शिवा पशुभ्यः'तूने घर में इन पशुओं का भी कल्याण करनेवाली बनना। इसे 'बलिवैश्वदेवयज्ञ' समझना। २. इसप्रकार (सुमंगली) = उत्तम मंगल करनेवाली इम (अग्निं उपसीद) = इस अग्नि का उपासन कर-प्रभु-स्मरणपूर्वक अग्निहोत्र करनेवाली बन । देवयज्ञ द्वारा तू घर को स्वस्थ व दिव्यगुणसम्पन्न बनानेवाली हो और (संपत्नी) = सदा पति का साथ देनेवाली, पति के साथ निवास करनेवाली तु (इह) = इस घर में (देवान् प्रति भूष) = [भुष to spread] विद्वान् अतिथियों का लक्ष्य करके आसन को बिछानेवाली हो, अर्थात् अतिथियज्ञ को सम्यक् सम्पन्न करनेवाली बन। घर में आये-गये का यथोचित्त सत्कार आवश्यक ही है।
भावार्थ -
घर की श्री, यश व शर्म का साधन बननेवाले, 'गौ, अश्व, अजा, अवि' रूप पशुओं का भी गृहपत्नी ध्यान करे। अग्निहोत्र को नियम से करे, अतिथियज्ञ को भी उपेक्षित न करे।
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