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अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 2/ मन्त्र 62
सूक्त - आत्मा
देवता - पथ्यापङ्क्ति
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
यत्ते॑प्र॒जायां॑ प॒शुषु॒ यद्वा॑ गृ॒हेषु॒ निष्ठि॑तमघ॒कृद्भि॑र॒घं कृ॒तम्।अ॒ग्निष्ट्वा॒ तस्मा॒देन॑सः सवि॒ता च॒ प्र मु॑ञ्चताम् ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । ते॒ । प्र॒ऽजाया॑म् । प॒शुषु॑ । यत् । वा॒ । गृ॒हेषु॑ । निऽस्थि॑तम् । अ॒घ॒कृत्ऽभि॑: । अ॒घम् । कृ॒तम् । अ॒ग्नि:। त्वा॒ । तस्मा॑त् । एन॑स: । स॒वि॒ता । च॒ । प्र । मु॒ञ्च॒ता॒म् ॥२.६२॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्तेप्रजायां पशुषु यद्वा गृहेषु निष्ठितमघकृद्भिरघं कृतम्।अग्निष्ट्वा तस्मादेनसः सविता च प्र मुञ्चताम् ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । ते । प्रऽजायाम् । पशुषु । यत् । वा । गृहेषु । निऽस्थितम् । अघकृत्ऽभि: । अघम् । कृतम् । अग्नि:। त्वा । तस्मात् । एनस: । सविता । च । प्र । मुञ्चताम् ॥२.६२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 62
विषय - अघ-निवारक 'अग्नि व सविता'
पदार्थ -
१. (यदि) = यदि (इमे) = ये (केशिनाः जनाः) = बिखरे हुए बालोंवाले लोग (ते गृहे) = तेरे घर में (अघं कृण्वन्ति) = [अध: pain, grief, distress] शोक करते हुए (रोदेन समनर्तिषुः) = नाच-कूद करने लगें-बिलखें तो (तस्मात् एनसः) = उस [एनस् unhappiness], निरानन्दता से-दुःखमय वातावरण से (अग्निः सविता च) = अग्नि और सविता-वह अग्रणी, सवोत्पादक प्रभु (त्वा प्रमुञ्चताम्) = तुझे मुक्त करें। तुम्हारे अन्दर आगे बढ़ने की भावना हो तथा निर्माण के कार्यों में लगे रहने की प्रवृत्ति हो। ऐसा होने पर घर में इसप्रकार बिलख-बिलखकर रोने के दृश्य उपस्थित न होंगे। २. (यदि इयम्) = यदि यह (तव दुहिता) = तेरी दूरेहिता-बिवाहिता कन्या विकेशी = बालों को खोले हुए (गृहे अरुदन्) = घर में रोती है और (रोदेन) = अपने रोने से (अपं कृण्वती) = दुःख के वातावरण को उपस्थित कर देती है और इसीप्रकार (यत्) = जो (जामय:) = तेरी विवाहिता बहिनें, (यत् युवतयः) = और युवति कन्याएँ (ते गृहे समनर्तिषु:) = तेरे घर में नाच-कूद मचा देती है और रोदेन (अघं कृण्वति) = रोने के द्वारा दुःखमय वातावरण बना देती हैं, इसीप्रकार (यत्) = जो (ते प्रजायाम्) = तेरी सन्तानों में, (पशुषु) = गवादि पशुओं में (यत् वा) = अथवा (गृहेषु) = पत्नी में (अघकृद्भिः) = किन्हीं पापवृत्तिवालों ने (निष्ठितम् अरघं कृतम्) = [निष्ठितम्-firm, certain] निश्चितरूप से स्थाई कष्ट उत्पन्न कर दिया है तो अग्नि और सविता तुझे उस कष्ट से मुक्त करें। वस्तुत: आगे बढ़ने की भावना से और घर में सबके निर्माण कार्यों में लगे रहने से इसप्रकार के कष्टों में रोने के अवसर उपस्थित ही नहीं होते। सामान्यत: घरों में शान्ति बनी रहती है। अग्नि व सविता की उपासना के अभाव में अज्ञान की वृद्धि होती है, दु:खद घटनाएँ उपस्थित हो जाती हैं और रोने-धोने के दृश्य उपस्थित हुआ करते हैं।
भावार्थ -
यदि घरों में सब आगे बढ़ने की भावना से युक्त हों और निर्माण के कार्यों में प्रवृत्त रहें तो व्यर्थ के कलहों के कारण रोने-धाने के दृश्य उपस्थित ही न हों।
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